Chhath Puja पर किसी की कोशिश होती है कि वो अपने घर किसी हाल में पहुंच जाए. नरयनापुर बगहा में एक दंपत्ति ने अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ 16 घंटे की हवाई यात्रा और लगभग 24 घंटे की ट्रेन की यात्रा करके खरना के दिन घर पहुंचें. दरअसल, मां का एक कॉल आया कि बीमारी की वजह से इस बार वह छठ बैठने जा रही है. यह सुनते ही एनआरआई बेटा के मन बेचैन हो उठा. और रात दिन एक करके उसने असंभव से लगने वाले कार्य को संभव किया और मां की जगह स्वयं छठ करने बिहार के बगहा आ पंहुचा. इस बार नरयनापुर बगहा के छठ घाट पर ई मृणाल प्रताप स्वयं छठ करेंगे.
कनाडा में टीसीएस में वर्षों से कार्यरत सॉफ्टवेयर इंजीनियर मृणाल
कनाडा में टीसीएस में वर्षों से कार्यरत सॉफ्टवेयर इंजीनियर मृणाल व ई. सुरभि बताते हैं कि सबसे कठिन बच्ची के लिये ओवरसीज कार्ड ऑफ इंडिया(ओसीआई कार्ड) बनवाने में हुई. फिर एक दुधमुंही बच्ची के साथ 16 घंटे की हवाई यात्रा व लगभग 24 घंटे की रेल यात्रा आसान काम नहीं था. लेकिन उनके आंखों के सामने बचपन की वह तस्वीरें नाचने लगी जो छठ की यादों को और जीवंत करने लगे. बचपन में वे दउरा माथे पर लेकर नारायणी नदी के तट पर जाया करते थे. नीम अंधेरे गन्ना व हाथी के साथ कोसी भरने जानते थे. फिर घाट से ठेकुआ व प्रसादी का सिलसिला शुरू हो जाता था. बचपन की स्मृतियों के सजीव होने के साथ ही यह भी भान हुआ कि कहीं मेरे चलते परिवार की यह परंपरा टूट न जाये. इसलिये रात-दिन एक करके इस यात्रा को संभव बनाया.
दादी ने उम्र के एक पड़ाव पर इस व्रत व विरासत को मां को सौंपी
ई मृणाल बताते हैं कि दादी ने उम्र के एक पड़ाव पर इस व्रत व विरासत को मां को सौंप दिया था. फिर मां ने बड़ी निष्ठा के साथ दशकों इस व्रत का निर्वाह किया. कई बार मैं आ जाता था लेकिन अक्सर महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट कार्यरत होने की वजह से छुट्टी नहीं मिल पाती थी और आना संभव नहीं हो पाता था. लेकिन इस दफे मां ने असमर्थता जतायी तो वे खुद को रोक नहीं सके. लेकिन सबसे बड़ी बाधा दुधमुंही बच्ची का कनाडा का पासपोर्ट व इंडिया का ओसीआई कार्ड बनवाना था. आफ्टर कोविड भीड़ की वजह से यह अत्यंत कठिन था. लेकिन महीनों की मेहनत के बाद यह संभव हो पाया और परिवार अपने गाँव नारायणपुर बगहा आ सका. लेकिन खुशी है लोकआस्था के महापर्व में अपने परिवार के साथ भाग ले पा रहे.
रिपोर्ट: इजरायल अंसारी