प्रसनजीत,गया. गया के जंगलों में तैयार होनेवाले शुद्ध खाद्य पदार्थों का स्वाद पूरा देश चखेगा. जिले के जंगलों में शहद, अचार व मोरिंगा पाउडर तैयार किये जा रहे हैं. वन विभाग की पहल पर बाराचट्टी व आसपास के जंगलों में रहनेवाले लोगों को इस काम के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिला वन पदाधिकारी ने इस प्रोजेक्ट का नाम ‘अरण्यक’ रखा है. इस नाम से ही उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं.
अफीम की खेती के लिए बदनाम बाराचट्टी के जंगलों में सेहत से जुड़े उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं. कोशिश है कि नक्सलवाद से हतोत्साहित लोगों को एक नयी धारा से जोड़ा जाये. साथ ही यह भी योजना है कि अफीम की खेती कर अपना जीवन बर्बाद करनेवाले लोगों को एक शुद्ध मुनाफा बाजार दिया जाये और चंद पैसों से अपनी जरूरत पूरी करने के लिए जंगलों के पेड़ काटनेवालों को वृक्ष मित्र बनाया जाये.
जिले के बाराचट्टी के भलुआ गांव के सैकड़ों लोगों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ा गया है. इसको लेकर वन समिति भी तैयार की गयी है. इस क्षेत्र के लोग जंगलों में मधुमक्खी पालन कर शहद तैयार कर रहे हैं. इसके अलावा जंगली बेरों के आचार और मोरिंगा पाउडर तैयार कर रहे हैं. इन्हीं जंगलों में लेमन ग्रास की खेती हो रही है.
लेमन ग्रास से तेल निकालने के लिए डिस्टिल यूनिट भी लगाया गया है. इस तेल को दवा कंपनियां खरीदती हैं. सभी प्रोडक्ट का नाम ‘अरण्यक’ ही रखा गया है. इन उत्पादों को जल्द ही आॅनलाइन मार्केटिंग से भी जोड़ा जायेगा.
जंगलों में लकड़ी काट या अफीम की अवैध खेती कर परिवार चला रहे लोगों को ‘अरण्यक’ प्रोडक्ट एक बेहतर विकल्प के तौर पर मिलेगा. वन विभाग का मुख्य उद्देश्य यही है कि इन जंगलों के आसपास रहनेवाले लोगों को एक बेहतर और स्थायी रोजगार मिले, ताकि उनकी जीवनशैली में सुधार हो. ‘अरण्यक’ उत्पादों को बाजार मिलने से गांव के लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी और वे अवैध कार्यों को छोड़ खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर एक अच्छा जीवन जी सकेंगे.
बाजार में पाये जानेवाले शहद व आचार में कलर व टेस्ट के लिए कई प्रकार के पदार्थ मिलाये जाते हैं. इसके साथ ही प्रोडक्शन के दौरान मात्रा बढ़ाने के लिए भी इनमें कई प्रकार की चीजें मिलायी जाती हैं. लेकिन, गया के जंगलों में बननेवाले शहद व आचार इन मिलावटी चीजों से मुक्त हैं. ये पूर्ण रूप से आॅर्गेनिक हैं. वन विभाग के मुताबिक जंगलों में पाये जानेवाले मधुमक्खी के छत्ते व जंगली बेर किसी भी प्रकार खाद या प्रदूषण से मुक्त होते हैं, ऐसे में इनसे बनने वाले उत्पाद भी बिल्कुल शुद्ध हैं, इनमें किसी भी प्रकार की कोई मिलावट नहीं की जायेगी.
लेमनग्रास यानी एक ऐसी घास, जिसकी खुशबू नींबू जैसी होती है. इससे बनने वाले तेल से सेहत को कई तरह के फायदे मिल सकते हैं. गया के जंगलों में लेमन ग्रास से तेल तैयार करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है. इसकी खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ एक लाख रुपये तक की कमाई हो सकेगी. इससे तैयार होनेवाले तेल को मेडिसिन या एरोमेटिक तेल बनाने वाली कंपनी खरीद लेगी.
लेमन ग्रास ऑयल कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने, पाचन में सुधार करने, कैंस से बचाव के लिए तैयार होने वाली दवा को तैयार करने, गठिया के इलाज की दवा तैयार करने, नर्व सिस्टम को स्वस्थ रखने की दवा बनाने के काम में प्रयोग होता है. इसके अलावा इसके अन्य औषधीय उपयोग भी हैं .
‘अरण्यक’ के उत्पादों को बाजार देने के लिए पटना जू, पटना अरण्य भवन व नयी दिल्ली स्थित बिहार भवन में स्टॉल लगाये जायेंगे. इसके अलावा खुले बाजार में भी व्यापारियों को इस उत्पाद के साथ जोड़ा जायेगा.
वन विभाग का कहना है कि उत्पादों को जब बाजार मिलेगा, तो लोग प्रोत्साहित होंगे. उनकी आमदनी भी बढ़ेगी, इससे उनकी जीवन शैली में भी सुधार होगा. वन समितियों को इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए तैयार किया जा रहा है. प्रोडक्शन से लेकर मार्केटिंग तक का काम उसी गांव के लोगों को वन समिति में शामिल कर किया जायेगा.
सहजन यानी मोरिंगा के पत्तों से बनाया जाने वाला पाउडर कई औषधीण गुणों से भरा होता है. जिले के जंगलों में पाये जाने मोरिंगा के पत्तों से पाउडर तैयार कर इसकी पैकेजिंग की जा रही है. इस पाउडर को आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों के लिए उपलब्ध कराया जायेगा.
मोरिंगा पाउडर में विटामिन, खनिज पदार्थ, एंटीऑक्सीडेंट, क्लोरोफिल और पूर्ण अमीनो-एसिड की अच्छी मात्रा होती है. इसके अतिरिक्त इसमें प्रोटीन, कैल्सियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन और विटामिन की भी भरपूर मात्रा पायी जाती है.
हाल में जमुई में आयोजित राज्य के पहले पक्षी उत्सव ‘कलरव’ में ‘अरण्यक’ उत्पादों की प्रदर्शनी लगायी गयी थी. इस कार्यक्रम में पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी गया के जंगलों में तैयार होनेवाले इन उत्पादों को देखा और प्रशंसा की. मुख्यमंत्री ने इस तरह के प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों को भी प्रोत्साहित किया.
डीएफओ अभिषेक कुमार ने कहा कि जिले के नक्सलग्रस्त क्षेत्रों के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने व वन संरक्षण को ध्यान में रखते हुए विभाग ने ‘अरण्यक’ प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. गया के जंगलों में पाये जाने पदार्थों से खाद्य सामग्री व दवा तैयार की जा रही है. इससे जंगलों का संरक्षण भी होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा. इन उत्पादों को बाजार दिलाने का भी प्रयास जारी है. निश्चित तौर पर इसमें सफलता मिलेगी.
Posted by Ashish Jha