पटना हाइकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में याचिकाकर्ताओं के वकील अभिनव श्रीवास्तव, दीनू कुमार के सवाल और महाधिवक्ता पीके शाही के जवाब को उद्धृत किया है. कोर्ट ने कहा कि जाति जनगणना का अधिकार केंद्र सरकार को है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों की चर्चा करते हुए जनगणना और सर्वे के बीच के अंतर की बारीकियों की चर्चा की है. करीब आधा दर्जन याचिकाओं की एकसाथ सुनवाई करने के बाद कोर्ट के इस अंतरिम फैसले में ट्रांसजेंडरों की जाति का भी जिक्र किया गया है. याचिकाकर्ताओं ने निजता के अधिकार का मामला उठाया था.
अंतरिम आदेश में पीठ ने लिखा है कि बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के फैसले का हवाला देते हुए अदालत को बताया कि जाति आधारित गणना में ट्रांसजेंडरों को एक जाति के रूप में दर्शाया गया है, जबकि ऐसी कोई जाति श्रेणी वास्तव में मौजूद नहीं है. सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया है कि ट्रांसजेंडरों को जाति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जायेगा पर अधिसूचना में इसे जाति की सूची में रखा गया है.
महाधिवक्ता पीके शाही ने कहा कि कोर्ट के अंतरिम आदेश का अध्ययन किया जा रहा है. अध्ययन के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है.
राज्य सरकार को कानून बनाकर करवाना चाहिये जाति आधारित गणना : योगेशचंद्र वर्मा
पटना हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता योगेशचंद्र वर्मा ने कहा कि अगर राज्य सरकार जाति आधारित गणना कानून बनाकर करती तो शायद पटना हाइकोर्ट इस पर रोक नहीं लगाती. उन्होंने कहा कि यह हाइकोर्ट का फाइनल नहीं अंतरिम फैसला है. हालांकि वर्मा ने कहा कि सरकार जाति की गणना करवाने का फैसला एक अच्छी पहल है. इससे सरकार को कल्याणकारी योजना बनाने में मदद मिलेगी. पटना हाइकोर्ट मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा है कि जातिगत जनगणना का कार्य राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. यह अधिकार देश के संसद को है. श्री वर्मा ने कहा कि हाइकोर्ट के इस फैसले से राज्य के गरीब और पिछड़े पर चोट पहुंची है.केंद्र और राज्य सरकार के पास 1921 के बाद से गरीबों को लेकर कोई आंकड़े आधिकारिक आंकड़ा नहीं उपलब्ध. उन्होंने कहा कि सरकार को हाइकोर्ट के अंतिरिम फैसले के आलोक में एक नया कानून बनाना चाहिये,ताकि सर्वे का कार्यपूर्ण हो सके.
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कोर्ट ने कानून के आधार पर सही बात कही है: ललित किशोर, पूर्व महाधिवक्ता
अंतरिम आदेश को पढ़ने से प्राइमाफेसी प्रतीत होता है कि कोर्ट ने कानून के आधार पर सही बात कही है. दरअसल, सरकार का कोई भी कार्यपालिका आदेश के पीछे विधायी सपोर्ट या कानून होता है. इस मामले में विधायिका की ओर से कोई कानून पास नहीं किया गया. सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने यी बातें रखी तो सरकार की ओर से सटीक जवाब नहीं आया. हालांकि, कोर्ट का आदेश अभी अंतरिम है. जब विस्तार से सुनवाई होगी तब इसके बारे में कोर्ट का रूख और स्पष्ट हो पायेगा. लेकिन, इसके कुछ दिन पहले जब मैं महाधिवक्ता था तो इसी प्रकार की दो याचिकाएं दायर की गयी थी. उस समय जस्टिस संजय करोल मुख्य न्यायाधीश थे. मैने सरकार की ओर से बहस की. दोनों याचिकाएं रद्द हुई.