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लकवा के लक्षण दिखे, तो तीन घंटे में पहुंचें डॉक्टर के पास

बिहार चैप्टर की ओर से आयोजित सेमिनार में जुटे 150 डॉक्टर पटना : प्रदेश में लकवा के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. अब 40 से 45 साल के उम्र वाले मरीजों में भी लकवा की बीमारी देखने को मिल रही है. अगर लकवा का लक्षण दिखे तो तीन घंटे के अंदर डॉक्टर के पास […]

बिहार चैप्टर की ओर से आयोजित सेमिनार में जुटे 150 डॉक्टर
पटना : प्रदेश में लकवा के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. अब 40 से 45 साल के उम्र वाले मरीजों में भी लकवा की बीमारी देखने को मिल रही है. अगर लकवा का लक्षण दिखे तो तीन घंटे के अंदर डॉक्टर के पास पहुंचें. यह कहना है एम्स, पटना के पीएमआर विभाग के संजय पांडे का.
वे इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन बिहार चैप्टर की ओर से आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे.
गांधी मैदान के समीप स्थित एक होटल में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन भुवनेश्वर एम्स के डॉ जगन्नाथ साहू व चैप्टर के अध्यक्ष डॉ अजीत वर्मा ने किया. सेमिनार में फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन से जुड़े करीब 150 डॉक्टरों ने भाग लिया. डॉ संजय पांडे ने बताया कि दिल्ली, भुनेश्वर, लखनऊ आदि कई राज्यों के डॉक्टरों ने सेमिनार में भाग लिया और लकवा व नस से संबंधित होने वाले रोगों पर चर्चा की.
दर्द से निजात के लिए न्यूरो रिहैबिलिटेशन जरूरी
एम्स, पटना के पीएमआर विभाग की डॉ निहारिका सिन्हा ने क्रोनिक रिजनल पेन सिंड्रोम पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि दर्द के साथ-साथ जलन, झनझनाहट और स्कीन के कलर में बदलाव हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. डॉ निहारिका ने कहा कि यह दर्द बहुत पुराना होता है, जिसे मरीज समझ नहीं पाते हैं. यह मरीज के शरीर के एक हिस्से में हो सकता है. कभी-कभी यह दर्द मरीज के पूरे शरीर में भी होता है. इससे निजात के लिए न्यूरो रिहैबिलिटेशन जरूरी है.
20 लाख में एक तिहाई मरीज की हो जाती है मौत
लखनऊ के किंग जाॅर्ज मेडिकल कॉलेज से आये डॉ अनिल गुप्ता ने कहा कि लकवा के लक्षण के बाद भी लोग सतर्क नहीं रहते हैं. नतीजा वह अधिक बढ़ जाता है, जिसे अंत में कंट्रोल करने के लिए डॉक्टरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. 20 लाख लकवा मरीजों में एक तिहाई की मौत हो जाती है.
वहीं, पीएमसीएच पीएमआर विभाग के डॉ मनोज कुमार ने कहा कि अगर बच्चा जन्म के दौरान नहीं रोता है तो उनके परिजनों को अलर्ट हो जाना चाहिए. क्योंकि बच्चे के नस में तरह-तरह की दिक्कतें होती हैं. लकवा मारने की संभावना अधिक हो जाती है.

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