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बिहार में नीलगायों को बकरी की तरह बनाया जायेगा पालतू जानवर, डुमरांव में खुलेगा देश का पहला शोध केंद्र

हरियाणा फार्म में वीर कुंवर सिंह कृृषि कॉलेज की जमीन पर नीलगायों को पालतू जानवर के रूप में विकसित करने के लिए अनुसंधान केंद्र खुलेगा. इसके लिए स्वीकृति मिल गयी है. देश का पहला राज्य बिहार होगा, जहां नीलगायों को पालतू जानवर बनाने को लेकर शोध किया जायेगा.

मनोज कुमार मिश्रा, डुमरांव. हरियाणा फार्म में वीर कुंवर सिंह कृृषि कॉलेज की जमीन पर नीलगायों को पालतू जानवर के रूप में विकसित करने के लिए अनुसंधान केंद्र खुलेगा. इसके लिए स्वीकृति मिल गयी है. देश का पहला राज्य बिहार होगा, जहां नीलगायों को पालतू जानवर बनाने को लेकर शोध किया जायेगा. महज एक पखवारे के अंदर यहां नीलगाय शोध केंद्र शुरू हो जायेगा.

डॉ सुदय प्रसाद को सौंपी गयी जिम्मेदारी

केंद्र की जिम्मेदारी जीव-जंतु वैज्ञानिक डॉ सुदय प्रसाद को सौंपी गयी है. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर (भागलपुर) के कुलपति डॉ अरुण कुमार ने इसके लिए फिलहाल तीन लाख की राशि आवंटित की है. करीब तीन साल पहले नीलगायों पर शोध कार्य शुरू करने वाले भोला शास्त्री कृषि कॉलेज, पूर्णिया में पदस्थापित जीव-जंतु वैज्ञानिक डॉ सुदय प्रसाद ने बताया कि नीलगाय में गाय शब्द जरूर लगा है, लेकिन यह पशु बकरी व हिरन की प्रजाति का है. इसके बहुत सारे लक्षण बकरी व हिरन से मिलते हैं.

बकरी की तरह नील गायों की विशेषता

बकरी व हिरन की तरह ही नीलगायों के भी दो थन होते हैं. बकरी व हिरन दो से तीन बच्चे को जन्म देते हैं. नीलगाय भी सामान्य तौर पर दो से तीन बच्चे को जन्म देते हैं. नीलगाय का मल भी बकरी व हिरन की गड़ारी की तरह होता है.

सूबे में नीलगाय से 31 जिले प्रभावित

जीव-जंतु वैज्ञानिक डॉ सुदय प्रसाद बताते हैं कि सूबे के 31 जिले नीलगायों से प्रभावित हैं. नीलगायों को मार देना समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता है. इससे पर्यावरण असंतुलित हो सकता है.

मांस और दूध में मिल सकते हैं कई जरूरी तथ्य

डॉ सुदय ने बताया कि नीलगायों के मांस और दूध में कई जरूरी तथ्य छुपे हो सकते हैं. इनको पालतू जानवर बनाकर रोजगार और अर्थोपार्जन किया जा सकता है. बक्सर जिले में सर्वाधिक नीलगाय पाये जाने से डुमरांव स्थित वीर कुंवर सिंह कृषि कॉलेज प्रांगण में ‘नीलगाय शोध केंद्र’ की स्थापना एक पखवारे के अंदर कर ली जायेगी.

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