बिहार में 11 साल पहले हुए गर्भाशय घोटाले मामले में पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुए समाचार पत्रों में सूचना प्रकाशित कराने को कहा है. जिससे इस मामले में जिन पीड़िताओं को अब तक मुआवजा नहीं मिल पाया है, वो पूरी जानकारी के साथ संबंधित अधिकारी से मिल कर मुआवजा हासिल कर सके. शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के विनोद चंद्रन और न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने इस मामले को लेकर वेटरन फोरम द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है.
छब्बीस हजार गर्भाशय निकाले जाने की अब तक जांच नहीं
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य के 38 जिलों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे की 46 हजार महिलाओं का गर्भाशय अवैध रूप से निकाल दिया गया. लेकिन, राज्य सरकार ने इनमें से छब्बीस हजार गर्भाशय निकाले जाने की अब तक जांच नहीं की है.
राज्य के मात्र आठ जिलों में ही जांच की गयी
दीनू कुमार ने बताया कि राज्य के मात्र आठ जिलों में ही जांच की गयी है. जांच किए गए जिलों में भी सभी को क्षतिपूर्ति की राशि नहीं मिल पायी है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को क्षतिपूर्ति की रकम दो लाख रुपये दी जानी थी. जबकि 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को सवा लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में दी जानी है. बिहार मानवाधिकार आयोग द्वारा भी इस संबंध में स्पष्ट आदेश दिया गया था.
कितनी पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति की धनराशि दी गई, नहीं लिया गया रिकार्ड पर
दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य ने इस बात को अब तक रिकॉर्ड पर नहीं लाया है कि कितनी पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति की धनराशि दे दी गई है और कितनों को देना बाकी है. पहले यह मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. 2017 में पटना हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर एक जनहित याचिका वेटरन फोरम द्वारा दायर किया गया था. इसमें यह आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों, डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर उसका गर्भाशय निकाल लिए गये.
क्या है गर्भाशय घोटाला
दरअसल 2011 में केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की थी. इसके तहत वैसे परिवार जो बीपीएल की श्रेणी में आते हैं, उनका 30 हजार रुपये तक का इलाज किया जाना था. इसके तहत बिहार में कुल 350 अस्पतालों को चयन किया गया था. डॉक्टरों ने बीमा योजना का लाभ लेने के लिए ऐसी कई महिलाओं के गर्भाशय को निकाल लिया था, जिन्हें सर्जरी की जरूरत नहीं थी. इनमें राशि का गबन किया गया था. इस मामले में वेन्ट्रन्स फोरम फॉर ट्रान्सपरेंसी इन पब्लिक लाइफ के राष्ट्रीय महासचिव ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इसमें कोर्ट के आदेश के बाद कमेटी ने जांच कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी.
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