पटना. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई और वहां उनके स्मारक की दयनीय स्थिति पर पटना हाइकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से तीन जनवरी तक जवाब तलब किया है.
चीफ जस्टिस संजय करोल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अधिवक्ता विकास कुमार द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. कोर्ट ने इस मामले में डॉ राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली और उनके स्मारक की जांच करने के लिए वकीलों की एक तीन सदस्यीय टीम का गठन किया है.
पटना हाइकोर्ट ने कहा कि यह टीम जीरादेई और वहां स्थित स्मारक, पटना के सदाकत आश्रम और बांसघाट स्थित स्मारक की स्थिति को देखकर कोर्ट को एक रिपोर्ट अगली सुनवाई में देगी. कोर्ट को बताया गया कि जीरादेई गांव, जहां डाॅ राजेंद्र प्रसाद के पुश्तैनी घर और स्मारक हैं, उनकी हालत काफी खराब हो चुकी है.
याचिकाकर्ता ने बताया कि जीरादेई में बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर हैं. न तो वहां पहुंचने के लिए सड़क की हालत सही है और न ही गांव में स्थित उनके घर और स्मारक की स्थिति ठीक है. कोर्ट को बताया गया कि पटना के सदाकत आश्रम और बांसघाट स्थित उनसे संबंधित स्मारकों की दुर्दशा भी स्पष्ट दिखती है. इसलिए इसकी स्थिति में जल्द सुधार के लिए केंद्र व राज्य सरकार द्वारा युद्ध स्तर पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है.
जीरादेई. सीवान जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर डॉ राजेंद्र प्रसाद के पैतृक गांव जीरादेई को तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के प्रयास से पुरातात्विक स्थल घोषित किया गया था. राजेंद्र बाबू के पैतृक आवास के केयर टेकर भानु सिंह कहते हैं कि यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1927 में 17 जनवरी की रात आठ बजे से 18 जनवरी की रात आठ बजे तक मौन व्रत रखा था.
राजेंद्र बाबू के घर की दीवार पर लगे शिलापट्ट पर इसका उल्लेख है. डॉ राजेंद्र प्रसाद सनातन परंपरा में विश्वास रखते थे. मकान के ऊपर वैष्णव संप्रदाय का बना प्रतीक चिह्न इनके पूर्वजों को वैष्णव संप्रदाय से जोड़ता है. आंगन में अंबिका देवी की मूर्ति है.