बिहार में अब गिरफ्तारी के पहले मिलेगी नोटिस, जानिये क्या है नया गाइडलाइन

पुलिस सात साल से कम सजा वाले केस में सीधे गिरफ्तारी के बजाय नोटिस भी दे सकती है. नोटिस के बाद आरोपित जमानत लेने की कार्रवाई करेगा. शुक्रवार को बिहार पुलिस मुख्यालय गिरफ्तारी को लेकर विस्तृत गाइडलाइन जारी की.

By Prabhat Khabar News Desk | May 29, 2021 7:22 AM
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पटना. पुलिस सात साल से कम सजा वाले केस में सीधे गिरफ्तारी के बजाय नोटिस भी दे सकती है. नोटिस के बाद आरोपित जमानत लेने की कार्रवाई करेगा. शुक्रवार को बिहार पुलिस मुख्यालय गिरफ्तारी को लेकर विस्तृत गाइडलाइन जारी की. डीजीपी ने अपने आदेश में कहा है कि सात साल से कम सजा के मामले में गिरफ्तारी करने और नहीं करने पर किन परिस्थितियों में किन नियमों का पालन करना होगा.

डीजीपी ने इस संबंध में सभी एसपी, डीआइजी और आइजी को पत्र भेजा है. डीजीपी ने अपने आदेश में कहा है कि गिरफ्तारी के समय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41B,41C, 41D,45, 46, 50, 60 और 60 ए का सम्यक अनुपालन अपरिहार्य है. सभी पुलिस अधिकारी उक्त प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित कराएं.

डीजीपी ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस द्वारा बिना वारंट गिरफ्तार करने की शक्ति संबंधी प्रावधान धारा-41 दंड प्रक्रिया संहिता में अधिनियम 2008 एवं दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम 2010 के माध्यम से संशोधन हुए थे, जो एक नवंबर 2010 एवं 2 नवंबर 2010 से प्रभावी हुए.

डीजीपी के निर्देश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला

डीजीपी ने अपने निर्देश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया है. निर्देश में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने सात मई, 2021 को पारित न्यायादेश में कुछ आदेश दिये हैं. धारा 498 ए आइपीसी और सात वर्ष से कम कारावास के मामले में अभियुक्तों को सीधे गिरफ्तार करने के बजाय पहले धारा 41 दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के संबंध में पुलिस अधिकारी संतुष्ट हो लेंगे.

गिरफ्तारी करने पर बनानी होगी चेक लिस्ट

आदेश में कहा गया है कि सात वर्ष से कम सजा वाले मामले में गिरफ्तारी के दौरान सभी पुलिस अधिकारी धारा 41 के प्रावधानों के अनुपालन में चेक लिस्ट का प्रयोग करते हुए संतुष्ट होकर ही अभियुक्त की गिरफ्तारी करेंगे. चेक लिस्ट का संधारण एवं मूल्यांकन अलग-अलग अभियुक्तों के लिए अलग अलग होना है, क्योंकि एक ही कांड में अलग-अलग अभियुक्तों की परिस्थितियां और सामग्री अलग-अलग हो सकती है.

यदि कोई व्यक्ति इन धाराओं में संज्ञेय अपराध किसी पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में करता है तो उसकी गिरफ्तारी बिना वारंट के की जा सकती है. भले ही ऐसे अपराध की सजा कितनी कम क्यों न हो. डीजीपी ने कहा है कि वर्णित पांचों कारणों में से यदि एक भी कारण मौजूद होगा, तो गिरफ्तारी न केवल उचित होगी बल्कि कानूनी रूप से भी अपरिहार्य होगा.

गिरफ्तारी नहीं होने पर इन नियमों का पालन

डीजीपी ने आदेश में कहा है कि जिन अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं की गयी उनके विवरण की समीक्षा प्रत्येक मासिक अपराध समीक्षा बैठक में एसपी द्वारा आवश्यक रूप से की जायेगी. धारा 41 के प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता के अन्य प्रावधानों पर अधिप्रभावी नहीं होते हैं. अनुसंधान के बाद जिन अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र समर्पित करने का निर्णय लिया गया हो, पर उनकी गिरफ्तारी नहीं की गयी, को अनुसंधान बंद करने से पहले संबंधित कोर्ट में उपस्थित होने को लेकर 41ए के तहत नोटिस भेजा जाना न्यायोचित होगा.

तीसरा प्रावधान है कि धारा 41 के विभिन्न उक्त उपधारा के प्रावधानों के तहत पुलिस द्वारा अगर किसी अभियुक्त की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं समझी जाये, तो प्राथमिकी अंकित होने के दो सप्ताह के भीतर संबंधित कोर्ट को ऐसे अभियुक्तों का विवरण भेज दें. दो सप्ताह की अवधि एसपी द्वारा बढ़ायी भी जा सकती है.

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत उपस्थिति का नोटिस प्राथमिकी अंकित होने के दो सप्ताह के भीतर तमिला करा देना है. दो सप्ताह में एसपी द्वारा वाजिब कारण के साथ बढ़ायी जा सकती है. इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहने वाले पुलिस अधिकारी विभागीय कार्यवाही के साथ-साथ न्यायालय की अवमानना के दंड के भागी होंगे.

Posted by Ashish Jha

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