राष्ट्रपति चुनाव : राजद नरम, तो कांग्रेस ने नीतीश पर कसा तंज
कई तरह के फैसले लेते हैं कई सिद्धांत वाले : आजाद नयी दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव को लेकर महागठबंधन में मतभेद तेज होते जा रहे हैं. राजद के बाद अब कांग्रेस ने भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर लिया है. नीतीश की नेतृत्ववाली बिहार की महागठबंधन सरकार में राजद, जदयू और कांग्रेस […]

कई तरह के फैसले लेते हैं कई सिद्धांत वाले : आजाद
नयी दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव को लेकर महागठबंधन में मतभेद तेज होते जा रहे हैं. राजद के बाद अब कांग्रेस ने भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर लिया है. नीतीश की नेतृत्ववाली बिहार की महागठबंधन सरकार में राजद, जदयू और कांग्रेस शामिल हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने सोमवार को कहा कि जो लोग एक सिद्धांत में भरोसा करते हैं, वे सिर्फ एक फैसला लेते हैं. लेकिन, जिन लोगों को कई सिद्धांतों में भरोसा है, वे कई तरह के फैसले लेते हैं. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, वह (नीतीश) पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने बिहार की दलित की बेटी को हराने का फैसला किया है, हम नहीं.
विपक्ष की ओर से पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाने के फैसले पर नीतीश ने कहा था कि विपक्षी गठबंधन ने बिहार की बेटी को हराने के लिए मैदान में उतारा है. मालूम हो कि अभी तक इस मामले को लेकर कांग्रेस नीतीश या जदयू को निशाने पर लेने से बच रही थी. इसके पहले राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को समर्थन के सवाल पर नीतीश कुमार को नसीहत देते हुए था कि यह उनकी ऐतिहासिक भूल होगी.
गोपाल कृष्ण गांधी पर विपक्ष था सहमत कांग्रेस ने थोपा अपना उम्मीदवार : त्यागी
पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के हमले के बाद जदयू ने कांग्रेस पर पलटवार किया है. जदयू के राष्ट्रीय महासचिव सह राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने सोमवार को कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जो दोषारोपण किया गया है, वह कांग्रेस पार्टी के नेताओं की खीज का नतीजा है. प्रभात खबर से बातचीत में उन्होंने खुलासा किया कि वाम दलों ने पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने की मांग की थी.
इस पर तीन जून को चेन्नई में एम करुणानिधि के जन्मदिन पर विपक्षी दलों के बीच बातचीत भी हुई और उनके नाम का जदयू समेत डीएमके, टीएमसी, एनसीपी ने समर्थन भी किया. गोपाल कृष्ण गांधी के नाम की घोषणा हो जाती, तो वे ही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते और राष्ट्रपति भी बनते. उस समय शिवसेना भी एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में नहीं थी और बीजू जनता दल के नवीन पटनायक भी गोपाल कृष्ण गांधी के खिलाफ नहीं थे. इसके बावजूद कांग्रेस के नेता व नेतृत्व पार्टी का उम्मीदवार थोपना चाहते थे और उन्होंने अपनी पार्टी की नेता को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बनाया. उन्होंने दावा किया कि 22 जून को दिल्ली में विपक्षी दलों की बैठक में एनसीपी, टीएमसी व जेडीएस कांग्रेस के उम्मीदवार के पक्ष में नहीं थे.
शरद पवार अंतिम तौर पर डॉ भीमराव अांबेडकर के पौत्र प्रकाश अांबेडकर को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाने पर अड़े रहे, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के मान-मनौव्वल पर मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया गया. विपक्ष ने जदयू के सामने पहले कभी किसी भी स्तर की बैठक में मीरा कुमार के नाम की चर्चा नहीं की थी. शुरुआती वार्ता में ही मीरा कुमार का नाम आता, तो जदयू उसका विरोध नहीं करता, लेकिन इसी बीच एनडीए ने बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया.
भाजपा किसी दलित को राष्ट्रपति बनाना चाहती है, इस पर पता चला. जब रामनाथ कोविंद का नाम आया था, तो मीरा कुमार या फिर प्रकाश अांबेडकर का नाम राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के तौर पर नहीं था. नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के नाते राज्यपाल के रूप में रामनाथ कोविंद के श्रेष्ठ प्रदर्शन, संवैधानिक मर्यादा का पालन करने, उनकी सादगी-सज्जनता पर सहमत हुए. नीतीश कुमार ने अपनी इस भावना से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी को अवगत करा दिया था. इसमें न तो कोई ताल-तिकड़म थी और न ही मीरा कुमार का नाम आया था कि उनको हराने का कोई इरादा था.
त्यागी ने कांग्रेस व राजद नेताओं से अपील की है कि जनता ने जिन आदर्शों व कार्यक्रमों के लिए महागठबंधन को जिताया है, उसकी उम्र घटाने का कोई प्रयास न करें. त्यागी ने दो टूक कहा कि जदयू को किसी दल से धर्मनिरपेक्षता पर नीतिगत संबंधी फैसलों पर नसीहत की आवश्यकता नहीं है. पूरे देश को मालूम है कि धर्मनिरपेक्षता के उच्च आदर्शों को ध्यान में रखते हुए जदयू ने अपने सांसदों व विधायकों की संख्या बल को कुरबान किया था. एनडीए में जब थे, तो लोकसभा में 22 सांसद थे, लेकिन आज दो सांसद हैं. पहले जदयू के 118 विधायक थे, लेकिन आज 71 हैं. वहीं, राजद 22 विधायकों से 81 पर पहुंच गया है.
कांग्रेस भी चार से 27 विधायकों तक पहुंच गयी है. जदयू ने गंठबंधन व वादों के सिद्धांत की खातिर नुकसान उठाया है और हमारे सहयोगी मित्रों को फायदा मिला है. उन्होंने कहा कि जदयू विपक्षी एकता का मार्गदर्शक रहा है. धर्मनिरपेक्षता, समता, भ्रष्टाचाररहित प्रदेश व समाजवादी आंदोलन के शीर्ष नेताओं लोहिया व कर्पूरी की नीति व नारे आज भी हमारे विश्वास में हैं. रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी अपनी तरह का अलग मामला है. हमारी प्रतिबद्धता सिर्फ नारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे लिए मजहब की तरह है.
राजद ने प्रवक्ता को हटाया विधायक भाई वीरेंद्र तलब
पटना : महागठबंधन में तकरार के बीच राजद ने सोमवार को पार्टी प्रवक्ता डाॅ अशोक कुमार सिन्हा को पदमुक्त कर दिया है. आरोप है कि वह पार्टी की अनुमति के बगैर विभिन्न चैनलों पर बहसों में भाग ले रहे थे.
इधर महागठबंधन के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देनेवाले पार्टी विधायक भाई वीरेंद्र को लालू प्रसाद ने सोमवार को अपने आवास पर तलब किया. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने सोमवार को कहा कि महागठबंधन पर बयान देने का अधिकार सिर्फ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद काे है, न कि किसी विधायक या अन्य नेता काे.
किसी भी सूरत में महागठबंधन से संबद्ध मामला तीनों पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्षों का मसला है. अगर किसी को किसी प्रकार की परेशानी है, तो संबंधित प्लेटफॉर्म पर ही अपनी बात रखे, न कि मीडिया के जरिये. उपमुख्यमंत्री ने कहा कि महागठबंधन में मीडिया द्वारा ऐसे व्यक्ति का बयान चलाया जाता है, जो पार्टी की तरफ से बोलने के लिए नामित नहीं है.
कुछ ऐसे लोगों पर पार्टी की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई की गयी है. आगे से अन्य कोई नेता इस तरह से अनुशासन का उल्लंघन करेगा, तो उस पर भी कार्रवाई होगी. राजद भले ही मास पार्टी है, लेकिन अनुशासन से कोई समझौता नहीं करेंगे. किसी के निजी मंतव्य और हित को पार्टी के मत से जोड़ने की चेष्टा करने वालों पर कार्रवाई होगी.
उन्होंने कहा कि महागठबंधन के शीर्ष नेताओं में बेहतर समन्वय है. बिहार की न्यायप्रिय जनता ने महागठबंधन की नीतियों और कार्यक्रमों को अपार समर्थन दिया है. बीजेपी और उनके समर्थक संस्थानों को हमारी एकता हजम नहीं हो रही है. महागठबंधन के भी कुछ नेता व्यक्तिगत हितों को लेकर अनावश्यक बयानबाजी करते रहते हैं, ताकि खबरों में बने रहे.
तेजस्वी ने कहा कि भाजपा समर्थित मीडिया का भी एक वर्ग जिस दिन से महागठबंधन बना है, उसी दिन से इसके खिलाफ दुष्प्रचार में लगा हुआ है. शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब उन्होंने यह रिपोर्ट की हो कि महागठबंधन मजबूत, एकजुट और बिहार के लिए समर्पित है.
शायद वो यह काम इसलिए नहीं करते कि महागठबंधन का विचार उनके सरोकारों को पूर्ण नहीं करता. हर दल में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो मैंडेट या जनभावना का समर्थन न करके अपने निजी हितों को सर्वोपरि रखते हैं. ऐसे लोगों की अपनी व्यक्तिगत धारणाएं होती हैं, जिन्हें वे मीडिया के मार्फत दल और गठबंधन से जोड़ देते हैं. वास्तविकता में ऐसा नहीं है. मीडिया में किसी दल का मंतव्य केवल उसके आधिकारिक प्रवक्ता ही दे सकते हैं.
उन्होंने कहा कि महागठबंधन की देन है कि नवंबर, 2015 से लेकर मार्च, 2017 तक देश में अमन-चैन था. यूपी चुनाव के बाद से तो पूरे देश में अराजकता और दहशत का माहौल है.
कब तीन लोगों का झुंड किस व्यक्ति को धर्म, भोजन, पहनावे या छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर मार दे, कौन जानता है? बीजेपी प्रायोजित भीड़ ने लोकतंत्र को डरतंत्र में तब्दील कर दिया है. जो लोग महागठबंधन टूटने की आशा कर रहे हैं, उनके लिए इतना ही कहा जा सकता है कि यह सपना पूरा नहीं होने वाला है. 2019 में बीजेपी को हराने में महागठबंधन की सबसे अहम भूमिका होगी.