पटना : दिन भर आम लोगों का काम करना और उसके बाद शाम में रोजा खोल कर इफ्तार करना. पटना जिले के मुसलिम अधिकारियों का आजकल यही रूटीन है. सुबह की शुरुआत सेहरी से होती है उसके बाद न भोजन न पानी और दिन भर सरकारी काम में आम लोगों की उम्मीद पर खरा उतरना. शरीर को काम के अनुकूल बनाये रखते हुए शाम में इबादत और फिर रोजा खोलकर इफ्तार कर अगली सुबह की तैयारी पर लग जाना. पटना के मुसलिम अधिकारियों से उनके रमजान के बारे में चर्चा की गयी तो उन्हें अपने पुराने दिन याद आ गये.
गरमी में गीला तौलिया सिर पर रखते थे
मैं 12-13 साल की उम्र से ही रोजा रख रहा हूं. उस वक्त से लगातार अभी तक खुदा की रहमत बनी हुई है, कभी छोड़ा नहीं. सरकारी सेवा में आने के बाद भी उस दौरान का एक वाकया मुझे याद आ रहा है. 1990-91 के जून महीने में जब काफी गरमी पड़ रही थी तो मुझे तौलिया भिंगो कर सिर पर रखना पड़ा था.
वजैनुद्दीन अंसारी, अपर समाहर्ता, पटना
बचपन में भूख लगने पर खेलने चले जाते थे
हमने पहला रोजा क्लास तीन में रखा था. उस वक्त घर वालों के साथ रोजा रख लिया, लेकिन बचपन तो बचपन ही होता है. भूख लग जाती थी. ऐसे मौके पर खेलने चले जाते थे. रमजान की एक खासियत यह भी है कि यह तय मौसम में नहीं होता है. चांद कैलेंडर पर आधारित होने के कारण सर्दी और गरमी या फिर वर्ष बाद आता है. तबीयत ठीक नहीं होने पर भी इसे छोड़ने का विकल्प है.
शमसीर मलिक, बीडीओ, फुलवारी
फुटबॉल भी खेलता था
रोजा तो मैं 1970 से रख रहा हूं. एक वक्त तो ऐसा भी था जब 18-19 साल का था उस वक्त रोजे में फुटबॉल खेलने चला जाता था. फुटबॉल के जोश में भूख प्यास सब गायब हाे जाती थी.
शमीम मजहरी, सीओ, पटना