भ्रष्टों के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन में क्यों नहीं लगते ईमानदार लोग!
कल्पना कीजिए कि कुछ उत्साही और ईमानदार लोग मिलकर एक ऐसा संगठन बना लें जो भ्रष्टाचार व अपराध के खिलाफ सिर्फ स्टिंग ऑपरेशन करें यानी डंक अभियान चलाये? जाहिर है कि वह संगठन रातों-रात देश में लोकप्रिय हो जायेगा. क्योंकि आज बिहार सहित पूरे देश में आम लोग सरकारी-गैर सरकारी भ्रष्टाचार से काफी परेशान हैं. […]
कल्पना कीजिए कि कुछ उत्साही और ईमानदार लोग मिलकर एक ऐसा संगठन बना लें जो भ्रष्टाचार व अपराध के खिलाफ सिर्फ स्टिंग ऑपरेशन करें यानी डंक अभियान चलाये? जाहिर है कि वह संगठन रातों-रात देश में लोकप्रिय हो जायेगा. क्योंकि आज बिहार सहित पूरे देश में आम लोग सरकारी-गैर सरकारी भ्रष्टाचार से काफी परेशान हैं. आज हर क्षेत्र के भ्रष्ट लोग इतने अधिक ताकतवर हो चुके हैं कि उनके खिलाफ अधिकतर मामलों में शासन की ओर से निर्णायक और सबक सिखाने वाली कार्रवाई नहीं हो पा रही है. ईमानदार मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी भ्रष्ट सरकारी अफसरों और कर्मियों पर काबू पाने में कई बार खुद को असमर्थ पाते हैं.
अपने मुख्यमंत्रित्वकाल के प्रारंम्भिक वर्षों में नीतीश कुमार ने अपने दल के लोगों से अपील की थी कि वे भ्रष्ट सरकारीकर्मियों को पकड़ने में निगरानी ब्यूरो की मदद करें. पर ऐसा नहीं हो सका. क्योंकि अपवादों को छोड़ दें तो आज अधिकतर राजनीतिक दलों में ऐसे ही कार्यकर्ताओं की भरमार है जो बिना कुछ किये रातों-रात कुछ पा लेना चाहते हैं. दरअसल स्टिंग ऑपरेशन वही लोग चला सकते हैं जो निःस्वार्थ समाजसेवा की भावना से ओतप्रोत हों.
कुछ निजी चैनल के पत्रकार डंक अभियान चलाते रहते हैं.उस अभियान का सकारात्मक असर भी पड़ता है. कई बार सरकार और विधायिका भी डंक अभियान पर कार्रवाई करने को बाध्य हो जाती है. 2005 में संसद ने अपने 11 सदस्यों की सदस्यता समाप्त कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी बाद में संसद के उस फैसले पर अपनी मुहर लगायी. उन सांसदों पर सदन में प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था. उनमें से राज्यसभा के एक सदस्य पर तो सांसद फंड के बदले में घूस लेने का आरोप था.
ये सभी सांसद एक स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ में आ गये थे.पर इस देश में भ्रष्टाचार की भीषण समस्या की व्यापकता को देखते हुए इस काम में अधिकाधिक लोगों के लग जाने की जरूरत महसूस की जा रही है. अन्यथा देर हो जायेगी. अपनी सरकार में भ्रष्टाचार से परेशान एक राज्य के मुख्यमंत्री ने कई साल पहले अपने उत्साही और सिद्धांतवादी युवकों से अपील की कि वे भ्रष्टों के खिलाफ डंक अभियान चलाएं. पर दूसरे ही दिन उस राज्य के बड़े अफसरों के संगठन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मुख्यमंत्री की इस अपील का खुलेआम विरोध कर दिया. मुख्यमंत्री ने फिर अपनी बात नहीं दुहरायी. इससे भी समझा जा सकता है कि यह समस्या कितनी गहरी है और उसके सामने ईमानदार नेता भी कितने लाचार हैं. हालांकि आम नेताओं में ईमानदारी तो और भी तेजी से घटती जा रही है. सरकारी भ्रष्टाचार के कारण देश के विकास की गति धीमी है.
कई बार अपने ड्राइंग रूम की बातचीत में कुछ लोग यह रोना रोते हैं कि भले लोगों के लिए राजनीतिक दलों में कोई जगह ही नहीं है. उनमें से कई अच्छी मंशा वाले लोग भी होते हैं.
वैसे लोग डंक अभियान को परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से मदद कर सकते हैं. हां, इस मामले में सरकार को भी डंक अभियान के बारे में स्पष्ट गाइडलाइन जारी करनी चाहिए. यदि सरकारों की मंशा अच्छी है तो उसे ऐसे अभियानों से मदद ही मिलेगी. अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में कुछ बंधनों के साथ स्टिंग ऑपरेशन की पूरी छूट है.
इसे कानून के कार्यान्वयन की दिशा में विधिसम्मत तरीका माना जाता है. 2003 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी डंक अभियान पर कुछ दिशा-निर्देश दिये थे. उससे ठीक पहले एक केंद्रीय मंत्री का मीडिया द्वारा स्टिंग ऑपरेशन हुआ था. उस घूसखोर मंत्री को यह कहते हुए कैमरे पर पकड़ा गया था कि पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा की कसम, खुदा से कम भी नहीं. अदालत के दिशा-निर्देश का मूल तत्व यही है कि आम आदमी या पत्रकार व्यापक जनहित में ऐसा कर सकते हैं. पर किसी के भयादोहन के लिए इस तरीके का इस्तेमाल नहीं हो सकता. जाहिर है कि उस समय की अपेक्षा देश में भ्रष्टाचार बढ़ा है.
जीएसटी के बेहतर नतीजों का इंतजार : आर्थिक इतिहासकार अंगस मेडिसन के अनुसार पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी.
पहली सदी में विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में भारत का योगदान 32.9 प्रतिशत था. संभवतः भारत को सोने की चिड़िया जानकर ही अनेक विदेशी हमलावरों ने समय-समय पर इस देश पर हमला किया. पंद्रहवी सदी में भारत का योगदान करीब 25 प्रतिशत था. सन 1820 में यह आंकड़ा घटकर 16 प्रतिशत रह गया. सन 1950 में दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान सिर्फ 3 प्रतिशत रह गया था. यानी विदेशी लुटेरों ने पूरा दोहन किया. अब करीब छह प्रतिशत है. आजादी के बाद यह और भी बढ़ता, पर देसी लुटेरे भी कम नहीं हैं. केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि जीएसटी लागू हो जाने के बाद केंद्र और राज्यों का राजस्व बढ़ेगा. अब देखना है कि वह कितना बढ़ता है. राजस्व के बढ़ने का सीधा और सकारात्मक असर विकास पर होगा. वैसे कोई कितनी भी अच्छी व्यवस्था बनाये, उसमें छेद करने का रास्ता भ्रष्ट लोग निकाल ही लेते हैं. जीएसटी एक अच्छी व्यवस्था मानी जा रही है. पर, भगवान इसे भ्रष्टों की नजर से बचाएं!
क्या हुआ महेश शाह की घोषणा का? : गुजरात के एक बिल्डिंग व्यवसायी महेश शाह गत साल 30 सितंबर को अहमदाबाद स्थित आयकर कार्यालय गये. उन्होंने स्टेचुरी फॉर्म जमाकर अपने पास नकद 13 हजार 860 करोड़ रुपये होने की जानकारी दी. आयकर विभाग ने उनका फॉर्म स्वीकार कर लिया. यानी विभाग ने उनकी घोषणा को मान लिया. पर दिसंबर, 2016 में शाह ने कह दिया कि कुछ व्यवसायियों और नेताओं ने उनका इस्तेमाल किया.
नेता और व्यवसायी पीछे हट गये. इसलिए मैं पहली किस्त नहीं दे पाया. शाह को गिरफ्तार भी किया गया था. पर बाद में आयकर महकमे ने शाह के साथ क्या सलूक किया, यह पता नहीं चल सका. आयकर विभाग को चाहिए कि वह अब भी शाह के उस दावे और पीछे हटने के बारे में पूरा विवरण देश को बता दे. केंद्र सरकार काला धन और बेनामी संपत्ति की खोज खबर के काम में गंभीरता से लगी हुई है. इस काम पर अधिकतर लोग सरकार से खुश हैं. यदि लोगों को महेश शाह के बारे में भी बता दिया जाता तो वे और भी खुश होते. क्योंकि अधिकतर लोग अब यह समझने लगे हैं कि प्रभावशाली लोगों के पास जो बेनामी संपत्ति या काला धन है, वह आम जनता का हक मार कर ही जुटाये गये हैं.
मजदूरी मद में किसानों को सब्सिडी देने का सुझाव : सन 2012 में तत्कालीन केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार ने सुझाव दिया था कि सरकार खेतिहर मजदूरों की मजदूरी के मद में 50 प्रतिशत सब्सिडी किसानों को देने का प्रावधान करे. आत्महत्याओं की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह सिफारिश की थी. पर मनमोहन सरकार ने उस सिफारिश पर ध्यान नहीं दिया.
वह तो दूसरे ही कामों में व्यस्त थी. वैसे मनरेगा कार्यक्रम को किसानों की खेती से जोड़ने की भी सलाह दी गयी थी. याद रहे कि दिनानुदिन खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है. उसे उबारने के लिए सुझाव तो बहुत हैं, पर उन पर अमल कम ही होता है. एक बार फिर कर्ज माफी का दौर जारी है. यह भी जरूरी काम है. पर यह स्थायी हल नहीं है. किसानों को राहत देने के लिए कुछ स्थायी काम करने होंगे. पता नहीं यह कौन सरकार करेगी!
और अंत में : एक फेसबुक मित्र ने टिप्पणी की है कि हे ईश्वर, मुझे कभी इतना बड़ा आदमी मत बनाना ताकि निहित स्वार्थवश मैं साहुकार को साहुकार और चोर को चोर कह पाने का साहस खो दूं!