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‘खेत में धीरे-धीरे हरवा चलाइहे…’ मानसून आते ही पारंपरिक गीतों के साथ बिहार के गांवों में धान की रोपनी शुरू

धान का कटोरा कहे जाने वाले बिहार के चंपारण में मॉनसून के आते ही धान की रोपाई शुरू हो गई है. रूक-रूक कर रिमझिम बारिश होने से निचले खेतों में धान की रोपनी शुरू हो गयी है. वहीं बहुत से किसान बारिश का इंतजार नहीं कर अपने निजी संसाधनों से पानी की व्यवस्था कर धान की रोपनी में जुट गए हैं.

बिहार के बगहा पुलिस जिला में मानसून की पहली बारिश से किसानों के खेतों में धान की रोपनी चंपारण की पारंपरिक भोजपुरी गीतों के साथ शुरू हो गयी. चंपारण को धान का कटोरा कहा जाता है. उस कटोरा काे भरने के लिए शुक्रवार को रोपनी ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू हो गयी. इसको लेकर किसानों में एक बार खुशी की लहर दौड़ गयी है. किसान खाद बीज लेकर अपने खेतों में रोपाई के लिए निकल पड़े. हालांकि बारिश की गति बहुत धीमी रही. किसान जिनका बिचड़ा तैयार है, वे रोपनी शुरू कर दिये हैं.

निजी संसाधनों से पानी की व्यवस्था कर खेती में जुटे किसान 

वर्तमान में किसान खेती करने में किसी तरह की चूक नहीं करना चाह रहे हैं. दो दिनों से रात में रूक-रूक कर रिमझिम बारिश होने से निचले खेतों में धान की रोपनी शुरू हो गयी है. बहुत से किसान मानसून का इंतजार नहीं कर अपने निजी संसाधनों से पानी की व्यवस्था कर धान की रोपनी में जुट गए हैं. इनमें अधिकतर किसान कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार मई माह के दूसरे सप्ताह में ही नर्सरी डाल चुके थे. 25 दिन बाद नर्सरी तैयार होते ही हल्की बारिश पर किसानों ने धान की रोपनी शुरू कर दिया है. हालांकि पहले रोपनी कराने के लिए किसानों को जहां आसानी से मजदूर मिल जाते हैं वहीं उपज अच्छी होने की संभावना भी अधिक रहती है.

पारंपरिक गीतों के साथ धान की रोपनी शुरू

खेतों में रोपनी कर रही महिलाओं द्वारा पारंपरिक गीतों से खेती के माहौल को और अधिक मनोहारी बना दिया जाता है. ”खेत में धीरे-धीरे हरवा चलाइहे हरवहवा गिरहत मिलले मुंहजोर, नए बाड़े हरवा, नए रे हरवहवा, नए बाड़े हरवा के कोर.आदि परंपरागत गीतों की धुन सुनाई पड़ने लगी है. प्रगतिशील किसानों ने बताया कि इस वर्ष मानसून तो बहुत देर से आई है. लेकिन बारिश होने से खेतों में नमी एवं निचले हिस्से के खेतों में धान की रोपनी शुरू हो गया है. समय से रोपनी होने पर पैदावार काफी अच्छी होती है.

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