भागलपुर. जम्मू-कश्मीर में वैसे तो कोसी-पूर्व बिहार के साथ ही पूरे बिहार के लोग वर्षों से रहे रहे हैं, लेकिन हाल के एक-दो वर्षों में यह संख्या बढ़ी थी. इसमें दो खास बातें हैं. एक यह कि यहां कुछ खास गांवों के लोग ही एक साथ रहते हैं और दूसरा कि ज्यादातर समाज के निचले तबके के लोग ही वहां रहते हैं. महादलित व अल्पसंख्यक तबके के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. जो ऊंचे तबके के लोग हैं, वे शिक्षा के क्षेत्र में या सरकारी नौकरी में हैं. यहां के ज्यादातर लोग बिहारियों को भैया जी कह कर बुलाते हैं. अररिया-पूर्णिया बॉर्डर के गणेश राम कहते हैं कि अब सेब बागान व बाजार सूने होने लगे हैं. हमलोग काम पर भी नहीं जा पा रहे हैं.
अब बाजार में भैया जी की आवाज नहीं आ रही. सब कुछ रक्तरंजित हो गया है. धारा 370 हटने के बाद वहां के बाजार ने रफ्तार पकड़ी थी. सेब के बाग में भी मजदूरों की मांग बढ़ी थी. निर्माण कार्य भी तेज हो गया था. इसमें कोसी-सीमांचल व पूर्व बिहार के लोगों को रोजगार मिलने लगा था. यह सब वहां के उपद्रवी तत्वों को देखा नहीं गया. कुछ दिन आपसी विवाद का नाम देकर बिहारियों पर हमले हुए और बाद में आतंकियों ने खुलेआम गोलियां बरसानी शुरू कर दी.
अररिया के जोगेंद्र के भाई चुनचुन कहते हैं कि हमलोग निर्माण कार्य में लगे रहते थे. कभी डर नहीं लगा. यहां मकान निर्माण में बिहारियों की बड़ी पूछ है. लेकिन, आतंकी अब हमलोगों को कश्मीरी पंडितों के गुट का समझने लगे हैं. जिस तरीके से दिनदहाड़े चेहरा देख कर मार डाला जा रहा है, ऐसे में डर लगना स्वाभाविक है. बांका के धर्मेंद्र कहते हैं कि वहां हलवाई का काम हमलोग करते थे. पिछले साल से बाजार ने रफ्तार पकड़ ली, जिससे दूसरे लोग भी इस पेशे में आने लगे.
इसके साथ ही बिहार के कुछ लोगों ने अपनी छोटी-मोटी दुकानें खोल लीं. ये सब उन्हें देखा नहीं गया. किशनगंज के पोठिया के रिजवान आलम ने कहा कि हम वहां पढ़ाते हैं. जम्मू में कुछ बड़े पदों पर दरभंगा-मधुबनी के लोग हैं. उनलोगों से भी हमें सहयोग मिलता है. गंजाबाड़ी के मजदूर सेब बागान में काम करते हैं. वे लोग भी गांव लौटने का मन बना चुके हैं. पूर्णिया के जलालगढ़ प्रखंड के पीपरपांती गांव के मो इरशाद ने बताया कि मेरा लड़का कश्मीर से लौट आया है, लेकिन इसी गांव के चार लोग कश्मीर में काम करने गये हैं. वे लोग वहां फंसे हुए हैं. इसी जिले के डगरूआ प्रखंड के करियात गांव के दो-तीन लोग अब भी कश्मीर में हैं.
जम्मू-कश्मीर से लौटे बांका निवासी मिथिलेश का कहना है कि आइकार्ड देखकर बिहारियों को टारगेट किया जाता है. उन्हें लगता है कि बिहारियों को मार देने के बाद कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ प्रवासी भी डर जायेंगे. वह कहते हैं कि मैं कम पढ़ा-लिखा हूं, लेकिन जानता हूं कि हमलोगों को क्यों मारा जा रहा है. 11 साल से वहां रह रहा हूं, लेकिन कभी डर नहीं लगा. अब डर लगता है.
Posted by: Radheshyam Kushwaha