पूर्णिया के इस बाजार में नहीं होता ‘शहरी बाबू’ होने का अहसास, जानें कितना बदला है फणीश्वर नाथ रेणु का गुलाबबाग
जमींदारी के दौर में शहर के पूर्वी इलाके में गुलाबबाग आबाद हुआ था और तब मेले के नाम पर इसकी पहचान बनी थी. धीरे-धीरे यहां आबादी बढ़ती गयी और यह कस्बाई मुहल्ले से पूर्णिया शहर का एक बड़ा हिस्सा बन गया. इस इलाका न केवल व्यापारियों बल्कि हर तबके के लोगों का बड़ा बसेरा है.
पूर्णिया. हिंदी के कालजयी रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध रचना मारे गये गुलफाम उर्फ तीसरी कसम का गुलाबबाग आज भी पूर्णिया की पहचान में शामिल है. जमींदारी के दौर में शहर के पूर्वी इलाके में गुलाबबाग आबाद हुआ था और तब मेले के नाम पर इसकी पहचान बनी थी. धीरे-धीरे यहां आबादी बढ़ती गयी और यह कस्बाई मुहल्ले से पूर्णिया शहर का एक बड़ा हिस्सा बन गया. इस इलाका न केवल व्यापारियों बल्कि हर तबके के लोगों का बड़ा बसेरा है. पहले नगरपालिका से थोड़ी उम्मीद होती थी पर आज नगर निगम से उम्मीदें बढ़ गयी हैं. यहां के लोग आज यह सवाल उठा रहे हैं कि सड़क, बिजली, शुद्ध पेयजल, चिकित्सा आदि बुनियादी सुविधाओं से यह इलाका आखिर वंचित क्यों है. लोग कहते हैं कि पूर्णिया में विकास के ढेर सारे काम हुए पर गुलाबबाग की त्रासदियों का दौर खत्म नहीं हुआ. इस तरह के सवाल 10 साल पहले उठाये गये थे और आज भी लोग सवालिया निगाहों से प्रशासनिक महकमे की ओर देख रहे हैं.
आंकड़ों का आईना
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सन 1920 के आसपास बसा था गुलाबबाग
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सन 1930 में गुलाबबाग मेला की शुरुआत हुई
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1941 में भीषण अगलगी में जल गया था पूरा गुलाबबाग
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70 हजार के आसपास है गुलाबबाग की आबादी
विकास के मामले में पीछे छूट गया गुलाबबाग
विकास की आस में अब तक शहर के गुलाबबाग की सांस अटकी पड़ी है. यहां विकास के दावे तो खूब हुए पर शहरी विकास की योजना पिछले पांच दशकों में भी आठ किलोमीटर की दूरी तय नहीं कर सकी है. यही वजह है कि गुलाबबाग आज भी पिछड़ा और अविकसित रह गया है. गुलाबबाग को इस बात का मलाल रह गया है कि यह इलाका राजनीतिक तौर पर कमजोर रहा है. कुछ सालों के लिए कभी मजबूत हुआ और दिल्ली और पटना में भागीदारी मिली भी तो इस इलाके का भाग्य नहीं जगा. यह अलग बात है कि इस क्षेत्र के विकास के प्रशासनिक दावे हमेशा होते रहे हैं.
नहीं मिला एक अदद चिल्ड्रेन पार्क
गुलाबबाग क्या शहर के नक्शे से बाहर है? यदि नहीं तो गुलाबबाग में क्यों नहीं चिल्ड्रेन पार्क बनाया गया. गुलाबबाग में स्टेडियम के लिए कोई पहल आखिर क्यों नहीं हो सकी. हर मुहल्ले में सड़क, जल निकासी के लिए नाला निर्माण, स्ट्रीट लाइट आदि की व्यवस्था आखिर क्यों नहीं की जा सकी. यहां के लोगों की जुबान पर इस तरह के कई सवाल हैं. याद रहे कि गुलाबबाग मेला ग्राउंड में करीब तीन करोड़ की लागत से पार्क एवं इसके सौन्दर्यीकरण की योजना पर काम शुरू किए जाने की कई-कई बार घोषणा हुई थी. कहते हैं इसके लिए राशि का आवंटन भी हो चुका था. मगर पार्क निर्माण की योजना विभागीय पेंच में फंस कर रह गयी.
नहीं बन सकी संपूर्ण विकास की योजना
स्थानीय नागरिकों को इस बात का मलाल है कि गुलाबबाग के संपूर्ण विकास की योजना आज नहीं बन सकी है. वर्ष 2011 के आसपास कलाभवन की तर्ज पर गुलाबबाग में एक सांस्कृतिक भवन के निर्माण की मांग उठायी गयी थी. उस समय मारवाड़ी युवा मंच की पहल पर तत्कालीन जिलाधिकारी एन. सरवण कुमार ने स्थल निरीक्षण भी किया था पर इस दिशा में सार्थक पहल नहीं हो सकी. आलम तो यह है कि मंदिर के नीचे वाले भवन में संचालित एक पुस्तकालय भी प्रशासनिक अभियान की भेंट चढ़ गया. प्रशासनिक दबाव के कारण भवन को खाली करना पड़ा.
इमरजेंसी सेवा का अभाव
गांवों में भले ही स्वास्थ्य केंद्र व उपकेंद्र खुल गये हों पर शहरी क्षेत्र होने के बावजूद गुलाबबाग को एक अदद अस्पताल तक उपलब्ध नहीं है. वैसे, जीरोमाइल व दमका के बीच एक पीएचसी है पर वहां सुविधाएं सुलभ नहीं हैं. आलम यह है कि यहां एक अंगुली कट जाने पर भी लाइन बाजार स्थित सदर अस्पताल जाना पड़ता है.
कहते हैं स्थानीय नागरिक
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श्रीराम कॉलोनी के राजेश झा कहते हैं कि पानी और कीचड़ लांघ कर जिस मुहल्ले से गुजर रहे हैं वह पूर्णिया नगर निगम का ही इलाका है. यह स्थिति गांवों में भी नहीं है. घनी आबादी है पर सड़क और नाला का पूरा अभाव है. हमलोग शहर में रहते जरुर हैं पर शहरी होने का अहसास नहीं होता.
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श्रीराम कॉलोनी के ही मुन्ना कुमार भगत कहते हैं कि श्रीराम कालोनी में घनी आबादी बसी हुई है पर न तो सभी सड़कें दुरुस्त हैं और न ही जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित हो सकी है. काॅलोनी के अंदर तक जाने के लिए कहीं जलजमाव तो कहीं कीचड़ पार कर मुहल्ले के लोग आवाजाही करते हैं.
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गुलाबबाग के ललन झा कहते हैं कि गुलाबबाग पूर्णिया शहर का ही हिस्सा है पर यहां अभी भी कई मुहल्लों की सड़कें कच्ची हैं. श्रीराम कॉलोनी में कहीं सड़क कच्ची रह गई तो कहीं पीसीसी बनी थी जो जर्जर हो गई है. यहां हर मुहल्ले में आज भी जलनिकासी की व्यवस्था नहीं हो सकी है.
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हांसदा के प्रदीप कुमार घोष कहते हैं कि शहर में विकास का काम नहीं हुआ है, यह कहना उचित नहीं होगा पर यह सही है कि गुलाबबाग के कई मुहल्ले आज भी विकास से वंचित रह गये हैं. श्रीराम कालोनी, शास्त्रीनगर आदि इलाकों में व्यवस्था व जन सुविधा दुरुस्त करने की जरुरत है.