पटना: सरकारी टालमटोल रवैये से नाराज पटना हाइकोर्ट ने सोमवार को तीन मामलों में नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव को तलब किया. मौर्यालोक कीव्यवस्था को दुरुस्त किये जाने को लेकर सुनवाई मंगलवार को होगी.
वहीं, सरेआम मांस-मछली बेचने के मामले में 28 अप्रैल व खटालों को हटाने से जुड़े मामले में 31 अप्रैल प्रधान सचिव को उपस्थित रहने का आदेश दिया गया है.
तीनों मामले में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा व विकास जैन के खंडपीठ ने सरकारी जवाब को असंतोषजनक करार दिया. मौर्यालोक की नारकीय व्यवस्था को सुधारने के लिए दायर याचिका की पिछली सुनवाई में बुडको ने पैसों की कमी की बात कही थी. इस कमी की पूर्ति के लिए हुडको से 69.65 करोड़ बतौर लोन लेना था. सोमवार को बुडको के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि तकनीकी पेंच के कारण लोन अटका है. पटना नगर निगम से अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता है. इसके अनुसार मौर्यालोक में कर उगाही का काम बुडको करेगी. साथ ही मौर्यालोक के ऊपरी तल पर दो तल्ले और बनाकर पैसे उगाहने की कोशिश की जायेगी. इस पर न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा ने कहा कि भूखा व्यक्ति हलवा-पूरी नहीं खाता. भवन के ऊपरी तल पर नियमानुकूल निर्माण से कोर्ट को आपत्ति नहीं है.
लेकिन, भवन की मरम्मत, साफ-सुथरे शौचालयों के प्रावधान और लटकती बिजली की तारों के बहाने पैसा उगाहने की मंशा है और इसे न्यायालय के आदेश के पीछे छिप कर किया जा रहा है, जिसे खंडपीठ कभी बरदाश्त नहीं करेगा. गौरतलब है कि यह मामला 25 जून 2013 को दायर किया गया था, लेकिन अब तक भवन की समस्याओं के समाधान के लिए योजना तक नहीं बन सकी है. मंगलवार को इस मामले में नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव व पटना नगर निगम के आयुक्त से योजना व समाधान को लेकर ठोस जवाब तलब किया जायेगा. सड़क किनारे मांस-मछली की बिक्री और खटालों को हटाने को लेकर दायर जनहित याचिका के सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि सरकार के पास ठोस योजनाओं का अभाव है. डॉ अशोक कुमार सिन्हा व राम जन्म महतो की याचिका पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि खटाल हटाने के मामले में वर्ष 1990 में अरुण कुमार मुखर्जी बनाम राज्य सरकार का आदेश ही काफी है. कोलकाता में इस समस्या से निजात पाने के उपाय से सबक लेकर वर्ष 1990 में ही कार्रवाई करने का आदेश दिया था. लेकिन, नतीजा आज भी सिफर है. इस मामले की अगली सुनवाई 31 अप्रैल को होगी. इस दिन नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव से ठोस उपाय व आदेशों के अनुपालन के साथ हाजिर रहने का आदेश दिया गया है. स्वामी राकेश की याचिका पर भी न्यायालय का यही रूख था. कोर्ट ने पिछले आदेश में सरकार से पूछा था कि खुले में मांस काटने व टांगकर बेचनेवाली कितनी दुकानों को बंद किया गया, लेकिन सरकारी जवाब में इसकी संख्या का कोई जिक्र नहीं था. इस मामले में प्रधान सचिव को 28 अप्रैल को हाजिर रहने का आदेश दिया गया है.
..ऐसे में तो गिर जायेगा भवन
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितेष आयोग के भवन की नींव गीली जमीन पर है. इसकी बगल में आधा किमी तक बहने वाले 15 फुट के नाले का पानी भवन के प्रथम तल के ऊपर और निर्माण की इजाजत नहीं देता. लिहाजा, भवन का निर्माण वहीं तक संभव है. यह बात कमिशन के अधिवक्ता संजय सिंह ठाकुर ने एनआइटी, पटना के पाइल टेस्ट रिपोर्ट को पेश करते हुए हाइकोर्ट में कहीं. सोमवार को प्रशांत सिन्हा व कृष्ण मोहन प्रसाद की याचिका पर संयुक्त सुनवाई हुई. रिपोर्ट को देखते हुए न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा व विकास जैन की खंडपीठ ने भवन के आगे के निर्माण में आये इस बाधा पर चिंता प्रकट करते हुए नगर निगम को नाला सफाई व अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया. कमीशन के निबंधक व अधिवक्ता के अनुरोध पर भवन की छत पर 35 लाख के व्यय से संचिकाओं के संचय हेतु अस्थायी निर्माण का भी आदेश दिया.
आइओसी से वसूली पर रोक
पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आइओसी) से मांगे गये अग्रिम कर के भुगतान की वसूली पर अंतरिम रोक लगा दी है. सोमवार को पटना हाइकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रेखा एम दोशित व न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह के खंडपीठ ने आइओसी द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए इस मामले में बिहार सरकार को 9 अप्रैल तक जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. दरअसल, वाणिज्यकर विभाग ने आइओसी को 22 फरवरी तक वर्ष 2008 से लेकर 2012 तक का बकया 400 करोड़ रुपये के वाणिज्य कर के अलावा 400 करोड़ का वाणिज्यकर अग्रिम के रूप में भुगतान करने को कहा था. इस मामले में आइओसी ने पटना हाइकोर्ट में एक याचिका दायर कर अग्रिम वाणिज्यकर के भुगतान का विरोध किया है. साथ ही आइओसी का कहना है कि राज्य सरकार का यह पत्र हमें महज चार दिनों की मोहलत दे रहा है. आइओसी की ओर से अधिवक्ता एसडी संजय ने अपनी दलील पेश की, जबकि सरकार की ओर से प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने अपनी बात रखी.