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जानिए कैसे शराबबंदी का मजा उठा रहे डॉक्टर व कर्मचारी

नशामुक्ति केंद्रों में अब नहीं आ रहे मरीज शशिभूषण कुंवर पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद पूरे प्रदेश में बने 39 नशामुक्ति केंद्रों पर प्रतिनियुक्त डाॅक्टर और नर्सों के दिन बिना काम किये मस्ती से गुजर रहे हैं. इन केंद्रों पर अब नाममात्र के मरीज आते. कई केंद्र ऐसे हैं, जहां […]

नशामुक्ति केंद्रों में अब नहीं आ रहे मरीज
शशिभूषण कुंवर
पटना : राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद पूरे प्रदेश में बने 39 नशामुक्ति केंद्रों पर प्रतिनियुक्त डाॅक्टर और नर्सों के दिन बिना काम किये मस्ती से गुजर रहे हैं. इन केंद्रों पर अब नाममात्र के मरीज आते. कई केंद्र ऐसे हैं, जहां महीनों से कोई मरीज नहीं आया.
मरीजों के अभाव में नशामुक्ति केंद्रों पर तैनात डाॅक्टर मौज कर रहे हैं. प्रदेश में पांच अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है. इसके पहले राज्य में 39 नशामुक्ति केंद्रों की स्थापना की गयी थी. पटना जिले में दो और हर जिला अस्पताल में एक-एक वीवीआइपी सेंटर स्थापित किया गया. अब यहां पर पदस्थापित डॉक्टर, नर्स, नोडल ऑफिसर, काउंसेलर, फार्मासिस्ट से लेकर अन्य कर्मचरियों को काम से छुटकारा-सा मिल गया है.
शराब की लत छुड़ाने को लेकर खोले गये इन सेंटरों पर अब कोई शराबी आता ही नहीं है. 30-35 जिलों में स्थापित केंद्रों में तो किसी दिन एक भी मरीज न तो इलाज के लिए और न ही काउंसेलिंग के लिए आता है. शराबबंदी के समय अनुमान किया गया था कि राज्य में गंभीर रूप से शराब पीनेवालों की संख्या करीब तीन-चार लाख है. अगर ऐसे लोग अचानक शराब छोड़ते हैं, तो उनमें अधिकतर के स्वास्थ्य को काफी नुकसान होगा. इनको अस्पताल में इलाज की आवश्यकता होगी.
किशनगंज जिले के सदर अस्पताल में स्थापित नशामुक्ति केंद्र में 436 दिनों में सिर्फ 47 मरीज ही ओपीडी में आये. इसी तरह से कैमूर जिले में पूर्ण शराबबंदी के बाद अब तक 59 मरीज ही इलाज के लिए पहुंचे हैं. रोहतास जिले में अब तक 59 मरीज ओपीडी में पहुंचे. करीब डेढ़ दर्जन जिलों में औसतन छह माह में एक भी मरीज ओपीडी में भी परामर्श के लिए नहीं आया.
पटना सिटी में है मरीजों का आना-जाना
हालांकि, पटना सिटी के अगमकुआं स्थित संक्रामक रोग अस्पताल में मरीजों की आवाजाही लगी रहती है. यहां बने नशा विमुक्ति इकाई केे नोडल चिकित्सा पदाधिकारी डॉ संतोष कुमार ने बताया कि अब तक 1620 मरीजों का ओपीडी में इलाज हुआ है, जबकि 423 मरीज भरती हुए हैं. इकाई में आठ महिलाएं भी ओपीडी में इलाज करा चुकी है, जो गुटखा या नशा की दूसरी लत की शिकार थीं. पिछले 10 दिनों की स्थिति देखी जाये, तो यहां 14 मरीज भरती हुए हैं, जबकि ओपीडी में 43 मरीज आये. 20 जून को तीन मरीज आये, जिनमें दो भरती हुए.
436 दिनों में भरती मरीजों की स्थिति
जिला भरती मरीज
पटना
पीएमसीएच 327
एनएमसीएच 420
सीवान 167
गया 156
कटिहार 114
पूर्वी चंपारण 92
दरंभगा 85
वैशाली 75
नालंदा 64
समस्तीपुर 63
औरंगाबाद 62
भागलपुर 55
पूर्णिया 42
बेगूसराय 40
मुजफ्फरपुर 35
किशनगंज 25
मधेपुरा 25
सीतामढ़ी 23
सहरसा 22
सारण 21
बक्सर 18
अररिया 17
शेखपुरा 17
भोजपुर 13
गोपालगंज 12
खगड़िया 12
जमुई 12
मुंगेर 12
बांका 10
मधुबनी 08
शिवहर 08
लखीसराय 07
अरवल 07
सुपौल 07
रोहतास 07
कैमूर 05
नवादा 03
जहानाबाद 00
एसी वार्ड, टीवी व खाने की लजीज व्यवस्था पर मरीज नदारद
नशा मुक्ति केंद्रों की हालत कुछ उसी तरह की हो गयी है कि आप किसी आगंतुक के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था करें और मेहमान आये ही नहीं. राज्य में 39 केंद्रों पर 10 लाख रुपये खर्च कर 10-20 बेडों का वार्ड तैयार किया गया.
वार्ड भी ऐसा, जैसे कोई गेस्ट हाउस हो. वार्ड में एसी, पंखा, टेलीविजन, टेलीफोन, इंटरनेट, पानी के लिए आरओ की व्यवस्था, साफ व स्वच्छ टायलेट, हर दिन साफ व नयी चादरें, मरीजों के मनोरंजन के लिए टीवी के अलावा मैगजीन, समाचार पत्र व खेल की व्यवस्था की गयी है. खाने के लिए मरीज के साथ उनके एक परिजन के लिए वीआइपी मुफ्त भोजन की व्यवस्था है. लेकिन, इन सारी सुविधाओं के बाद भी मरीज ही नहीं आ रहे हैं. शुरू के दिनों को छोड़ दिया जाये, तो अभी 34 जिलों में एक भी मरीज भरती के लिए नहीं आ रहे हैं. इसी तरह से 30 जिलों में एक भी मरीज इलाज या परामर्श के लिए नहीं आता.

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