भागलपुर में जैविक हाट तैयार, उपज को लेकर पहुंच रहे किसान, बावजूद नहीं बिकता सामान, जानें वजह

Bihar news: भागलपुर शहर में हरी सब्जियों के कई बड़े-छोटे हाट-बाजार हैं, जहां तरह-तरह की हरी सब्जियां बिकती हैं. लेकिन एक ऐसा भी हाट है, जो सिर्फ नाम का है. यहां दुकानें बनी हुई हैं, पर ताले लगे हैं. हाट के मुख्य द्वार पर गेट है, जो बंद ही रहता है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 9, 2022 6:25 AM

दीपक राव, भागलपुर: शहर में हरी सब्जियों के कई बड़े-छोटे हाट-बाजार हैं, जहां तरह-तरह की हरी सब्जियां बिकती हैं. लेकिन एक ऐसा भी हाट है, जो सिर्फ नाम का है. यहां दुकानें बनी हुई हैं, पर ताले लगे हैं. हाट के मुख्य द्वार पर गेट है, जो बंद ही रहता है. दरअसल जिले के सात प्रखंडों में वर्ष 2019-20 में दियारा क्षेत्र अंतर्गत 2000 एकड़ भूमि पर 2028 किसानों ने कृषि विभाग की मदद से जैविक खेती शुरू की.

पहले तीन वर्षों तक किसानों को जैविक उत्पादों के लिए बाजार नहीं मिल सका था. तीन माह पहले जब जैविक हाट के लिए शेड तैयार किया गया. यहां किसानों ने पहुंचना बंद कर दिया है. हालांकि दियारा क्षेत्रों में बाढ़ का पानी उतरा है और एक बार फिर खेती शुरू हुई है. कृषि विभाग कभी बाढ़ कभी सुखाड़ का इंतजार करता है, तो कभी फसल तैयार करने का इंतजार करता रहता है. इतनी बड़ी योजना का लाभ आमलोग नहीं ले पा रहे हैं.

मुख्य द्वार पर गुमटी रख कर लिया अतिक्रमण

सोमवार को प्रभात खबर की टीम पहुंची, तो पाया कि मुख्य द्वार पर गुमटी रख कर अतिक्रमण कर लिया गया है. यहां किसान अंदर से तो अपना उत्पाद लेकर पहुंच जायेंगे, लेकिन ग्राहकों को आने-जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा.

अधिवक्ता निशित कुमार मिश्रा ने बताया कि उन्हें जैविक उत्पाद की जरूरत है, लेकिन हाट जाने के बाद यहां ताला बंद रहता है. यहां किसान नहीं आ रहे हैं. यहां फल, सब्जी के साथ जैविक अनाज भी बेचने की बात कही गयी है, लेकिन हमेशा बंद रहता है. लाखों रुपये से बने इस शेड में कुछ नहीं हो रहा है. शिक्षक कुमार गौरव ने बताया कि तीन माह पहले जब हाट शुरू हुआ था, तो सब्जी प्राय: यहां खरीदते थे. वहीं तिलकामांझी निवासी उमाशंकर सिन्हा ने बताया कि कृषि परिसर में एक साल पहले अस्थायी शेड लगाया गया था. कभी-कभी मेला में जैविक उत्पादों का स्टॉल लगाया जाता है. जब स्थायी हाट शुरू हुआ, तो खुशी हुई कि नजदीक में जैविक उत्पाद मिलेगा. चिकित्सकों ने भी उन्हें रासायनिक खाद से उत्पादित चीजों से परहेज करने को कहा है.

इन प्रखंडों के 22 पंचायत में शुरू करायी गयी जैविक खेती

कृषि विभाग के प्रयास के बाद तीन साल पहले जिले सात प्रखंड सुल्तानगंज, नाथनगर, सबौर, कहलगांव, पीरपैंती, खरीक, रंगरा चौक के 22 पंचायत में जैविक खेती शुरू करायी गयी. सभी पंचायत क्षेत्र दियारा में है. मुख्यमंत्री का विजन है कि दियारा क्षेत्र में रासायनिक खाद व कीटनाशक का प्रयोग नहीं होगा, तब भी उत्पादन पर कोई खास असर नहीं होगा. दरअसल गंगा में पानी बढ़ने के साथ उपजाऊ मिट्टी उभर जाती है. इसे पंक भी कहा जाता है. किसान जैविक तरीके से परवल, करेला, भिंडी, टमाटर, मटर, आलू, प्याज, ककड़ी, कद्दू, नेनुआ, हरी मिर्च, पपीता, केला, नीबू आदि सब्जी व फल की खेती कर रहे हैं.

प्रदेश सरकार अंतर्गत कृषि विभाग की ओर से 24 समूह बनाये गये. इसमें 2028 किसानों से 2000 एकड़ भूमि में जैविक खेती करायी जा रही है. प्रति एकड़ एक साल में किसान को 11500 रुपये मदद में मिल रही है. इससे किसान खुद वर्मी कंपोस्ट तैयार करेंगे. साथ ही जैविक कीटनाशी, नीम का तेल आदि खरीद सकेंगे. साथ ही किसानों के जैविक उत्पादों को उचित मूल्य पर बेचने के लिए बाजार उपलब्ध कराना है.

बाजार के लिए अब तक क्या हुआ प्रयास

कृषि विभाग की ओर से समय-समय पर उनके उत्पादों के प्रचार-प्रसार के लिए मेला लगाया गया. किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक प्रदर्शनी लगायी गयी. उनके उत्पादों की गुणवत्ता के आधार पर पुरस्कृत किया गया. इसमें उनके उत्पाद की बिक्री भी हुई और उत्पादों की गुणवत्ता से आम लोग अवगत हुए.

विवि के पिट में ही जैविक खाद हो गया बेकार

वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में पूर्व कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता के कार्यकाल में काफी जतन किये गये. पीजी जूलॉजी विभाग के तकनीकी सहयोग और गोशाला की आर्थिक सहायता पर वर्मी कंपोस्ट तैयार किया गया. इसकी मार्केटिंग करते हुए किसानों तक खाद पहुंचाने का जब समय आया, तो हर स्तर से हाथ पीछे खींच लिये गये. नतीजतन अब यह खाद पिट में पड़े-पड़े बेकार हो चुका है. बीएयू से केंचुआ, जूलॉजी विभाग से तकनीकी मदद व गोशाला के आर्थिक सहयोग से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के तहत वर्मी कंपोस्ट की मार्केटिंग करनी थी, ताकि किसानों तक सस्ते दामों में कीटरोधी जैविक खाद पहुंचे सके.

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