Patna High Court News: पटना हाइकोर्ट ने पति-पत्नी के रिश्ते में विवाद से जुड़े एक मामले पर अहम टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि केवल आरोप लगा देने से ही पति को तलाक नहीं मिल सकता जब तक की लगाये गये आरोप को कोर्ट में साबित नहीं किया गया हो. हाइकोर्ट ने पति नंद किशोर नंदन उर्फ नंद किशोर राय उर्फ पप्पु की ओर से दायर अपील को खारिज कर करते हुए उक्त बातें कही. न्यायमूर्ति पीबी बजेन्त्री और न्यायमूर्ति आलोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने इस मामले में हाजीपुर परिवार न्यायालय द्वारा सुनाए गए आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए अपील को खारिज कर दिया.
क्या है पूरा मामला…
दरअसल, नंद किशोर नंदन उर्फ नंद किशोर राय उर्फ पप्पु ने अपनी पत्नी से तलाक लेने के लिए हाजीपुर परिवार न्यायालय में तलाक का केस दायर किया था . उसमें उसने अपनी पत्नी पर यह आरोप लगाया था कि वह मानसिक रोग से ग्रसित हैं . उसका व्यवहार सामान्य नहीं है. जिस कारण उसका वैवाहिक जीवन काफी तनाव पूर्ण हैं. इस बात की सूचना जब पत्नी के पिता को दी गई तब वे अपने पुत्र के साथ आकर उसकी पत्नी को दवा दिये.जिसके बाद वह सामान्य हो गयी. दी गयी दवा को जब केमिस्ट को दिखाया गया तो उसने बताया कि दवा मानसिक बीमारी का है. उसके बाद पता चला कि पत्नी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं.
पति ने कहा- खतरे में है जीवन, पत्नी ने भी लगाया आरोप…
पति का कहना था कि पत्नी के व्यवहार से उसका जीवन खतरा में है. बीमारी का पता चलने के बाद पत्नी मायके चली गयी.शादी के चार साल बीत जाने के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ.वहीं पत्नी की ओर से जबाबी हलफनामा दायर कर कहा गया कि लगाये गये सभी आरोप बेबुनियादऔर झूठे हैं. दहेज में मांगी गई अल्टो गाड़ी नहीं दिये जाने के कारण यह आरोप लगाया गया है. कोर्ट को बताया गया कि उसकी शादी 2007 में हुई और सम्बंध विच्छेद का केस 2011 में फर्जी कागजात के आधार पर दाखिल किया गया . यही नहीं, उसका पति दूसरी शादी करके उसके साथ रह रहे हैं.
पटना हाईकोर्ट के जज ने क्या कहा…
दोनों पक्षों की ओर से पेश गवाहों की गवाही और साक्ष्य के रूप में दिए गए कागजात को देखने के बाद कोर्ट ने माना कि पति की ओर से दिए गए मानसिक रोगी के कागजात को सत्यापित करने के लिए डॉक्टर को कोर्ट में पेश नहीं किया गया . यही नहीं, शादी के तुरंत बाद मानसिक रोग का पता चलने के चार साल बाद केस दायर करने का कोई कारण नहीं बताया गया .कोर्ट ने कहा कि इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया गया है कि बीमारी ठीक हो सकती हैं या नहीं. इस प्रकार आवेदक अपने केस को साबित करने में नाकाम रहा . कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोप लगा देने से नहीं बल्कि उसे साबित भी करना पड़ता है. कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और परिवार न्यायालय के फैसले को सम्पुष्ट कर दिया.