लोकल पॉलिटिक्स: मेयर पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू, टटोल रहे मन

पटना : पार्षदों के चुनाव के बाद अब मेयर पद के लिए जोड़-घटाव शुरू हो चुका है. मतगणना के एक दिन बाद अभी तक किसी गुट ने अपने उम्मीदवार के नाम की अाधिकारिक घोषणा तो नहीं की है, मगर चर्चा कई नामों को लेकर शुरू हो गयी है. जीत की खुमारी उतरने के साथ ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2017 7:48 AM
पटना : पार्षदों के चुनाव के बाद अब मेयर पद के लिए जोड़-घटाव शुरू हो चुका है. मतगणना के एक दिन बाद अभी तक किसी गुट ने अपने उम्मीदवार के नाम की अाधिकारिक घोषणा तो नहीं की है, मगर चर्चा कई नामों को लेकर शुरू हो गयी है. जीत की खुमारी उतरने के साथ ही उम्मीदवार प्रत्याशियों ने फोन पर अपने समर्थकों का मन टटोलना शुरू कर दिया है.

दूसरी तरफ चुनाव में अधिकांश पुराने पार्षदों को जनता द्वारा बाहर का रास्ता दिखाने के कारण मेयर को लेकर कोई स्पष्ट गुट भी नहीं दिख रहा है. इस बार जिन जनप्रतिनिधियों ने मेयर बनने की तैयारी की है, वे सबसे पहले गुट बनाने की कोशिश में लगे हैं, ताकि पहले एक गुट खड़ा किया जाये और फिर प्रस्तावक तैयार कर अपने पक्ष में पार्षदों की लामबंदी हो और मेयर के सीट पर कब्जा किया जा सके. कुल मिला कर नये पार्षद ही इस बार मेयर के किंगमेकर बननेवाले हैं.
अफजल व विनय पप्पू गुट पर केंद्रित रही है राजनीति : बीते सात वर्षों से निगम की राजनीति पूर्व मेयर अफजल इमाम व पूर्व उपमहापौर विनय कुमार पप्पू को लेकर केंद्रित रही है. दोनों के गुटों में आर-पार की होती रही है. अफजल इमाम मेयर, तो कभी विनय पप्पू व उनके पक्ष के लोग उप मेयर होते रहे हैं. वहीं हाल के एक वर्ष से अमरावती देवी उपमहापौर बनी हैं, जो अफजल इमाम के पक्ष की थीं. इस बार अफजल गुट व विनय कुमार पप्पू गुट के पार्षद कम जीत कर आये हैं. इसलिए इस बार दोनों गुट नये पार्षदों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं.
जदयू व भाजपा समर्थक पार्षदों का बन सकता है गुट : संभावना यह भी है कि नगर निगम सरकार में नया गठबंधन निकल कर सामने आये. चुनाव परिणाम के बाद चर्चा का बाजार गरम है कि भाजपा व जदयू समर्थक पार्षदों का एक गुट निकल कर सामने आये और राजद समर्थक पार्षदों का एक अलग खेमा बन कर निकले.
चलेगा पैसे का खेल करोड़ों करने होंगे खर्च
चुनाव के बाद एक बात तो यह है कि किसी भी पार्षद को करोड़ों रुपये दावं पर लगाना होगा. भले ही कोई तमाम राजनीतिक कोशिश कर ले, लेकिन अंत में उम्मीदवार को हाॅर्स ट्रेडिंग का सहारा लेना ही होगा. पहले भी निगम में इस तरह का खेल परदे के पीछे होता रहा है, लेकिन इस बार कोई गुट इतना ताकतवर नहीं हैं कि अपने गुट के पार्षदों को साथ ले और पांच-दस पार्षदों को पैसे के बल पर अपने पक्ष में कर लिया जाये. इस बार नये पार्षदों की संख्या निर्णायक होगी. दावं जितना बेहतर होगा, जीत भी उतनी ही सुनिश्चित होगी.
10 लाख के ऑफर
मेयर पद पर अपनी दावेदारी रखनेवाले उम्मीदवारों ने पार्षदों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश शुरू कर दी है. कुछ वेट एंड वाच के मोड में हैं, तो किसी ने अभी से ही पार्षदों को पैसे ऑफर करना शुरू कर दिया है. नये पार्षदों में से कइयों के पास दावत में शामिल होने और पैसे की बात तय कर लेने की सूचना भेजी जा रही है. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक पार्षद ने बताया कि अभी तक एक पक्ष से मुझे दस लाख का ऑफर आ चुका है. देखते हैं अभी कितने लोग ऑफर लेकर आते हैं.
उपमहापौर का भी ऑफर
पैसे के अलावा उप महापौर व सशक्त स्थायी समिति में जगह देने की बात भी चल रही है. निगम में उप मेयर का पद आरक्षित नहीं होता, इसलिए कई लोगों को इसका लालच दिया जा रहा है. उप महापौर पद दिलाने के पीछे मेयर उम्मीदवारों का तर्क है कि आप अधिक-से-अधिक पार्षदों का समर्थन लेकर मेयर बनाइए और हम आप को उप मेयर के पद पर सपोर्ट करेंगे. इसके अलावा जो लोग गुट के हैं और उनके पास एक-दो और पार्षदों का समर्थन है, उनको मेयर की कैबिनेट यानी सशक्त स्थायी समिति में जगह देकर समर्थन लेने की बात चल रही है.

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