पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा राज्य के पिछड़ा, अति पिछड़ा, अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ा कर 65% करने पर रोक लगाने से फिलहाल इन्कार कर दिया है. इसके साथ ही हाइकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को 12 जनवरी तक जवाबी हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अधिवक्ता गौरव कुमार व अधिवक्ता नमन श्रेष्ठ द्वारा इस मामले को लेकर दायर लोकहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट का कहना था कि फिलहाल इस पर रोक नहीं लगायी जा सकती है. कोर्ट सरकार द्वारा जवाब दिये जाने के बाद और सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुनायेगा.
याचिकाकर्ता ने लोकहित याचिका दायर कर सरकार द्वारा आरक्षण को लेकर बनाये गये उक्त कानून को चुनौती देते हुए उसके अमल पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के लिए कोर्ट से अनुरोध किया गया था. याचिका में यह भी कहा गया है कि यह संशोधन जाति सर्वे के आधार पर किया गया है. अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा व अत्यंत पिछड़ा वर्ग जातियों का प्रतिशत जातिगत सर्वे में 63.13% बताया गया. इनके लिए आरक्षण 50% से बढ़ा कर 65% कर दिया गया है. संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान था. याचिका में आरोप लगाया गया कि राज्य सरकार द्वारा पारित संशोधित अधिनियम भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
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बिहार विधान मंडल ने बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ी जाति) (संशोधन)अधिनियम, 2023 और बिहार (शिक्षण संस्थानों में प्रवेश) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 पारित किया. इस राज्यपाल ने 18 नवंबर, 2023 को अपनी सहमति दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने 21 नवंबर, 2023 को गजट में इसे अधिसूचित भी कर दिया था. इसके अनुसार, जातिगत आरक्षण के दायरे को 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया गया. इसके अलावा केंद्रीय अधिनियम के तहत पहले से स्वीकृत इडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग) को 10% का आरक्षण मिलता रहेगा. संशोधित अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति को अब 20%, अनुसूचित जनजाति को 2%, पिछड़ावर्ग को 18% और अत्यंत पिछड़ावर्ग को 25% आरक्षण मिलेगा.
हाइकोर्ट में राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता ने कहा कि यह एक तकनीकी मुद्दा है. याचिकाकर्ताओं को इस एक्ट की वैधता को चुनौती देनी चाहिए थी न कि लोकहित याचिका दायर करनी चाहिए. उनका यह भी कहना था कि 50% आरक्षण की अधिकतम सीमा बहस का मुद्दा है.