अधिक वजन वाले बच्चे हो रहे प्री डायबिटीज के शिकार, नियंत्रण के लिए शिशु रोग विशेषज्ञों की ये है सलाह…
शहर के एक शिशु रोग विशेषज्ञ के पास अभिभावक अपने बच्चे को दिखाने पहुंचे. बच्चे को भूख अधिक लगती थी, उम्र पांच वर्ष. वजन 50 किलो. लेकिन हमेशा सुस्त रहता था. जांच में वह प्री डायबेटिक पाया गया. डॉक्टर ने उसके खान-पान पर नियंत्रण की सलाह दी.
मुजफ्फरपुर: पिछले पांच वर्षों में डायबिटीज के मामले काफी बढ़े हैं. बड़ों के साथ साथ अब बच्चे भी इस गंभीर बीमारी का शिकार होने लगे हैं. शहर के एक शिशु रोग विशेषज्ञ के पास अभिभावक अपने बच्चे को दिखाने पहुंचे. बच्चे को भूख अधिक लगती थी, उम्र पांच वर्ष. वजन 50 किलो. लेकिन हमेशा सुस्त रहता था. जांच में वह प्री डायबेटिक पाया गया. डॉक्टर ने उसके खान-पान पर नियंत्रण की सलाह दी. हर महीने शुगर का टेस्ट कराने को कहा. माेटापे से ग्रसित दूसरे बच्चे की उम्र आठ वर्ष थी और उसका वजन 60 किलो था. उसे भी ऐसी ही समस्या थी. इनके माता-पिता डायबिटीज से पीड़ित नहीं रहे. शिशु रोग विशेषज्ञों का कहना है कि मोटापा भी कुपोषण है और यह डायबिटीज का प्रमुख कारण है. इसकी वजह असंतुलित खान-पान और जीवन शैली है.
पांच वर्षों में बढ़े बच्चों में डायबिटीज के मामले
शिशु रोग विशेषज्ञों के पास ऐसे बच्चे अब काफी आ रहे हैं, जो प्री डायबिटीज से पीड़ित हैं. उनके माता-पिता को यह जानकारी भी नहीं होती है. जब जांच होती है, तो पता चलता है कि बच्चे को प्री डायबिटीज है. करीब पांच वर्ष पहले ही शहर के वरीय फिजिशियन डॉ कमलेश तिवारी ने अपने क्लिनिक में आने वाले बच्चों और युवाओं का ब्लड कलेक्शन कर डायबिटीज की जांच की थी, तो चौंकाने वाले परिणाम मिले थे. कई बच्चे डायबिटीज से पीड़ित पाये गये. हालांकि जिले में सर्वे नहीं होने के कारण इसका आंकड़ा पता नहीं पाया.
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87 प्रतिशत लोग पसंद करते हैं बाहर का खाना
पिछले दिनों दिल्ली के संटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल ने हरियाणा और आंध्र प्रदेश के दो शहरों के लोगों के खानपान, कैलोरी, मोटापे और रक्तचाप पर अध्ययन किया था. इस शोध से पता चला कि उत्तर और दक्षिण भारत के 87 प्रतिशत लोगों को बाहर के बने खाद्य पदार्थ अधिक पसंद है. ऐसे लोगों में मोटापा और शुगर बढ़ने की समस्या देखी गयी. इस शोध में हरियाणा और आंधप्रदेश के 8762 लोगों को शामिल किया गया था.
टाइप-वन डायबिटीज के मामले कम
मुजफ्फरपुर में बच्चों में टाइप-वन डायबिटीज के मामले कम हैं. यह छोटे बच्चों में होता है. इस केस में इस केस में पैंक्रियाज की बीटा कोशिकाओं में मौजूद टी-सेल नष्ट हो जाते हैं. इस कारण इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता. ऐसे बच्चों को इंसुलिन देने की जरूरत होती है. यह मुख्य रूप से आनुवांशिक या पैंक्रियाज में किसी तरह का इंफेक्शन होने से होता है. जिले में ऐसे केस बहुत कम हैं.
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दस फीसदी बढ़ा डायबिटीज का केस
सदर अस्पताल के एनसीडी सेल प्रभारी डॉ नवीन कुमार बताते हैं कि डायबिटीज का केस पिछले साल की अपेक्षा 10 प्रतिशत बढ़ गया है. लक्षण के आधार पर डॉक्टरों के परामर्श से जब मरीज शुगर टेस्ट कराता है, तो डायबिटीज की पुष्टि होती है. मरीज को पहले से यह पता नहीं होता कि वह डायबिटीज से पीड़ित है. इस बीमारी को लेकर लोगों में अभी जागरूकता नहीं है. तीस से अधिक उम्र के व्यक्ति को डायबिटीज टेस्ट जरूर कराना चाहिये. वहीं केजरीवाल अस्पताल में शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार का कहना है कि प्री डायबिटीज के केस पहले की तुलना में काफी बढ़ गये हैं. अब इसकी उम्र सीमा नहीं रही. किसी भी उम्र के लोग इसके शिकार हो जाते हैं. बच्चों में फास्ट फूड और जंक फूड खाने की प्रवृत्ति रहती है. इसमें ग्लाइसेमिक लोड बहुत ज्यादा होता है, जो बच्चों को डायबिटीज का शिकार बना देता है. बच्चों में डायबिटीज नहीं हो, इसके लिये अभिभावक बच्चों के खान-पान पर ध्यान रखें.