मिथिलेश, पटना. मैथिली में एक कहावत प्रसिद्ध है-‘भेल बियाह मोर करव की, धिया छोड़ि और लेव की’… यानी जब शादी हो ही गयी है, तो आप मेरा क्या बिगाड़ लोगे. धिया यानी बेटी के अलावा और क्या ले सकोगे. यह कहावत पकड़ुआ विवाह पर ही बनी है. यों तो बिहार पकड़ुआ विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों से वर्षों पहले उबर चुका है. मगर, हाल के दिनों में वैशाली में एक नव नियुक्त शिक्षक की उसकी तैनाती वाले स्कूल से दबंगों द्वारा उठाकर उसकी शादी करा दिये जाने तथा 10 साल पहले के एक पकड़ुआ विवाह के मामले में पटना हाइकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में है.
नवादा जिले के रवरा गांव के रहने वाले सेना के जवान रविकांत ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भले ही उसने सीमा पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाये हों, लेकिन वह अपने राज्य में ही हथियार के बल पर उठा लिया जायेगा. जिन लोगों ने उसका अपहरण किया, उन्हीं लोगों ने उसकी जबरन शादी लखीसराय जिले के चौकी गांव की एक युवती करवा दी. करीब 10 साल बाद रविकांत को पटना हाईकोर्ट से न्याय मिला है. 30 जून 2013 को रविकांत पूजा करने अपने चाचा के साथ लखीसराय आया था. लखीसराय पहुंचते ही तीन युवक पिस्तौल लहराते हुए आये और उसे उठा कर एक घर में बंद कर दिया. उसी दिन एक युवती की मांग में सिंदूर डलवा कर उसकी शादी कर दी गयी. कुछ दिन बाद रविकांत ने लखीसराय पारिवारिक कोर्ट में गुहार लगायी. कोर्ट ने 27 जनवरी, 2020 को रविकांत की याचिका खारिज कर दी. तब परेशान रविकांत ने पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने इसी साल नवंबर में अपने फैसले में कहा कि मात्र मांग में सिंदूर डाल देने से विवाह नहीं माना जा सकता. दरअसल, बिहार में रविकांत अकेला ऐसा नौजवान नहीं है, जिसे हथियार के बल पर मासूम लड़की की मांग में सिंदूर भरना पड़ा है. वैशाली जिले के हाजीपुर में नवनियुक्त एक शिक्षक को उसकी तैनाती वाले स्कूल से उठा कर दबंगों ने उसकी जबरन शादी करा दी. इस मामले में स्कूल के प्राचार्य और शिक्षक के परिजनों ने अलग- अलग प्राथमिकी दर्ज करायी.
बिहार में पकड़ुआ विवाह का लंबा इतिहास रहा है. इसके पीछे भीषण गरीबी, अशिक्षा और दबंगई तो कारण रहा ही है, इसके साथ ही अच्छी नौकरी वाले दामाद की चाहत भी कहीं न कहीं समाज में असर डालती रही. 1970 और 80 के दशक में उत्तर बिहार में पकड़ुआ विवाह एक बड़ी सामाजिक समस्या बन कर उभरी थी. 1990 के दशक में भी यह मामला सुर्खियों में बना रहा. सामान्य जातियों में ब्राह्मण और भूमिहार वर्ग के लड़के इसके शिकार होते रहे. वहीं पिछड़ी जातियों में सबसे अधिक पकड़ुआ विवाह यादव समुदाय में दिखा. जानकार बताते हैं, गरीबी और अशिक्षा के कारण उन दिनों बाल विवाह का भी प्रचलन जोरों पर था. हाई स्कूल तक पहुंची लड़कियां खुद के जीवन को लेकर निर्णय लेने में असमर्थ होती थीं. लिहाजा, असमय बिना लगन-मंडप के किसी भी समय बंदूक के बल पर उठाये गये लड़के के हाथों मांग में सिंदूर डलवाने को राजी हो जाती थी.
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जानकार बताते हैं कि पकड़ुआ विवाह के पीछे गरीबी के साथ-साथ कहीं न कहीं सामाजिक कारण भी रहे. उत्तर बिहार में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ से बड़े जोतदार और संपन्न परिवार भी आर्थिक विपन्नता का शिकार होता चला गया. गरीबी के कारण शिक्षा खास कर लड़कियों की उच्च शिक्षा एजेंडे से गायब होती गयी. लड़कियां पढ़ गयीं, तो उनके हिसाब से दुल्हा खोज पाना मुश्किल था. अशिक्षा और बेरोजगारी ने सामाजिक तानाबाना को तोड़ दिया था. न महंगाई ठहर रही थी और न बढ़ती आबादी को लेकर समाज सजग हो रहा था. लिहाजा, गांवों और कस्बों में समय से पहले शादी का प्रचलन बढ़ने लगा. संपन्न तबकों के पास फिर भी विकल्प मौजूद थे. पर, कमजोर होते मध्यवर्गीय परिवारों को यह एक सस्ता और सुलभ विकल्प भा रहा था.
उस जमाने में पकड़ुआ विवाह के कारण जहां लड़के और उसके पिता दहशत में रहते थे, वहीं फिल्मी दुनिया वालों के लिए एक मसाला मिल गया था. जानकार बताते हैं, अधिकतर परिवारों ने जबरन घर की बहु बनायी गयी लड़कियों को देर- सबेर अपना लिया. पर, कई ऐसे परिवार आज भी इसका दंश झेल रहे हैं. बेगूसराय और पटना जिले के संगम के करीब बसे एक गांव के नामी पुरोहित के तीसरे बेटे को इसी तरह पकड़ुआ विवाह का शिकार बनाया गया था. लड़का जब उस परिवार के चंगुल से छूट कर आया, तो उसके बड़े भाई ने अपनी छोटी साली से उसकी दूसरी शादी करा दी. पच्चीस साल पहले जिस लड़की से उस लड़के की जबरन शादी करायी गयी, वह लड़की आज भी अपने मायके में पति का इंतजार करती है. जबकि प्रौढ़ हो चुका वह लड़का अपनी दूसरी पत्नी के साथ खुशहाल जीवन गुजार रहा है. सेवानिवृत आइएएस अधिकारी विजय प्रकाश बताते हैं कि बिहार में पकड़ुआ विवाह का सबसे बड़ा कारण दहेज और अशिक्षा रही है. वे कहते हैं- जैसे- जैसे लड़कियों में आत्मनिर्भरता बढ़ती जायेगी, दहेज भी कम होगा और पकड़ुआ या जबरन विवाह की प्रथा भी खत्म होती जायेगी. हालांकि शास्त्रों में भी इस तरह के विवाह की चर्चा है. मगर उन दिनों लड़कियां इसकी शिकार होती थी. नये जमाने में लड़के उठाये जाने लगे.
पटना हाइकोर्ट ने 18 नवंबर, 2023 के अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि हिंदू धर्म और हिंदू कानून के अनुसार किसी महिला के माथे पर जबरदस्ती सिंदूर लगाना ही विवाह तब तक नही माना जायेगा, जब तक वह स्वैच्छिक न हो और ”सप्तपदी” (दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे लेने) की रस्म पूरी नहीं की गयी हो . इन रस्मों के बाद ही की गयी शादी हिंदू मान्यता के अनुसार कानूनी रूप से वैद्य है.