Bihar: प्रकाशित हुआ रामचरितमानस का सबसे पुराना पाठ, जानें मूल चौपाई में विवादित शब्द की जगह इस शब्द का उल्लेख
बिहार के भोजपुर जिला निवासी हिन्दी के आदि शैलीकार पं सदल मिश्र ने कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज से 1810 ई में रामचरितमानस का प्रकाशन किया था. प्रथम संस्करण होने के कारण यह पुस्तक रामचरितमानस की प्रामाणिक मानी जाती है.
पटना. पटना महावीर मन्दिर ने रामचरितमानस का सबसे पूराना पाठ को प्रकाशित किया है. प्रकाशन ने अभी रामचरितमानस की पहली प्रकाशित पुस्तक से केवल सुन्दरकाण्ड का प्रकाशन किया है. बिहार के भोजपुर जिला निवासी हिन्दी के आदि शैलीकार पं सदल मिश्र ने कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज से 1810 ई में रामचरितमानस का प्रकाशन किया था. प्रथम संस्करण होने के कारण यह पुस्तक रामचरितमानस की प्रामाणिक मानी जाती है. इसका महत्व इसी से आंका जा सकता है कि मानस की कोई अन्य प्रति 1875 तक प्रकाशित नहीं हुई. 1880 के दशक में विलास प्रेस, नवल किशोर प्रेस समेत अन्य प्रकाशनों ने रामचरितमानस प्रकाशित किया. किन्तु प्रथम प्रकाशन होने के कारण सदल मिश्र द्वारा संपादित पुस्तक प्रामाणिकता में सर्वोपरि मानी जानी चाहिए.
क्षुद्र शब्द का अर्थ नीच
महावीर मन्दिर द्वारा सुन्दरकाण्ड का प्रकाशन उसी मूल वर्तनी में किया गया है. पुस्तक के कवरपृष्ठ पर ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ स्पष्ट रूप से उद्धृत किया गया है. महावीर मन्दिर प्रकाशन ने मूल सुन्दरकाण्ड के साथ हनुमान चालीसा, संकट-मोचन अष्टक, बजरंग बाण भी प्रकाशित किया है. महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है. सदल मिश्र संपादित रामचरितमानस की तरह इस पुस्तक में विवादित चौपाई ढोल गंवार शुद्र पशु नारी का मूल इस प्रकार है.’ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि इस पाठ में क्षुद्र शब्द का अर्थ नीच होता है.
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नारी का अर्थ जल है
1810 ई में सदल मिश्र की प्रकाशित रामचरितमानस की डिजिटल प्रति से यह निर्धारण नहीं हो पा रहा कि पशु मारी है या पशु नारी. यदि पशु मारी है तो इसका अर्थ पशु मारने वाला है. पशु नारी समझने पर यहां नारी का अर्थ समुद्र से है. नार का अर्थ जल होता है. नार से नारी यानी जल वाला अर्थात समुद्र शब्द बना. चूंकि यह उक्ति भयभीत समुद्र की है और वह क्षमा याचना करते हुए अपने बचाव में विनम्रतापूर्वक यह तर्क दे रहा है. अतः इस चौपाई में समुद्र अर्थ ही संगत लगता है. इस प्रकार प्रामाणिक एवं तार्किक रूप से ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ प्रतिस्थापित होता है.