लालू के नाम पर चलती है बहुत पत्रकारों की नौकरी : तेजस्वी
पटना : उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा है कि बिहार में न जाने कितने पत्रकारों की नौकरी राजद प्रमुख लालू प्रसाद के नाम पर चलती है. उन्होंने कहा कि करीब चार दशक से लालू जी राष्ट्रीय राजनीति के मजबूत स्तंभों में से एक रहे हैं. यह बात किसी को पसंद हो या ना हो, […]
पटना : उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा है कि बिहार में न जाने कितने पत्रकारों की नौकरी राजद प्रमुख लालू प्रसाद के नाम पर चलती है. उन्होंने कहा कि करीब चार दशक से लालू जी राष्ट्रीय राजनीति के मजबूत स्तंभों में से एक रहे हैं. यह बात किसी को पसंद हो या ना हो, देश की राजनीति में निर्विवाद रूप से शीर्ष नेता बने हुए हैं. चाहे केंद्र या राज्य में सत्ता से दूर रहे या सत्ता का हिस्सा बने. कभी उन्हें ग्वाला तो कभी चुटीले और मजाकिया अंदाज के लिए मसखरा बताया गया. इस पर भी जब दिल न भरा तो हर छोटी-मोटी असफलता पर राजनैतिक अंत की गाथा सुना दी गयी. हर बार पूर्वाग्रह पीड़ितों को खून का घूंट पीना पड़ा. कभी रेलमंत्री के अपने कार्यकाल से आलोचकों को पानी भरने पर मजबूर किया तो बार बार दर्ज की गयी अपनी वापसी से विरोधी के छाती पर सांप लोटवा दिया.
उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने आज दिल की बात शृंखला के तहत कहा कि लालू जी और उनके परिवार से मीडिया घरानों व उनके कॉरपोरेट कर्मियों का विशेष लगाव किसी से छुपा नहीं है. यह उसी प्रकार का लगाव है जिस तरह का लगाव भाजपा का लालू जी से है. दुखती नब्ज वाला एहसास जिसमें न तो पसंद किया जाए और नही नजरअंदाज किया जाये. सौतेला व्यवहार बताना, इसे कमतर करने के बराबर माना जायेगा.
सामाजिक न्याय के अपने संघर्ष से जिस ऐतिहासिक सामाजिक बदलाव की उन्होंने नींव रखी, वह क्रांतिकारी था. समाज के बड़े किंतु दबे वर्ग का शांतिपूर्ण ढंग से जागरण अपने आप में एक उपलब्धि है. पर हर उल्लेखनीय उपलब्धि और कार्यों को छुपा पर नकारात्मक पहलू का कहीं से भी पैदा कर देने की कवायद भाजपा समर्थित मीडिया खूब पहचानती है.
लालू जी सच्चे गौ पालक हैं, गौ सेवक हैं. दूसरों को इसी बात पर महिमामंडित करने वाली मीडिया ने कभी लालू जी की इस बात पर प्रकाश नहीं डाला. शायद गौ पालक वर्ग से आने वाले इस नेता की संभ्रांत वर्ग के गढ़ राजनीति में बहुसंख्यक समर्थन से उथल पुथल मचा देना आज भी लोग पचा नहीं पाए हैं. आडवाणी के रथ को रोककर देश को सांप्रदायिक आग से बचाने वाले इस नायक को कभी अपेक्षित श्रेय नहीं मिला. लालू जी सच्चे उपासक हैं और अत्यंत धार्मिक भी. हर पर्व, त्यौहार को पूरी श्रद्धा से मनाते हैं. पर कभी उन्हें एक सच्चे धार्मिक हिंदू की छवि से नहीं नवाज़ा गया. क्या दूसरे धर्मों के धर्मावलंबियों पर आग उगलना ही आपको सच्चा हिंदू कहलवा सकता है? छठ पूजा पूरा परिवार पूरी तल्लीन होकर मनाता है, जिसपर पूरे सूबे की नज़र होती है. पर जैसे वह किसी और धर्म का पर्व हो, धर्म के प्रति समर्पण और श्रद्धा को उजागर ही नहीं किया जाता है.
बिहार के हंसी, ठिठोली और गीत संगीत वाली लोक लुभावन होली को लालू जी ने ही राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया. लालू जी के घर ही पूजा उपासना के लिए मंदिर है, पर मीडिया ने कभी दिखाया? योगी जी की गायें कुल कितने किलो गोबर करती है, किस रंग का गोबर करती है, यह मीडिया कर्मी को कंठस्थ है. तेज प्रताप जी शिरडी, वृंदावन, विंध्यवासिनी या मथुरा जाते हैं तो उसे तीर्थाटन के बजाय सैर सपाटा घोषित कर दिया जाता है.
यही काम जब मोदी या योगी करते हैं तो मीडिया के मुख से ऐसे मोती बरसते हैं कि जैसे ईश्वर की उपासना करने स्वयं ईश्वर के अवतार ही पधारे हों. लालू जी हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन हज़ारों गरीबों को भोजन करवाते हैं, पर सिर्फ मेहमान नेताओं के फुटेज पर ही कैमरे अटक जाते हैं. लालू जी से जुड़े हर सकारात्मक पहलू को छुपा देने या नज़र अंदाज़ करने की कोशिश होती है. कुरेद-कुरेद कर छोटी छोटी बातों को बड़ा करके सनसनी पैदा की जाती है. नकारात्मक बनाया जाता है. जांच से पहले ही घोटाला शब्द जोड़ दिया जाता है. अगर लालू परिवार से कोई प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाएगा तो कहा जाएगा कि जनता को लचर स्वास्थ्य व्यवस्था पर आश्रित छोड़ खुद निजी अस्पताल में इलाज करवाते हैं.
सरकारी अस्पताल में इलाज करवाते हैं तो कहते हैं सरकारी तंत्र का दुरुपयोग हो रहा है. बीजेपी समर्थित मीडिया के लोगों, कितनी घृणा और पूर्वाग्रह पालिएगा. अगर वंचित और बहुसंख्यक समुदाय का उत्थान इतना कचोटता है तो सीधे मुद्दे पर आघात कीजिए, खुले में आइये, अपने पारंपरिक वैमनस्य और श्रेष्ठता की भावना को स्वीकारिए और बदल दीजिए अगर बदलने की ताकत हो तो.