सहरसा : कोसी का प्रमंडलीय मुख्यालय होने व विधानसभा की चुनावी रणभेरी बजने को लेकर एक से एक लुभावने वादे सुनने के लिए लोग तैयार हैं. पुराने मुद्दे ओवरब्रिज, पेपर मिल व एम्स ठंडे बस्ते में हैं. कई सालों से ओवरब्रिज व पेपर मिल की वादे सुन लोगों के कान पक गये हैं. केंद्र सरकार द्वारा उत्तर बिहार में एक और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना की बात पर सुबह से लेकर शाम तक चर्चाओं का बाजार गर्म रहता है. लेकिन कोसी का प्रमंडलीय अस्पताल कहे जाने वाले सदर अस्पताल की दुर्दशा पर जनप्रतिनिधि से लेकर सामाजिक संस्था की चुप्पी लोगों को समझ नहीं आ रही है. कोसी का प्रमंडलीय अस्पताल कहे जाने वाले सदर अस्पताल की दुर्दशा किसी चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाता है. जिसका परिणाम है कि सहरसा के अलावे आसपास के जिलों से बेहतर इलाज की ख्वाहिश लेकर आने वाले लोग भगवान भरोसे इलाज कराने को विवश हैं.
स्थापना काल के कई वर्षों के बाद भी सदर अस्पताल सीमित संसाधन में लाखों लोगों का इलाज कर रहा है. वर्ष 2016 में सदर अस्पताल के विभिन्न विकास व सौंदर्यीकरण कार्य के लिए भवन प्रमंडल सहरसा द्वारा तैयार एक करोड़ 95 लाख 73 हजार का प्राक्कलन जिला से लेकर वरीय अधिकारियों के कार्यालय की फाइल का शोभा बढ़ा रहा है. हालांकि जिला पदाधिकारी के प्रयास से परिसर में मत्स्यगंधा से मिट्टी भराई का कार्य हुआ तो प्रसव वार्ड के सामने पेवर ब्लॉक लगा कर उसे चकाचक किया गया है. बावजूद ड्रेनेज सिस्टम जस का तस है. जानकारी के अनुसार, प्राक्कलित राशि के तहत 42 लाख 50 हजार छह सौ की राशि से अस्पताल के जल निकासी की व्यवस्था होनी थी. वहीं 16 लाख 8 हजार पांच सौ की राशि से मिट्टी भराई, 25 लाख 94 हजार छह सौ की राशि से सुरक्षा व संरक्षा के लिए चारों तरफ सात फीट की बाउंड्री, 13 लाख 64 हजार एक सौ की लागत से खिड़की, शौचालय व पानी सप्लाइ का कार्य, 31 लाख 18 हजार की लागत से फर्श की मरम्मत, सोलिंग व अन्य कार्य किये जाने थे. इसके अलावे 32 लाख 59 हजार 8 सौ की लागत से बर्न वार्ड व अन्य कार्य, 33 लाख 77 हजार चार सौ की लागत से अस्पताल के एक भवन को दूसरे भवन से जोड़ने का कार्य किया जाना था. लेकिन चार वर्ष के बाद भी प्राक्कलन फाइलों में दबी हुई है. स्थिति यह है कि किसी भी जनप्रतिनिधि या सामाजिक संस्थाओं का ध्यान कोसी का प्रमंडलीय अस्पताल कहे जाने वाले सदर अस्पताल की व्यवस्था पर नहीं है. विभागीय उदासीनता के कारण अस्पताल रेफरल अस्पताल बन कर रह गया है. इलाज के नाम पर सीमित संसाधन व चिकित्सक एवं कर्मियों की कमी जिले वासियों के लिए अभिशाप बन गया है. आर्थिक तंगी के मरीज को अक्सर मौत को ही गले लगाना पड़ता है. सुविधा के अभाव में अस्पताल दिनों दिन बीमार पड़ता ही चला जा रहा है.
सरकार के निर्देश पर आइजीइएमएस संस्था के द्वारा सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड सुविधा बहाल की गयी थी. कुछ दिन के बाद सरकार के निर्देश पर सुविधा को बंद कर दिया गया. जिसकी शुरुआत को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है. जानकारी के अनुसार राज्य स्वास्थ्य समिति के स्तर से मशीन खरीद हुई है. लेकिन एक से डेढ़ माह के बाद भी अस्पताल में सुविधा शुरू नहीं हो सकी है. वहीं कई वर्ष पूर्व आनन-फानन में शुरू हुई आइसीसीयू सेवा लेने से स्थानीय लोग विभागीय लापरवाही व उदासीनता के कारण वंचित है. जानकारी के अनुसार आइसीसीयू के संचालन के लिए चिकित्सक व कर्मियों की प्रतिनियुक्ति भी कर दी है. लेकिन लोगों को सुविधा नहीं मिल रही है. पूर्व सिविल सर्जन डॉ शैलेंद्र गुप्ता के कार्यकाल में ही सदर अस्पताल के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन आया था. जो बेकार पड़ी है. जानकारी के अनुसार टेक्नीशियन के अभाव में मशीन सील पैक ही रखा है. मालूम हो कि पूर्व में एक एजेंसी द्वारा सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड किया जाता था. विभागीय निर्देश पर एजेंसी को कार्य करने से रोक दिया गया. जिसके बाद ही मशीन मंगवायी गयी थी. लेकिन वह बेकार साबित हो रहा है. वर्तमान में मरीजों को बाजार से महंगे दर पर अल्ट्रासाउंड कराना मजबूरी बना हुआ है.
कोसी का प्रमंडलीय अस्पताल कहे जाने वाले सदर अस्पताल में प्रसव वार्ड से लेकर ऑपरेशन थियेटर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. लेकिन ओपीडी मरीज की सुविधा के लिए कोई प्रयास नजर नहीं आ रहा है. कोसी की बाढ़ व सुखाड़ का दंश झेलने वाले लोग बीमार होने पर सदर अस्पताल उम्मीद लेकर पहुंचते हैं. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगती है. चिकित्सकों की कमी व संसाधन के अभाव में लोग परेशान हो रहे हैं. जिस पर न ही विभाग, न ही जनप्रतिनिधि और न ही सरकार का ध्यान जा रहा है. ओपीडी खुलने से पूर्व से ही लोग ओपीडी के पास मंडराते रहते हैं जो कब ताला खुले और वह डॉक्टर से दिखा पाये.
सरकार के निर्देश पर सदर अस्पताल में तीन एक्सरे टेक्नीशियन पदस्थापित हैं, लेकिन उनके पास कोई कार्य नहीं है. अस्पताल प्रशासन कभी उससे पुर्जा कटवाने का कार्य तो कभी दवा काउंटर पर दवा वितरण कराने का कार्य करते हैं. जानकारी के अनुसार सदर अस्पताल स्थित आयुष्मान भारत कार्यालय के बगल में एक्सरे मशीन छोटी-मोटी खराबी व कुछ सामान के लिए बेकार पड़ा है. पूर्व सिविल सर्जन डॉ शैलेंद्र गुप्ता ने जल्द ही सामान मंगवा कर सरकारी एक्सरे शुरूआत करने की बात कही थी. लेकिन बहुत दिन तक उनकी सेवानिवृत्ति के बाद से इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ. विभागीय निर्देश के आलोक में पूर्व में एक एजेंसी द्वारा किये जा रहे एक्सरे को बंद कर स्थानीय स्तर पर एक एजेंसी से एक्सरे करवाया जा रहा है. जिसके लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा हरेक माह भुगतान करती है. कुछ दिन बाद सदर अस्पताल में सरकारी एक्सरे को चालू किया गया, लेकिन जानकारी के अनुसार वह बंद हो गया. उसके बाद फिर से स्थानीय स्तर पर एक निजी संचालक को फिर कार्य की जिम्मेदारी दी गयी.
सदर अस्पताल में स्थापना के कई वर्षों के बाद अधीक्षक के रूप में डॉ बबन कुंवर को पदस्थापित किया गया था. कुछ माह पूर्व उनका तबादला स्वास्थ्य उपनिदेशक के रूप में हो गया. उसके बाद जिनका पदस्थापन हुआ, उन्होंने योगदान ही नहीं दिया. जानकारी के अनुसार उन्होंने अन्यत्र योगदान दे दिया. डॉ कुंवर के बाद से अधीक्षक का पद रिक्त है. उपाधीक्षक के रूप में डॉ अनिल कुमार के स्थानांतरण के बाद स्थानीय स्तर पर डॉ आर मोहन को प्रभार दिया गया था. लेकिन जिलाधिकारी के निरीक्षण में मिट्टी कार्य पूरा नहीं होने के बाद उन्हें हटा कर डॉ एसपी विश्वास को प्रभार दिया गया है. वहीं फिजिसियन के रूप में डॉ जयंत आशीष, सर्जन के रूप में डॉ नीरज कुमार नीरव, डॉ एसके आजाद, इएनटी के रूप में डॉ एसपी विश्वास, स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में डॉ रवींद्र मोहन, शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में डॉ महबूब आलम, हड्डी रोग विशेषज्ञ के रूप में डॉ के के मधुप, डॉ एनके सादा, डॉ मसरूर आलम, डॉ राजीव झा, डॉ संतोष झा व कुछ नये चिकित्सकों ने योगदान दिया है. वहीं जुगाड़ टेक्नोलोजी के भरोसे पीएचसी में पदस्थापित कई चिकित्सकों को अलग-अलग दिनों में प्रतिनियुक्त किया गया है. जो जिले की आबादी के अनुरूप काफी कम है. इसके अलावे सदर अस्पताल में ए ग्रेड नर्स, फर्मासिस्ट, प्रयोगशाला प्रावैधिक, परिधापक, चालक, श्रमिक, कक्ष सेवक, रसोइया, स्वीपर की भी कमी हैं.
अस्पताल को जगमग करने के लिए लगभग 33 लाख की राशि खर्च की गयी. इसके बावजूद परिसर में लगे लैंप परिसर को रोशन करना बंद कर दिया. इतना ही नहीं विभागीय लापरवाही के कारण सदर अस्पताल परिसर अवैध कब्जाधारियों का बसेरा बनता जा रहा है. ऐसी बात नहीं है कि इस बात की जानकारी विभागीय अधिकारी व जिला प्रशासन को नहीं है. मालूम हो कि सदर अस्पताल में सहरसा के अलावे मधेपुरा, सुपौल, खगड़िया सहित अन्य जिलों से लोग इलाज कराने व रेफर होकर आते हैं. सदर अस्पताल को सुंदर व रौशन बनाने के लिए कई वर्ष पूर्व 32 लाख 81 हजार की लागत खर्च की गयी. जानकारी के अनुसार अस्पताल में वायरिंग व मुख्य द्वार से परिसर में लाइट लगाने का कार्य विद्युत कार्यपालक अभियंता, विद्युत कार्य प्रमंडल मुजफ्फरपुर को सौंपा गया था. एजेंसी को अस्पताल के वार्डों, कार्यालयों व सिविल सर्जन कार्यालय में वायरिंग व परिसर को दुधिया रोशनी से रौशन करवाना था. एजेंसी द्वारा लगभग कार्य पूरा भी किया गया. इसके बावजूद परिसर दूधिया रोशनी में अब तक नहा नहीं सका. अस्पताल के मुख्य द्वार से परिसर तक गाड़े गये पोल व उन पर लगी लाइट शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. अब तो पोल को जंग भी खा चुका है तो कई लाईट भी गायब हो गये हैं. हालांकि कुछ दिन पूर्व डीएम के निरीक्षण के बाद हाइमास्ट लैंप को दुरूस्त किया गया है.
posted by ashish jha