पटना हाईकोर्ट ने कैदियों को हथकड़ी लगाने को लेकर दायर याचिका पर की सुनवाई, राज्य सरकार से मांगा जवाब
पटना हाईकोर्ट ने सज़ायाफ़्ता व विचाराधीन कैदियों को हथकड़ी लगाए जाने के मामले में राज्य सरकार के इंस्पेक्टर जनरल (जेल) को एक सप्ताह में शपथ-पत्र दायर करने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है.
पटना हाईकोर्ट ने सज़ायाफ़्ता व विचाराधीन कैदियों को हथकड़ी लगाए जाने के मामले में राज्य सरकार के इंस्पेक्टर जनरल (जेल) को एक सप्ताह में शपथ-पत्र दायर करने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने विधि के छात्र द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया है.
चीफ जस्टिस संजय करोल ने की सुनवाई
बता दें कि बीते दिनों विधि के छात्र अभिषेक कुमार ने एक जनहित याचिका दायर की थी. याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने शुक्रवार को सुनवाई की. जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस संजय करोल ने राज्य सरकार के इंस्पेक्टर जनरल (जेल) को कैदियों को एक जेल से दूसरे जेल में लाने व ले जाने और जेल से कोर्ट लाने व ले जाने के दौरान हथकड़ी और अन्य बेड़ियों का बलपूर्वक प्रयोग को लेकर जवाब मांगा है.
क्या है मामला ?
मामले को लेकर विधि के छात्र अभिषेक कुमार ने बताया कि सिटीजन्स फोर डेमोक्रेसी बनाम स्टेट ऑफ असम व अन्य के मामले में, वर्ष 1995 में ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कैदियों को एक जेल से दूसरे जेल में लाने व ले जाने तथा जेल से कोर्ट लाने व ले जाने के दौरान हथकड़ी और अन्य बेड़ियों का बलपूर्वक प्रयोग नहीं किया जाए. बावजूद प्रदेश में कैदियों को कोर्ट लाने व वापस जेल ले जाने के दौरान कैदियों के साथ अमानविय व्यव्हार किया जाता है.
‘अधिकारियों का कार्य अमानवीय’
याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए फैसले के बावजूद बिहार की पुलिस कैदियों को हथकड़ी लगाने का काम कर रही है. अधिकारियों द्वारा की जा रही इस कार्रवाई को अमानवीय कार्य कहा जा सकता है. याचिका कर्ता ने यह भी कहा है कि यदि इसी तरह से कैदियों के साथ व्यवहार जारी रखने के अनुमति दी जाती है, तो यह न्याय की एक बड़ी विफलता होगी.