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नीतीश सबके हैं : कभी गले मिले, तो कभी बनी दूरी, बिहार में 2005 से ऐसे बदलते गये राजनीतिक समीकरण

राजनीतिक रूप से उर्वर बिहारएक बार फिर बड़े फैसले से रू-ब-रू हुआ, जब मंगलवार को मौजूदाएनडीए सरकार में फूट पड़ गयी. जदयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमारदूसरी बार राजद केसाथ सरकार बनाने के लिए आगे आये.

मिथिलेश, पटना. राजनीतिक रूप से उर्वर बिहारएक बार फिर बड़े फैसले से रू-ब-रू हुआ, जब मंगलवार को मौजूदाएनडीए सरकार में फूट पड़ गयी. जदयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमारदूसरी बार राजद केसाथ सरकार बनाने के लिए आगे आये.77 विधायकों वाली भाजपा सरकार से बेदखल हो गयी. इसके पहले 2015 मेंभाजपा के खिलाफ महागठबंधन को बिहार ने देखा था. इस चुनाव मेंभाजपा की जीत कारथ ठहर गया था.2014 केलोकसभा चुनाव मेंभारी जीत के अगले ही साल 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा महज 53 सीटों पर सिमट कररह गयी थी.2000 के विधानसभा चुनाव के बाद बनीराजद की नेतृत्व वाली सरकार को कांग्रेस का साथ मिला था और गठबंधन की सरकार बनी थी. यह सरकारपूरे पांच साल चली. पिछले 17 सालों में बिहार मेंराजनीति का पहिया कभी तेजी से घूमा, तो कभी ठोकर खाकर धीरे-धीरे चला.

2005 : पूरे दमखम के साथ आयी एनडीए

सरकार गठबंधन का असली रूप 2005 के अक्तूबर के चुनाव से दिखा, जब एनडीए पूरे दमखम के साथ बिहार की सरकार में आयी. इस साल फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. हंग असेंबली की तसवीर उभर कर आयी. बाद में यूपीए सरकार में जोरदार दखल रखने वाले लालू प्रसाद की पहल पर विधानसभा भंग कर दी गयी. छह माह बाद अक्तूबर में विधानसभा के चुनाव हुए. इस बार भाजपा और जदयू के गठबंधन (एनडीए) को पूर्ण बहुमत मिल गया. जदयू को 88 सीटें मिली और सहयोगी भाजपा को 55 सीटें आयीं. दोनों दलों को मिला कर सदन में पूर्ण बहुमत 122 की जगह 143 विधायकों का समर्थन हासिल हुआ. यह सरकार पूरे पांच साल आराम से चली. राज्य के विकास के कई ठोस काम हुए. लालू-राबड़ी की पंद्रह साल की पुरानी सरकार की जगह आयी नयी सरकार ने विकास के कई कीर्तिमान गढ़े. इस चुनाव में विपक्ष के रूप में राजद को महज 54 सीटें आयी. कांग्रेस सिर्फ नौ पर सिमट कर रह गयी.

2010: एनडीए को 206 सीटें मिली, पर सरकार पांच साल नहीं चली

पांच साल के कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आम लोगों की उम्मीदों के नेता के रूप में उभर कर आये. इसी माहौल में 2010 का विधानसभा चुनाव आया. इस चुनाव में शुरूआती दौर में राजद ने अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. एनडीए के दोनों घटक दलों के बीच सीटों का बटवारा हुआ. भाजपा को 102 सीटें मिली और बड़े भाई के रूम में जदयू ने 141 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा किये. इस चुनाव में एनडीए को भारी बहुमत मिला. विपक्षी दल धराशायी हो गये. जदयू को 115 सीटें मिलीं और भाजपा की झोली में 91 सीटें आयीं. गठबंधन के पास बहुमत (122) की तुलना में 206 विधायक जीत कर सदन आ गये. राजद को 22 और कांग्रेस को चार सीटें मिलीं. बहुमत की सरकर बनी. नीतीश कुमार तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बन

2013:  जदयू ने किया भाजपा को सरकार से बेदखल

प्रदेश में एनडीए की सरकार अपनी गति से चल रही थी, उधर देश की राजनीति में उथल पुथल का दौर शुरू हो चुका था. केंद्र की यूपीए सरकार पर कई घोटाले के आरोप लग रहे थे. दूसरी ओर भाजपा के भीतर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का कद बढ़ता जा रहा था. कहते हैं जब किसी भी दल या चीज का बाहरी विरोध खत्म हो जाता है, तो अंतर्विरोध आरंभ होता है. इसी तरह बिहार की एनडीए सरकार के बीच अंतरविरोध आरंभ हुआ. 2013 आते-आते यह तय हो गया कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ही होंगे. प्रधानमंत्री पद को लेकर चल रहे कशमकश में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृषण आडवाणी पिछड़ते चले गये. इस दौरान प्रदेश में एक बड़ी घटना हुई. भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का पटना में जुटान हुआ. सीएम आवास पर वरिष्ठ नेताओं के लिए भोज का आयोजन किया गया था. लेकिन, एन मौके पर यह भोज रद्द कर दिया गया. भाजपा के भीतर ही भीतर गुस्से का माहौल रहा, हालांकि भाजपा खुल कर कुछ कह नहीं पायी.

2012 : भाजपा से दो दशक पुरानी दोस्ती टूटी

इसी बीच 2012 में जदयू ने लीक से अलग हट कर एनडीए में होते हुए भी राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी के पक्ष में वोट किया. जदयू और भाजपा के बीच तल्खी बढ़ती गयी. 2013 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा चुनाव कंपेन कमेटी के प्रमुख बनाये गये, तो जदयू इसे स्वीकार नहीं कर सका. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा से पुरानी दोस्ती को तोड़ने का ऐलान कर दिया. सरकार में शामिल भाजपा के सभी मंत्रियों को बरखास्त कर दिया गया. जदयू के पास खुद के 113 विधायक थे. भाजपा से अलग होने पर विपक्ष ने जदयू को साथ देने का फैसला लिया. इस तरह दो दशक पुरानी भाजपा से जदयू की दोस्ती टूट गयी.

2014 : लोकसभा चुनाव में भाजपा और लोजपा को मिलीं 32 सीटें

इसी राजनीतिक घटनाक्रम के बीच 2014 का लोकसभा चुनाव आया. इस चुनाव में भाजपा के साथ रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा आयी. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू अकेले ही चुनाव मैदान में उतरी. राजद भी चुनाव मैदान में रहा. पर, देश भर में कांग्रेस के खिलाफ बनी हवा और नरेंद्र मोदी के पक्ष की लहर बिहार में भी साफ दिखी. जदयू को महज दो सीटें मिली. राजद चार पर सिमट गया और कांग्रेस दो सीट किशनगंज और सुपौल ही जीत पायी. दूसरी ओर भाजपा को 26 सीटें मिली और उसकी सहयोगी लोजपा के खाते में छह सीटें आयी. देश में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बन गयी. पर, बिहार की कहानी कुछ और दिशा में आगे बढ़ रही थी.

2014 : …जब मांझी को बनाया सीएम

लोकसभा चुनाव में हार से निराश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होने अपने मंत्री जीतन राम मांझी को विधायक दल का नेता बनाया और उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. मांझी की सरकार को राजद ने बाहर से समर्थन दिया. कहानी यहीं नहीं रूकी. भाजपा जीत के खुमार में थी. दूसरी ओर जदयू, राजद एक नयी कहानी की पटकथा लिख रहे थे.

2015: बिहार में रोक दिया था भाजपा का विजयी रथ

वर्षों एक दूसरे के खिलाफ राजनीति करते आये नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने हाथ मिलाया और भाजपा के खिलाफ 2015 का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की. नीतीश और लालू की इस टीम में कांग्रेस भी शामिल हो गयी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे महागठबंधन का नाम दिया. हाजीपुर विधानसभा उप चुनाव में एक मंच पर लालू और नीतीश जनता के सामने आये. 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के मुकाबले भाजपा धराशायी हो गयी. महागठबंधन में शामिल तीनों दलों ने करीने से सीटों का बटवारा किया.

2015 : तेजस्वी को मिला उपमुख्यमंत्री का पद

दो प्रमुख दल जदयू और राजद ने सौ-सौ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये. चालीस सीटें कांग्रेस को दी गयीं. तीन सीट एनसीपी के लिए छोड़ी गयी. जब एनसीपी इतनी कम सीट के लिए राजी नहीं हुई, तब तीनों दलों को एक-एक सीट और बढ़ा दी गयी. राजद 101 और जदयू 101 और कांग्रेस ने 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इस चुनाव में भाजपा का विजयी रथ बिहार में आकर ठहर गया. राजद को सबसे अधिक 80 सीटें आयी. जदयू को 71 और कांग्रेस 27 सीटें जीतने में सफल रही. इनके मुकाबले भाजपा महज 53 सीटों पर सिमट कर रह गयी. महागठबंधन की मजबूत सरकार बनी, नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. तेजस्वी उप मुख्यमंत्री बनाये गये. सरकार में तीनों दल शामिल हुए.

2017: राजद सरकार से बेदखल, भाजपा फिर आ गयी साथ

कुछ दिनाें बाद तेजस्वी यादव के आवास पर सीबीआइ की छापेमारी हुई. लालूप्रसाद केरेल मंत्री होते हुए रेलवे की नौकरियों में जमीन लिये जाने तथा रेलवे केहोटलों की बिक्री मामले मेंउनसे पूछताछ हुई. मुख्यमंत्री ने उनसे सफाई देने को कहा. बात यही से बिगड़ती गयी. आखिरकार2017 में नीतीश कुमार ने राजद का साथ छोड़ दिया. भाजपाएक बार फिरउनके साथ हो ली.प्रदेश में नया गठबंधन बना. भाजपा केसाथ नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने.राजद विपक्ष में बैठा और तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता बने.

2020: तेजस्वी नहीं बन पाये सीएम, फिर बनी एनडीए की सरकार

2020 केचुनाव मेंभाजपा और जदयू एक बार फिर मिल कर चुनाव मैदान मेंआये. इस बार भाजपा बड़ी पार्टी बन कर आयी. इस चुनाव मेंजदयूके43 विधायक जीते, जबकि राजद केसबसे अधिक 75 विधायक सदन पहुंचे. फिलहाल सदन मेंराजद के विधायकों की संख्या 79 हो गयी है. जदयूको 45 सीटें मिलीं. भाजपा के77 विधायक जीत कर आये. इस चुनाव मेंमुकेश सहनी कीपार्टी वीआइपी और जीतन राम माझी की हम ने चार-चार सीटेंजीतीं. बाद में वीआइपी का भाजपा में विलय हो गया. तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नहीं बन पाये उन्हें विपक्ष के नेतापदपर संतोष करनापड़ा.

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