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मोबाइल देखती रही नर्स, परिजन करते रहे डॉक्टर को बुलाने की गुहार, DMCH में यूं थम गयी दो नवजातों की सांसें

दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल शिशु विभाग में इलाज के लिए भर्ती कराए गए दो नवजात की मौत के बाद जमकर हंगामा हुआ. मौत के पीछे लापरवाही का आरोप लगाया जा रहा है. बच्चे के परिजनों का आरोप है कि इलाज के अभाव में उनके बच्चे की मौत हो गयी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2022 11:28 AM

दरभंगा. पटना के सरकारी अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा तो उपमुख्यमंत्री सह स्वास्थ्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तो ले लिया, लेकिन बिहार में सरकारी अस्पतालों की हालत उससे कहीं अधिक दयनीय है. बुधवार को दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल शिशु विभाग में इलाज के लिए भर्ती कराए गए दो नवजात की मौत के बाद जमकर हंगामा हुआ. मौत के पीछे लापरवाही का आरोप लगाया जा रहा है. बच्चे के परिजनों का आरोप है कि इलाज के अभाव में उनके बच्चे की मौत हो गयी. बच्चे की मौत के बाद अस्पताल में जमकर हंगामा किया गया. वैसे इलाज में लापरवाही किये जाने के आरोप को अस्पताल प्रबंधन ने सिरे से खारिज किया है.

बार-बार बुलाने पर भी नहीं आयी नर्स

मृत बच्चे के पिता अमित कुमार यादव ने बताया कि वो अपने नवजात को इलाज के लिए डीएमसीएच के शिशु विभाग में इलाज के लिए भर्ती कराया था. अस्पताल में भर्ती नवजात को देखने के लिए जब नर्स से बोला गया, तो वो अपने मोबाइल में ही व्यस्त रही. बार-बार बुलाने पर ना तो नर्स आयी और ना ही कोई डॉक्टर आये. कुछ देर बार एक डॉक्टर आये तो हमने उनसे नवजात की स्थिति खराब होने की बात कही. बच्चे को देखने के बाद वे बोले परेशानी की कोई बात नहीं है. जिसकी कुछ देर बाद बच्चे की सांसे थम गई.

सीनियर डॉक्टरों के मनाने पर शांत हुए लोग

मृतक के पिता अमित कुमार यादव का कहना है कि डीएमसीएच में इलाज नहीं होता है. यहां केवल इलाज के नाम पर धांधली होती है. परिजनों ने किया अस्पताल में प्रदर्शन नवजातों की मौत के बाद परिवारवालों ने अस्पताल की मुख्य सड़क पर बैठकर डॉक्टरों की लापरवाही का जमकर विरोध किया. मुख्य रास्ता बंद होने के कारण अस्पताल के बाहर जाम जैसी स्थिति बन गयी. फिर मौके पर पहुंचे कुछ सीनियर डॉक्टरों के मनाने पर विरोध कर रहे लोगों ने रास्ता खोला.

हर बच्चे को बचा पाना मुश्किल

डीएमसीएच के उप अधीक्षक डॉ. हरेंद्र कुमार ने मृतकों के परिजनों के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. उनका कहना है कि शिशु विभाग में ज्यादातर बच्चे तब लाये जाते हैं, जब उनकी हालत बहुत सीरियस हो जाती है. अस्पताल में बच्चों का बेहतर इलाज किया जाता है. बच्चों को बचाने का प्रयास पूरा ईमानदारी के साथ किया जाता है, लेकिन सभी बच्चे नहीं बच पाते हैं. परिवार के लोग असल परिस्तिथि को नहीं समझ पाते.

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