अब धान के कटोरे से छलकेगा ‘हरा सोना’, परंपरागत फसल से इतर नयी फसल की खेती से कमा रहे किसान
रोहतास जिला धान के कटोरा नाम से प्रसिद्ध है. अब इस धान के कटोरा से हरा सोना भी छलकेगा. यहां के किसान धान की खेती के अलावा नकदी फसल के रूप में शिमला मिर्च की खेती करने लगे हैं.
पुनीत कुमार पांडेय, सासाराम. रोहतास जिला धान के कटोरा नाम से प्रसिद्ध है. अब इस धान के कटोरा से हरा सोना भी छलकेगा. यहां के किसान धान की खेती के अलावा नकदी फसल के रूप में शिमला मिर्च की खेती करने लगे हैं.
सासाराम प्रखंड के आकाशी गांव के किसान मनोज कुमार कुछ नया करने की नीयत से शिमला मिर्च की उन्नत प्रजाति (हरा सोना) की खेती शुरू किये हैं. वे अपने खेतों में शिमला मिर्च की नर्सरी पॉली नेट हाउस में किये हैं.
मनोज ने बताया कि अगर मैं इसमें सफल हो गया, तो फिर शिमला मिर्च की खेती पर विशेष ध्यान दिया जायेगा. उन्होंने कहा कि सरकार ने पारंपरिक खेती से इतर औषधीय खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित व प्रशिक्षित करने की योजना शुरू की है.
इस प्रशिक्षण के दौरान मेरे मन में आया कि क्यों न ऐसी खेती की जाये, जो सब से हट कर हो और आमदनी भी अधिक हो. इसके लिए मैंने बनारस व रांची से शिमला मिर्च की उन्नत किस्म का बीज हरा सोना को मंगा कर तैयार किया है. जिसे हिमांचल, पच्छिमी उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ की आबो हवा से इतर थोड़े गर्म प्रदेशों में उगाया जा सके.
मनोज ने कहा कि अब तक पॉली हाउस में शिमला मिर्च की फसल नेट हाउस में लहलहा रही है. उम्मीद है कि फसल अच्छी होगी. उन्होंने कहा कि यदि सरकार समय से सहयोग मिले, तो इससे किसानों की तकदीर बदल सकती है. इसका उत्पादन एक एकड़ में करीब तीन सौ क्विंटल होने की संभावना है.
शहर के मंडी में पहुंचेगा लोकल शिमला मिर्च
सासाराम की मिट्टी पर फलने वाला शिमला मिर्च जिले के मंडी में पहुंचेगा. किसान ने बताया कि 6 सौ पौधा लगाने में कुल 50 हजार रुपये खर्च आया है. शिमला मिर्च बाजार में थोक में 20 रुपये किलो की दर से बिक रहा है. उन्होंने बताया कि शिमला मिर्च की फसल यदि सितंबर के महीने में लगाया जाये, तो उत्पादन अपेक्षा से अधिक होगा. किसान को लागत से अधिक आमदनी होगी.
दोमट मिट्टी पर पैदा होने वाले शिमला मिर्च को प्रोटेक्टिव फूड माना जाता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमे कई तरह के पौष्टिक तत्व है. शिमला मिर्च में विटामिन ए, विटामिन सी, फाइवर और एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. इसका सब्जी में इस्तेमाल होता है.
किसान ने बताया कि पहले की अपेक्षा शिमला मिर्च का प्रचलन अपने यहां ज्यादा बढ़ा है. इसके उत्पादन में मल्चिंग विधि और ड्रिप एरिगेशन का किसान इस्तेमाल करे,तो कम पानी में अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. कृषि के क्षेत्र में नये प्रयोगों से सफलता की कहानी लिख रहे किसान उत्साह दोगुना है.
जल संरक्षण पर भी बल
प्रगतिशील किसान मनोज कुमार अपनी खेती में जल संरक्षण का भी ध्यान रख रहे हैं. आधे एकड़ की शिमला मिर्च की खेती में ड्रिप सिंचाई का उपयोग कर रहे हैं. इसी के माध्यम वे पौधों को जैविक खाद और कीटनाशक भी देते हैं.
उन्होंने खर-पतवार के नियंत्रण के लिए फसलों की मल्चिंग भी कर रखी है. बताते हैं कि ड्रिप सिंचाई से पानी की 90 फीसदी तक बचत होती है. वे अन्य किसानों को भी ड्रिप सिंचाई व्यवस्था अपना कर पानी का बचत करने के लिए जागरूक कर रहे हैं. इसका असर भी गांव में दिखने लगा है. आज दर्जनों किसान अपने खेतों में ड्रिप लगा रखे हैं.
Posted by Ashish Jha