पटना. नेपाली नगर में रहनेवाले लोगों को अतिक्रमणकारी बताते हुए आवास बोर्ड के अनुरोध पर जिला प्रशासन द्वारा उनके मकानों को तोड़ दिये जाने को लेकर दायर रिट पर हाइकोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई हुई. न्यायाधीश संदीप कुमार की एकलपीठ इस मामले को लेकर दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही है.
याचिकाकर्ता सत्येंद्र राय, जो हाइकोर्ट के अधिवक्ता है, उनकी ओर से अधिवक्ता शेखर सिंह ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का मकान गैर कानूनी रूप में बनाये जाने की कोई भी सूचना या नोटिस उन्हें नहीं दिया गया. कोर्ट को बताया गया कि मकानों को तोड़ने के लिए जिन प्लॉटों का जिक्र था, उसमें इनके मकान के प्लॉट को भी शामिल किया गया था. अगर कोर्ट का हस्तक्षेप नहीं होता, तो इनका मकान भी टूट जाता .
अधिवक्ता शेखर सिंह ने कोर्ट को बताया कि हाइकोर्ट के जजों के आवास बनाने के लिए 20 एकड़ जमीन को अतिक्रमणमुक्त कर हाइकोर्ट प्रशासन को देना था. इसलिए आनन-फानन में यह कार्रवाई की गयी. उन्होंने कोर्ट को बताया कि 50 एकड़ से ज्यादा की जमीन पर बने मकानों को तोड़ा गया है, जबकि महाधिवक्ता ने केवल 20 एकड़ जमीन ही अतिक्रमणमुक्त कराने की बात कही है.
उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार और आवास बोर्ड ने जो शपथपत्र दिया है, उससे इसका खुलासा हुआ है. उन्होंने बताया कि यह गैरकानूनी कार्रवाई हाइकोर्ट के नाम पर की गयी है, क्योंकि पहले गर्दनीबाग में 14.5 एकड़ जमीन हाइकोर्ट के जजों के आवास के लिए दी जानी थी. जब वह जमीन नहीं मिली, तो राजीवनगर की इस जमीन को दिया गया. अब इस मामले में 26 जुलाई को सुनवाई होगी.
इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर वरीय अधिवक्ता बसंत कुमार चौधरी ने कोर्ट को बताया गया कि आवास बोर्ड और जिला प्रशासन ने गैरकानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए मकानों को तोड़ा है. इसके पहले नोटिस भी नहीं दिया गया. जो भी कार्रवाई की गयी है, वह गैरकानूनी है. आवास बोर्ड ने अपने लिए बने कानून का स्वयं उल्लंघन करते हुए यह कार्रवाई की है. एक ओर वह वहां गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों का आशियाना उजाड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर कई कार्यालय खोलने के लिए जमीन दे दी है.