पटना. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने जैसे गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन नंबर होता है, वैसे ही जमीन के लिए यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (अलपिन) लागू कर दिया है. अब राज्य में कहीं भी भूमि संबंधी जानकारी हासिल करने के लिए अब लोगों को विभाग का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा.
राजस्व विभाग की वेबसाइट पर यूनिक नंबर (अलपिन) डालते ही जमीन से संबंधित सभी जानकारी कंप्यूटर पर ही मिल जायेगी. इससे जमीन की खरीद-फरोख्त आसान हो गयी है. भूमि खरीद-फरोख्त को लेकर आये दिन होने वाली धाेखेबाजी पर भी अंकुश लगेगा. इस सुविधा की शुरुआत करने वाला बिहार सातवां राज्य बन गया है. गोवा, आंध्र प्रदेश और झारखंड में इस प्रोजेक्ट पर सफलतापूर्वक काम चल रहा है.
योजना के तहत अब हर प्लॉट (खेसरा) को 14 डिजिट का एक यूनिक नंबर दिया जा रहा है. इसमें अंक के साथ अक्षर भी रहेगा. यह पूरे देश में सभी राज्यों के सभी खेसरों को दिया जायेगा. इस प्रकार हर खेसरा की पहचान दो तरह के नंबर से होगी. एक जो भूमि सर्वेक्षण के बाद हर मौजा के हर खेसरा को मैनुअली सर्वेक्षण अमीन द्वारा दिया जायेगा.
दूसरा जो सॉफ्टवेयर के जरिये ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा दिया जायेगा. इस तरह लोगों के लिए सरकार आधार नाम से यूनिक पहचान पत्र दी है, उसी तरह हर प्लॉट के लिए यह यूनिक ‘अलपिन’ नंबर होगा. यूनिक नंबर देने का यह काम एक सॉफ्टवेयर के जरिये किया जायेगा, जिसका नाम ‘भू-नक्शा’ है. जैसे-जैसे भूमि सर्वेक्षण में किस्तवार का काम होता जायेगा, वैसे–वैसे उसे भू-नक्शा सॉफ्टवेयर पर अपलोड किया जायेगा.
यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (अलपिन) का उद्घाटन वीडियो कान्फ्रेसिंग से राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह और केंद्र सरकार के भूमि संसाधन विभाग के सचिव अजय तिर्के ने किया. दिल्ली से भूमि संसाधन विभाग के अपर सचिव हुकुम सिंह मीणा और पटना से भू-अभिलेख के निदेशक जय सिंह भी मौजूद रहे.
यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (अलपिन) 14 डिजिट का यह सिर्फ नंबर नहीं है. यह जमीन के दाखिल- खारिज में काफी उपयोगी होगा. भू-नक्शा सॉफ्टवेयर में जाकर अलपिन नंबर टाइप करने पर उस प्लॉट की चौहद्दी, रकवा, स्वामित्व, इतिहास (अगर कोई विवाद हो) की जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
कोई प्लॉट बिकता है तो उसके सभी टुकड़ों को नयी चौहद्दी के साथ यह अलपिन नंबर अपने आप प्राप्त हो जायेगा. प्लॉट के अलपिन नंबर के साथ उसके स्वामित्व यानी मालिक की पूरी जानकारी इस सॉफ्टवेयर में उपलब्ध रहेगी. इस प्रकार इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर जमीन विवाद के खत्म होने की संभावना रहेगी.
Posted by Ashish Jha