जानें एम्स के टॉपरों के सफलता के क्या है राज?
एम्स प्रवेश परीक्षा : पटना के निपुण को चौथा स्थान पटना : ऑ ल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) और जवाहर लाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जिपमर) की प्रवेश परीक्षा में पटना के राजेंद्रपथ निवासी निपुण चंद्रा ने परचम लहराया है. एम्स प्रवेश परीक्षा में निपुण चंद्रा ने चौथा और […]
एम्स प्रवेश परीक्षा : पटना के निपुण को चौथा स्थान
पटना : ऑ ल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) और जवाहर लाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जिपमर) की प्रवेश परीक्षा में पटना के राजेंद्रपथ निवासी निपुण चंद्रा ने परचम लहराया है. एम्स प्रवेश परीक्षा में निपुण चंद्रा ने चौथा और जिपमर में पहला स्थान हासिल कर बिहार को गौरवान्वित किया है. इस सफलता के लिए निपुण ने अपने माता-पिता के साथ-साथ शिक्षक और अपने कठिन परिश्रम व लगन को श्रेय दिया है.
उन्होंने प्रथम प्रयास में ही यह सफलता अर्जित की है. निपुण 10वीं और 12वीं की पढ़ाई डीएवी, भुवनेश्वर से की है. उन्होंने इसी वर्ष 94.8% अंकों के साथ 12वीं पास की है. इनके पिता नितिन चंद्रा ओड़िश कैडर के आइएएस अधिकारी हैं. वह फिलहाल भुवनेश्वर में सोशल सिक्योरिटी एंड इंपेयरमेंट्स ऑफ पर्संस ऑफ डिसएबिलिटी डिपार्टमेंट के प्रधान सचिव हैं, वहीं मां शालिनी चंद्रा एडवोकेट हैं. निपुण ने कहा कि आठवीं क्लास से ही मेडिकल की तैयारी की इच्छा मन में थी. 10वीं के बाद से मैंने इनकी तैयारी शुरू कर दी. मेरे फैसले को माता-पिता ने काफी सपोर्ट किया, जिससे आत्मविश्वास काफी बढ़ा और पहली बार में ही सफलता हासिल कर ली.
अब तक साथ नहीं रखा मोबाइल
मोबाइल से अब तक दूरी बनाये रखने वाले निपुण ने कहा कि पिता जी चाहते हैं कि मैं एक सफल डॉक्टर बनूं. इसके लिए मैं भी प्रयासरत रहा. मेरी इच्छा शुरू से ही एम्स, दिल्ली में पढ़ने की थी और एम्स रिजल्ट आने के बाद यह इच्छा पूरी हो गयी. मैंने बोर्ड को भी उतना ही महत्व दिया, जितना मेडिकल की तैयारी को.
बस बोर्ड को ध्यान में रख कर मेडिकल की तैयारी भी जारी रही. बोर्ड में बेसिक प्रश्न पूछे जाते हैं, जबकि मेडिकल में इसका लेवल हाइ रहता है. मैंने हमेशा घर पर सात से आठ घंटे की पढ़ाई की. इसके बाद स्कूल और कोचिंग में पढ़ाई की. मैं हमेशा अपने लक्ष्य को प्राथमिकता दी, इसलिए अब तक मोबाइल से दूर हूं. सोशल नेटवर्किंग पर कोई भी एकाउंट भी नहीं है. पढ़ाई के दौरान कभी मोबाइल की जरूरत भी नहीं पड़ी.
मां ने वकालत की प्रैक्टिस कम कर दी
बेटे की सफलता पर शालिनी चंद्रा काफी खुश हैं. वह बेटे को सफलता दिलाने के लिए उनके साथ हमेशा खड़ी रहीं. इस दौरान शालिनी चंद्रा ने अपनी वकालत की प्रैक्टिस कम कर दी और बेटे के सपने को सकार करने में जुट गयीं. पढ़ाई के समय बेटे का खान-पान पर ध्यान दिया. वहीं, निपुण ने कहा कि मां ने समय दिया और पिता ने आत्मविश्वास बढ़ाया और समय-समयपर सही मार्गदर्शन किया.
पांचवां रैंक : हर्ष बनना चाहते हैं कार्डियक सर्जन
पांचवां रैंक हासिल करने वाले किशनगंज जिले के ठाकुरगंज निवासी हर्ष अग्रवाल कार्डियक सर्जन बनना चाहते हैं. वह कहते हैं कि मेरी इच्छा शुरू से ही एम्स, दिल्ली में पढ़ने की थी. मैं आठ से 10 घंटे पढ़ाई पर देता था. कोचिंग नहीं रहने पर घर में सेल्फ स्टडी पर ध्यान दिया. हर्ष के पिता एमके अग्रवाल इंडियन ऑयल में सीनियर मैनेजर और मम्मी श्वेता अग्रवाल आइआइटी, खड़गपुर से पासआउट है. हर्ष ने बताया कि मेरा मकसद हार्ट पेसेंट के लिए रिसर्च करना है. मेरा मकसद जरूरतमंदों की सेवा करना है. मैं अपने कैरियर में हर दिन पांच पेसेंट की फ्री चेकअप करूंगा. मेरा लक्ष्य समाज की सेवा करना है. मैं मेडिकल में रिसर्च पर जोर दूंगा.
छठा रैंक : ऋषभ बोले, िसर्फ एम्स के बारे में सोचा था
एम्स की प्रवेश परीक्षा में छठा रैंक हासिल करने वाले ऋषभ राज जमुई के झाझा के रहने वाले हैं. उनके पिता अजीत वर्णवाल बीड़ी का बिजनेस करते हैं.
ऋषभ कहते हैं, मैंने केवल एम्स के बारे में सोचा था, और किसी के बारे में सोचा ही नहीं. कार्डियक या न्यूरो के विशेषज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाने की तमन्ना रखने वाले ऋषभ रिसर्च भी करना चाहते हैं.
अपनी सफलता में पिता की भूमिका के बारे में वह कहते हैं, पापा ने कभी भी किसी चीज की कमी का एहसास नहीं होने दिया. यहां तक कि नंबर भी अगर कम आते थे, तो वह उत्साह ही बढ़ाते थे. बेटे की सफलता के बाद गर्व की अनुभूति कर रहे अजीत कहते हैं, एक बार मैं दिल्ली गया था. ऋषभ भी साथ में था, जब एम्स के पास गया, तो बेटे से कहा कि देखो, यही एम्स है. यहां देश के साथ विदेश के लोग इलाज के लिए आते हैं.
तब ऋषभ ने पहली बार कहा था, अब यहीं नामांकन लूंगा. आज ऋषभ ने अपने कहे वचन को पूरा किया. अजीत ने बताया कि कि ऋषभ का शुरू से ही कहना था कि जब नामांकन लूंगा, तो एम्स में ही लूंगा. पढ़ाई के बारे में अजीत बताते हैं, वह यह जिस क्लास में रहा, पहले स्थान पर रहा.