बिहार नगर निकाय चुनाव में ओबीसी और इबीसी के आरक्षण का मामला, पटना हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ करेगी सुनवाई
बिहार के नगर निकाय चुनाव में ओबीसी, इबीसी को दिये गये आरक्षण संबंधी मामले में दायर याचिका पर सवाल उठाते हुए राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से कहा गया कि इस मामले की सुनवाई दो जजों की खंडपीठ को करना चाहिए. उन्होंने इस केस को खंडपीठ के समक्ष भेजने का अनुरोध किया.
पटना. बिहार के नगर निकाय चुनाव में ओबीसी, इबीसी को दिये गये आरक्षण संबंधी मामले की सुनवाई अब पटना हाइकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ करेगी. गुरुवार को न्यायमूर्ति राजीव रॉय की एकलपीठ ने इस संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे दो जजों की खंडपीठ को भेजने का आदेश दिया.
गौरतलब है कि समर्पित आयोग की ओर से राज्य सरकार को दी गयी रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को हाइकोर्ट के समक्ष रखने का आदेश दिया था. इसके बाद हाइकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गयी. याचिका पर न्यायमूर्ति सत्यव्रत वर्मा की एकलपीठ सुनवाई कर रही थी. इस दौरान राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से दायर याचिका पर सवाल उठाते हुये कहा गया कि इस मामले की सुनवाई दो जजों की खंडपीठ को करना चाहिए. उन्होंने इस केस को खंडपीठ के समक्ष भेजने का अनुरोध किया. कोर्ट ने इस मामले में गर्मी की छुट्टी के बाद कोई निर्णय लेने का आदेश दिया था .
बता दें कि पटना हाइकोर्ट ने नगर निकाय चुनाव में ओबीसी, इबीसी को दिए गए आरक्षण को गैरकानूनी करार देते हुए आरक्षित सीट को सभी के लिए खोलने का आदेश दिया था. हाई कोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने नगर निकाय चुनाव को स्थगित कर दिया. नगर निकाय का चुनाव दो चरणों पहले चरण का चुनाव 10 अक्टूबर को और दूसरे चरण का चुनाव 20 अक्टूबर को होना था. इसी बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने हाइकोर्ट में पुनर्विचार अर्जी दायर की लेकिन बाद में इस याचिका को वापस ले लिया.
आवेदकों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि नगर निकाय चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज किया जा रहा है. पिछड़ी जाति को नगर निकाय चुनाव में आरक्षण नही दिया जा रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए समर्पित आयोग बना निर्णय लेने के बाद ही चुनाव कराने का आदेश दिया है. राज्य सरकार ने पिछड़ी जाति को आरक्षण दिये बिना चुनाव कराने का निर्णय लिया है.
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वहीं राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कोर्ट को बताया गया कि पंचायत चुनाव के समय ही पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए पिछड़ी जातियों का डाटा कलेक्शन किया गया था.उसी डाटा के आधार पर नगर निकाय का चुनाव कराने का फैसला लिया गया है.