पटना : बिहार की राजधानी पटना में 16 जून को किसान समागम का आयोजन किया गया. इस समागम मेंपूरे बिहार से किसानोंको बुलाया गया.किसानोंने 2017-22 तक के लिए तैयार हो रहे कृषि रोड मैप के लिए अपने सुझाव सरकार के सामने रखा और कई शिकायतें भी रखीं. इस समागम में 10 घंटे तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसानों की बात सुनते रहे. बाद में, उन्होंने अपनी भी राय रखी. नीतीश कुमार ने किसानों के साथ जमीन पर बैठकर भोजन भी किया. राजनीतिक जानकार किसान समागम के आइने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अलग सियासी स्टाइल देख रहे हैं. ज्ञात हो कि देश में किसानों की कर्ज माफी का मसला अभी चर्चा के केंद्र में है. चंहुओर यह मांग उठने लगी है कि किसानों के कर्ज माफ हों. वैसे में बिहार के इस किसान समागम के मायने कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.
किसानों की कर्ज माफी
ज्ञात हो कि अन्य प्रदेशों से होते हुए किसानों के विरोध प्रदर्शन और मांग की आंच अब धीरे-धीरे बिहार में प्रवेश कर चुकी है. बिहार में भी बिखरे पड़े किसानों के संगठन कर्ज माफी की मांग करने लगे हैं. अंग्रेजी अखबार में छपी खबर की मानें तो नीतीश कुमार इसके पक्ष में बिल्कुल नहीं दिखते. बिहार में किसानों ने कई जगह हाइवे जाम किया और विरोध प्रदर्शन को रफ्तार देने की कोशिश में लगे हुए हैं. हालांकि, नीतीश कुमार का मानना है कि किसानों को कर्ज माफी नहीं दूसरी और जरूरतें उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है. जिस दिन राजधानी में किसान समागम का आयोजन हुआ, ठीक उसी दिन पटना के गर्दनीबाग में भारी संख्या में किसान जुटे और उन्होंने अखिल भारतीय किसान एवं मजदूर संगठन केबैनरतलेदूध बहाए, सड़कों पर सब्जियां फेंक कर अपना विरोध प्रकट किया और धरना भी दिया. अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर किसानों का दावा रहा कि वे ब्रह्मेश्वर मुखिया के समर्थक हैं. ब्रह्मेश्वर मुखिया वहीं हैं, जिन्हें रणवीर सेना बनाकर कई नरसंहारों को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
पटना में हुआ था किसान समागम
गर्दनीबाग में जुटे किसानों का यह आरोप था कि सरकार कुछ चुने हुए किसानों को बुलाकर बैठक कर रही है. किसानों का आरोप था कि किसानों की किसी को परवाह नहीं है, उसमें नीतीश कुमार की सरकार भी शामिल है. मीडिया रिपोर्ट कहती है कि अब किसान इस प्लान में हैं कि मध्य प्रदेश के मंदसौर से एक यात्रा निकालेंगे और वह दो अक्तूबर को चंपारण किसान आंदोलन की100वीं वर्षगांठ पर बिहार के चंपारण में जाकर खत्म होगी. इधर, नीतीश सरकार का मानना है कि कर्ज माफी से किसानों की समस्या का निराकरण नहीं होगा, इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई रणनीति बननी चाहिए. उन्होंने समागम में साफ कहा कि किसानों की आमदनी बढ़े, इस पर वह विचार कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार के पाले में अपनी बात डालते हुए, यह भी कहा कि इसके लिए केंद्र सरकार को ठोस पहल करनी होगी.
नीतीश का स्टैंड रहता है सबसे अलग
पहली बात जो राजनीतिक जानकार बताते हैं, वह यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अपना एक अलग राजनीतिक रुतबा है. वह कई मौके पर अपने स्टाइल में सियासी मुद्दों पर अपना खुद का स्टैंड कायम करते हैं. जब पीएम मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया, उस वक्त नीतीश कुमार ने उसका समर्थन कर अपनी ही बिरादरी और समर्थित पार्टियों के आलोचना का शिकार हुए. हाल के मामले को देखें, तो मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर फायरिंग के बाद एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उपवास रखा, लेकिन नीतीश कुमार ने ऐसा कुछ नहीं किया. उन्होंने किसानों के साथ बैठकर भोजन करना ज्यादा पसंद किया. जानकारों की मानें तो हाल में नीतीश कुमार ने दिल्ली में बुलायी गयी एंटी एनडीए फ्रंट की बैठक में सोनिया गांधी की दावत को छोड़ दी, लेकिन पीएम मोदी के साथ लंच करने पहुंच गये. फिलहाल, सियासत के नजरिये से देखें तो यह साफ दिखता है कि नीतीश कुमार के सियासत की अपनी एक खास स्टाइल है, चाहे वह मुद्दा कोई भी हो.
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