बिहार में निकाय चुनाव को लेकर प्रचार प्रसार तेज हो गया है. जैसे-जैसे नगर निकाय चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे उम्मीदवारों की धड़कने तेज होने लगी है. अब उम्मीदवारों और उनके करीबियों द्वारा मतदाताओं को लुभाने व रुठे को मनाने का खेल भी शुरू कर दिया गया है. भभुआ और हाटा में तो लक्ष्मी के खेल की भी खूब चर्चा है. इसके लिए कोई जातीय समीकरण के बल पर वोटरों के बैंक खुद के पास होने का दावा कर रहा है, तो कोई धन के बल के जरिये.
कोई समय आने पर दिखा देने का दावा करता है. मतलब साफ है कि आज भी नेता पुराने दर्रे पर चल कर मुकाम हासिल करना चाहते है. इधर युवा वर्ग व आम ग्रामीण सभी उम्मीदवारों की टोह ले रहे है. शहर के कई ऐसे पुराने उम्मीदवारों की प्रतिदिन जेब ढीली हो रही है, जिन्हें लग रहा है कि इस बार की बाजी उनकी ही है. निकाय चुनाव की तारीख नजदीक आते ही प्रत्याशी लोगों के घरों में जाकर मतदाताओं को वोट देने के लिए तरह तरह के लुभावने वायदे कर रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए हर जुगत भिड़ा रहे हैं.
कैमूर जिले के भभुआ में पहले फेज में 18 दिसंबर को एक बार फिर नगर निकाय चुनाव की डुगडुगी बजते और चुनाव की तिथियों का ऐलान होते ही प्रत्याशी एक बार फिर से सक्रिय हो चुके है. इसके चलते नगर निकाय क्षेत्रों में चुनाव की तैयारी में तेजी आने लगी है. नामांकन के बाद रद्द किये गये मतदान की तिथि के बाद एक बार मतदान के लिए नये तिथि का एलान होने पर नामांकन कर चुके प्रत्याशी लोगों से संपर्क स्थापित कर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील करते हुए अपनी खूबियां बता वोटरों को रिझाया जाना भी शुरू हो गया है. पुराने गिले-शिकवे भुलाने के लिए भी प्रत्याशी काम कर रहे है, तो विकास का वादा और आश्वासन देने का दौर शुरू हो गया है. इस बार के निकाय चुनाव में वार्ड पार्षद की पावर वाली कुर्सी यानी मुख्य और उप मुख्य पार्षद के पद पर जोर अधिक है.