पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जाति गणना का मामला
सुप्रीम कोर्ट में वकील तान्याश्री ने आवेदक अखिलेश कुमार की ओर से यह अर्जी लगायी है. वकील ने पटना हाईकोर्ट के एक अगस्त के फैसले को चुनौती दी गई है. दरअसल, जाति आधारित गणना मामले में पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को इसे सही ठहराते हुए उसके खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
पटना. जाति आधारित गणना को लेकर पटना हाईकोर्ट के तरफ से बीते दिन जो फैसला सुनाया गया है, अब इस फैसले को लेकर एक बार फिर से सुप्रीमकोर्ट में एसएलपी दायर की गयी है. सुप्रीम कोर्ट में वकील तान्याश्री ने आवेदक अखिलेश कुमार की ओर से यह अर्जी लगायी है. वकील ने पटना हाईकोर्ट के एक अगस्त के फैसले को चुनौती दी गई है. दरअसल, जाति आधारित गणना मामले में पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को इसे सही ठहराते हुए उसके खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था. अब इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगायी गयी है. हालांकि, नीतीश कुमार की सरकार ने पहले ही कैविएट दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसका पक्ष जाने बिना कोई आदेश न दिया जाये.
फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जाति गणना पर पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर की गई. वकील तान्याश्री ने आवेदक अखिलेश कुमार की ओर से यह अर्जी शीर्ष अदालत में लगायी. एक दिन पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में नीतीश सरकार की ओर से कैविएट दायर किया गया था. इसमें सरकार की ओर से कहा गया कि अगर जाति गणना पर रोक लगाने की मांग वाली कोई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हो तो, बिना सरकार का पक्ष जाने बिना आदेश न दिया जाये.
पटना हाईकोर्ट ने दिया सरकार के पक्ष में फैसला
इससे पहले बिहार में जाति आधारित जनगणना को रोकने के लिए दाखिल याचिका को पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. कोर्ट के इस फैसले के साथ ही नीतीश सरकार का प्रदेश में जातिगत जनगणना करवाने का रास्ता साफ हो गया था. याचिकाकर्ताओं ने जाति गणना रोकने की अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए बिहार सरकार को बड़ी राहत दी थी. जाति आधारित गणना प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए पांच अलग-अलग याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई थीं, जिस पर कोर्ट में कई दिनों तक सुनवाई चली थी.
ये केंद्र का अधिकार है
इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने जाति गणना पर सवाल उठाते हुए उसे तत्काल रोकने के लिए दलील दी थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जनगणना करवाने का अधिकार केंद्र सरकार का है. अगर ऐसा बिहार सरकार करती है तो व्यक्ति की निजता के अधिकार का हनन होगा. इस पर बिहार सरकार ने अपना पक्ष रखा था. बिहार सरकार की ओर से कहा गया था कि यह जाति जनगणना नहीं बल्कि सर्वेक्षण होगा. सर्वेक्षण में जो 17 सवाल पूछे जा रहे हैं इससे किसी की निजता के अधिकार का हनन नहीं होता है. कोर्ट में बिहार सरकार ने अपना पक्ष मजबूती से रखा और कोर्ट ने भी बिहार सरकार को राहत देते हुए जाति गणना के मामले में बड़ी राहत दी थी.
क्यों की जा रही जाति गणना
बिहार में ज्यादातर राजनीतिक दल जाति गणना की लंबे समय से मांग कर रहे थे. उनका कहना है कि जाति गणना होने से राज्य में रहने वाले दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सही संख्या पता चल जाएगी. इससे उन्हें आगे बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं बनाने में आसानी होगी. अगर सही जातीय जनसंख्या का पता होगा तो राज्य में उनके मुताबिक प्रभावी योजनाएं बनाई जाएंगी. बिहार विधानसभा और विधान परिषद में 18 फरवरी 2019 तथा 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना कराने से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया. इस प्रस्ताव को भाजपा, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दे दिया.
कोर्ट के फैसले के बाद जाति गणना का काम शुरू
बिहार में भी 7 जनवरी, 2023 से जाति गणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इसके तहत विभागीय कर्मचारी डोर टू डोर जाकर गणना कर रहे हैं. गणना में कर्मचारियों के साथ शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भी लगाया गया है. गणना के तहत पहले चरण में मकानों पर नंबर डाले गए. वहीं, दूसरे चरण में लोगों से उनकी जाति पूछकर गणना की जा रही है. लंबे समय से बिहार समेत देश के कई राज्यों में जाति गणना की मांग उठ रही थी. साल 2011 में हुई गणना के बाद जातीय आधार पर रिपोर्ट बनाई गई थी, लेकिन उसे जारी नहीं किया गया. बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक में भी जाति गणना हो चुकी है.
जाति अधारित गणना क्या है?
जाति के आधार पर आबादी की गिनती को जातीय गणना कहते हैं. इसके जरिए सरकार यह जानने की कोशिश करती है कि समाज में किस तबके की कितनी हिस्सेदारी है. कौन वंचित है और कौन सबसे समृद्ध. कोई इसे जातीय गणना तो कोई जाति गणना कह रहा है. इससे लोगों की जाति, धर्म, शिक्षा और आय की जानकारी मिलने से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चल पाता है.