आनंद तिवारी, पटना. बहरेपन की जांच कराने आये मरीजों को शहर के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. उनकी बात सरकारी अस्पतालों में नहीं सुनी जा रही है. शहर के एनएमसीएच में जहां ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर ही नहीं हैं, तो दूसरी ओर पटना एम्स में एक साल व आइजीआइएमएस में करीब छह माह की वेटिंग दी जा रही है. इतना ही नहीं पीएमसीएच में भी जांच करने वाली मशीन आये दिन खराब रहती है. इसकी वजह से मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है. मरीज निजी डायग्नोस्टिक सेंटर से जांच कराने को मजबूर हैं.
शहर के संबंधित चारों मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में प्रदेश के कई जिलों से मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं. जिन मरीजों को सुनाई कम देता है, उनकी बैरा जांच करायी जा रही है. वहीं कम सुनाई देने संबंधित प्रमाणपत्र लगाकर सरकारी नौकरी हासिल करने वालों की भी बैरा जांच करायी जाती है. बैरा जांच सरकारी संस्थान से ही मान्य होती है. वहीं जानकारों की मानें तो एनएमसीएच में ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर नहीं होने व पीएमसीएच में मशीन खराब होने से पटना एम्स व आइजीआइएमएस में जांच का लोड बढ़ गया है.
एनएमसीएच में बीते करीब पांच साल से बैरा जांच नहीं हो रही है. सूत्रों की मानें, तो पांच साल पहले यहां एक ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर की देखरेख में जांच होती थी. लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर का ट्रांसफर हो गया, जिसके बाद जांच बंद हो गयी है. यहां इएनटी विभाग में आने वाले मरीजों को आइजीआइएमएस या पटना एम्स में रेफर किया जाता है. जबकि शहर के चारों मेडिकल कॉलेज अस्पतालों से रोजाना 45 से 50 मरीज जांच कराने आते हैं.
एनएमसीएच को छोड़ शहर के तीनों मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में करीब 1500 मरीज जांच व इलाज की कतार में हैं. डॉक्टरों का कहना है कि प्रत्येक मरीज की जांच में कम से कम आधे घंटे का समय लगता है. एक दिन में मुश्किल से आठ से 10 मरीजों की जांच हो पाती है. वहीं एनएमसीएच के अधीक्षक डॉ विनोद कुमार सिंह ने बताया कि बहरेपन संबंधित अन्य जांच हो रही है. बैरा जांच के लिए ऑडियोलॉजिस्ट डॉक्टर का होना जरूरी है.