भागलपुर : कुछ साल पहले तक बच्चों के सपनों की दुनिया की चीजें तेज घूमती चाक पर पल में तैयार हो जाती थीं. उनके जीवन के हर रंग इस चाक पर आकार लेती थी. पल भर में तैयार हो जाते थे बैंक, चिड़िया, प्लेन, मछली, कछुआ आदि तमाम तरह के खिलौने.
कुछ ऐसी ही स्थिति थी लकड़ी के खिलौनों की. किसी मेला या उत्सव का समय नजदीक आया नहीं कि मिट्टी के प्लेन या किसी अन्य चीज के लिए बच्चों की जिद्द और अभिभावकों का वादा होना तय था. मेले का वह कोना सबसे ज्यादा गुलजार रहता था जहां ये खिलौने होते थे.पर, बाजारवाद में धीरे-धीरे चाइनिज व डिजाइनर खिलौनों ने इन पारंपरिक खिलौने पर ग्रहण लगा दिया.
मिट्टी व लकड़ी में जान फूंकनेवाले हाथ जहां कमजोर पड़ने लगे, वहीं बच्चों के सपनों के रंग भी बदल गये. इसका सबसे ज्यादा असर इससे जुड़े लोगों पर पड़ा. ऐसे लोगों में मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत के तहत पारंपरिक खिलौने पर बल देने की बात से उत्साह बढ़ा है. इन कलाकारों को उम्मीद की किरण दिखने लगी है.
शहर में इन क्षेत्रों में बनते हैं खिलौने लालूचक अंगारी, गंगटी, मिरजानहाट, रामसर आदि क्षेत्रों में कुम्हार मिट्टी से सालों भर खिलौने व अन्य प्रकार के बरतन तैयार करते हैं. लालूचक अंगारी के गोवर्धन पंडित, रीतलाल पंडित व सोहन पंडित के अनुसार पहले प्रतिदिन 500 रुपये तक कमा लेते थे.
अब रोजाना कमाई मुश्किल हो गयी. अब बच्चों को तोता, बैंक, हाथी, गुड़िया, फौजिया, मछलीपरी आदि खास आकर्षित नहीं करते. दुख इस बात का है कि अब तक उंगलियों की बाजीगरी करनेवाले ये कलाकार मजदूरी करने को विवश हैं.
posted by ashish jha