भाजपा नेताओं को लगेगी किसानों की आह : संजय सिंह

पटना : जदयू के मुख्य प्रवक्ता और विधान पार्षद संजय सिंह ने कहा कि भाजपा नेताओं को किसानों की आह लगेगी. देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और केंद्रीय मंत्री कर्ज माफी को फैशनेबल कह रहे हैं. ये केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन है और घमंड उनके सर चढ़ कर बोल रहा है. पिछले तीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 26, 2017 8:06 AM
पटना : जदयू के मुख्य प्रवक्ता और विधान पार्षद संजय सिंह ने कहा कि भाजपा नेताओं को किसानों की आह लगेगी. देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और केंद्रीय मंत्री कर्ज माफी को फैशनेबल कह रहे हैं. ये केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन है और घमंड उनके सर चढ़ कर बोल रहा है.
पिछले तीन सालों का आंकड़ा देखें तो 36 से 40 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन जिस तरह से केंद्रीय मंत्री ने कर्जमाफी को फैशनेबल बताया है वह अन्नदाता का अपमान है. उन्हें किसानों से माफी मांगनी चाहिए. सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश के मंदसौर में फायरिंग में किसानों के मारे जाने की घटना हृदयविदारक है. फसलों के दाम मांगने के लिए लड़ रहे किसानों पर गोली चलायी गयी. किसानों का संघर्ष अपनी फसलों का वाजिब दाम देने की मांग को लेकर था, लेकिन भाजपा की सरकार ने फसल की उचित कीमत देने के बजाय अन्नदाताओं की ही जान ले ली.
प्रधानमंत्री ने घटना के बाद इस के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा है. इतना समय हो गया वे चुप्पी साधे हुए हैं. उन्होंने कहा कि देश में किसानों की बदहाली का जो दौर चल रहा है, उसकी बुनियादी वजह केंद्र सरकार की किसान विरोध नीति है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह की ओर से जो नीतिगत निर्णय लिये जा रहे हैं, वह न सिर्फ किसान विरोधी हैं, बल्कि कृषि के मूल सिद्धांत के विपरीत हैं. साफ लग रहा है कि देश के किसानों की समस्या और कृषि क्षेत्र से जुड़े मुद्दे केंद्र सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं हैं.
केंद्र सरकार ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर देने का वादा तो किया, लेकिन उसे पूरा नहीं किया. इसके बाद डीजल सब्सिडी खत्म कर दिया गया और अब किसानों को सीधे सहयोग करने व आत्मनिर्भर बनाने के बदले किसानों को सहायता दिये जाने के नाम पर कृषि खाद और बीज कंपनियों को प्राथमिकता दी जा रही है. इसका दुष्परिणाम यह है कि केंद्र सरकार हर साल कृषि के नाम पर खर्च को बढ़ा कर दिखा रही है, जबकि यह राशि किसानों के बदले कृषि क्षेत्र के बढ़े कंपनियों और पूंजीपतियों के पास जा रहा है.

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