माता-पिता की संपत्ति पर जबरन कब्जा करने वाले बेटे को बेदखल नहीं किया जा सकता है. यह फैसला पटना हाईकोर्ट ने एक मामले में दिया है. पटना हाइकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि माता-पिता की संपत्ति पर जबरन कब्जा करने वाले बेटे को वरिष्ठ नागरिक संरक्षण कानून के अनुसार बेदखल नहीं किया जा सकता है, लेकिन जबरन किये गये कब्जे के तहत उस संपत्ति का मासिक किराया एवं मासिक भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी है.
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन व न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने रविशंकर द्वारा इस तरह के मामले को लेकर दायर अपील को निष्पादित करते हुए यह फैसला सुनाया. हाइकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और उनकी संपत्ति की रक्षा के लिए बनाये गये कानून के तहत बेदखली के लिए पहले से पारित ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द कर करते हुए मामले को जिला मजिस्ट्रेट, पटना के समक्ष भेज दिया. कोर्ट द्वारा बेटे के कब्जे वाले तीन कमरों के उचित किराये के निर्धारण पर जांच करने का निर्देश दिया गया था.
हाइकोर्ट ने पीड़ित माता-पिता को संबंधित संपत्ति से कब्जेदारों की बेदखली सुनिश्चित करने के लिए सक्षम अदालत से संपर्क करने की छूट दे दी है . शिकायतकर्ता आरपी रॉय ने दावा किया था कि वह एक गेस्ट हाउस के मालिक हैं, लेकिन उनके सबसे छोटे बेटे रवि ने उनके गेस्ट हाउस के तीन कमरों पर जबरन कब्जा कर लिया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 73 वर्षीय आरपी राय का दावा है कि पटना के कंकड़बाग में उनका एक गेस्ट हाउस है. यह उनकी खुद की अर्जित संपत्ति है. बिहार राज्य आवास बोर्ड, पटना के द्वारा उनके पक्ष में यह सन 1992 में आवंटित की गयी है.
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शिकायतकर्ता आरपी रॉय के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में जिक्र है कि पहले उनके बेटे और बहू ने एक कमरे में रहने का अनुरोध किया. इसकी इजाजत उन्होंने दे दी. जिसके बाद उनका बेटा अपनी पत्नी और बच्चे के साथ उक्त गेस्ट हाउस में रहने चला गया. आरोप है कि बेटे ने उस गेस्ट हाउस के तीन कमरों के तालों को तोड़ दिया और अवैध रूप से उसपर कब्जा जमाकर रहने लगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब शिकायतकर्ता आरपी रॉय इस बुढापे में कई बीमारियों से ग्रसित होकर भी किराये के फ्लैट में अपनी पत्नी के साथ रहने पर मजबूर हैं. केवल मामूली पेंशन वो पाते हैं और इसलिए उसी गेस्ट हाउस से होने वाली आय पर निर्भर हैं. अपने बेटे और बहू पर उन्होंने परेशान करने का भी आरोप लगाया है.
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी पिछले साल ऐसे मामले में अहम फैसला दिया था. एक विवाद की सुनवाई में डीएम के आदेश के खिलाफ फैसला दिया गया था. जिसमें संतानों को माता-पिता के निवास, भोजन व कपड़े आदि के लिए उचित व्यवस्था की वकालत करते हुए यह भी कहा गया कि माता-पिताक की अर्जी पर संतानों को घर से निकालने का आदेश नहीं दिया जा सकता है. बता दें कि यहां के विवाद में माता-पिता के अनुरोध पर डीएम ने बेटे को घर खाली करने का आदेश दिया था. मामला दूसरी जाति की लड़की से विवाह से जुड़ा था.
गौरतलब है कि बिहार में संपत्ति विवाद को लेकर घरेलू कलह के कई मामले हाल में सामने आए हैं. मुजफ्फरपुर में पिछले साल एक युवती की हत्या इसलिए कर दी गयी क्योंकि कानून के तहत उसे संपत्ति में हिस्सा दिया जाना था. सगे भाई और उसके सौतेले पिता ने ही चाकू से गोदकर लड़की की हत्या कर दी थी. पुलिस ने आरोपित सौतेले पिता को हिरासत में ले लिया था. मृतका शादीशुदा थी और दो बच्चों की मां थी. बिहार में ऐसे कई मामले भी सामने आ चुके हैं जहां माता-पिता और संतानों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद चला है.