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गरीब बच्चों ने मारा छक्का, अमीरजादे फिसले

आरटीइ (राइट टू एजुकेशन) के हथियार से बच्चों ने किया प्रतिभा को साबित रिंकू झा पटना : ये दो केस महज उदाहरण हैं. ऐसे कई बच्चे हैं, जिनके लिए स्कूलों के दरवाजे बंद थे. लेकिन इन्होंने कड़ी मेहनत से शिक्षा के अधिकार को अपना हथियार बनाया. स्कूल में जबरदस्ती नामांकन लिया. जिस भी स्कूल ने […]

आरटीइ (राइट टू एजुकेशन) के हथियार से बच्चों ने किया प्रतिभा को साबित
रिंकू झा
पटना : ये दो केस महज उदाहरण हैं. ऐसे कई बच्चे हैं, जिनके लिए स्कूलों के दरवाजे बंद थे. लेकिन इन्होंने कड़ी मेहनत से शिक्षा के अधिकार को अपना हथियार बनाया. स्कूल में जबरदस्ती नामांकन लिया. जिस भी स्कूल ने इन्हें मौका दिया, इन्होंने अपनी प्रतिभा को दिखाया. क्लास की पढ़ाई में ऐसा छक्का लगाया कि दूसरे सारे बच्चे पीछे रह गये. यह कोई एक साल की बात नहीं है, पिछले तीन वर्षों से स्कूलों के रिजल्ट में आरटीइ नामांकित बच्चे बेहतर कर रहे है.
2017 में भी बेहतर रहा रिजल्ट : शिक्षा के अधिकार के तहत नामांकन 2011 से शुरू हुआ. हर साल इन बच्चों का रिजल्ट दूसरे नॉर्मल बच्चों से बेहतर रहता है, लेकिन 2017 में अधिकांश स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के तहत 25 फीसदी बच्चों का रिजल्ट 90 से 95 फीसदी तक रहता है.
सर्व शिक्षा अभियान की मानें, तो 2017 के रिजल्ट में आरटीइ के 25 फीसदी बच्चों का रिजल्ट 90 से 95 फीसदी तक आया है. यह रिजल्ट उस स्कूल के अन्य बच्चों से बेहतर है. केंद्रीय विद्यालय, बेली रोड में छठी क्लास तक में अभी तक आरटीइ वाले बच्चे नामांकित हैं. हर सेक्शन में 10-10 बच्चे आरटीइ वाले है. हर आठ से नौ बच्चे को ए ग्रेड आया है.
देख रहे सपने, पूरा करने का बना रहे हौसला : जिन्हें कभी उम्मीद नहीं थी कि वे स्कूल भी जायेंगे, आज वे अपने भविष्य का सपना देख रहे हैं. कंकड़बाग केंद्रीय विद्यालय में चौथी क्लास में पढ़ रहा विश्वनाथ पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहता है. क्योंकि जिस माेहल्ले में वह रहता है, उस मोहल्ले में हर रात गुंडे आते हैं. इससे मोहल्ले वाले परेशान हैं. वहीं इंटरनेशनल स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढ़ रही विभा कुमारी ने बताया कि उसे डाॅक्टर बनना है. उसकी मां बहुत बीमार रहती है. पापा नहीं हैं. डाॅक्टर बन कर वह मां का इलाज करेगी.
स्कूल नहीं लेते नामांकन: पटना के अधिकांश स्कूल आरटीइ के 25 फीसदी नामांकन लेने में आनाकानी करते हैं. जो भी स्कूल नामांकन लेते हैं, वे विभाग, सरकार या फिर सीबीएसइ के दबाव में आकर नामांकन लेते हैं. अधिकांश स्कूलों के ऊपर तो दबाव का भी कोई असर नहीं होता है. केंद्रीय विद्यालय को छोड़ दें, तो अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में 20
से 25 बच्चे ही आरटीइ के तहत नामांकित मिलेंगे.
आयुष राज पत्रकार नगर का रहने वाला है. आयुष के पिता माली का काम करते हैं. शिक्षा के अधिकार के तहत केंद्रीय विद्यालय, कंकड़बाग में नामांकन 2014 में हुआ था. नामांकन में कई महीने लग गये थे. नामांकन देरी से होने के बाद भी आयुष का रिजल्ट बेहतर रहा. इस बार भी आयुष को क्लास में 95 फीसदी अंक और ए ग्रेड मिला है. अभी आयुष स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ रहा है.
रानी बाल्डविन एकेडमी की पांचवी की छात्रा है. रानी के पिता वेंडर का काम करते हैं. शिक्षा के अधिकार के तहत छह महीने मशक्कत के बाद रानी का नामांकन स्कूल में हो पाया था. 2013 में नामांकन के बाद से ही हर साल रानी क्लास में ए ग्रेड प्राप्त करती रही है. 2014 से लगातार रिजल्ट 96 फीसदी रह रहा है. 2017 में भी रानी को 96 फीसदी अंक आये हैं.
क्या कहना है इनका
आरटीइ के 25 फीसदी नामांकन वाले बच्चों का रिजल्ट बहुत ही बेहतर हो रहा है. 90 से 95 फीसदी तक 2016 में रिजल्ट हुआ है. बेहतर रिजल्ट होने के बाद भी प्राइवेट स्कूल नामांकन नहीं ले रहे हैं.
राम सागर सिंह, डीपीओ, डीइओ
इस बार 25% बच्चों का रिजल्ट साधारण बच्चाें से अच्छा हुआ है. अधिकांश आरटीइ वाले बच्चे 95% से ज्यादा अंक लाये हैं.
आर वल्लभम, प्राचार्य, केवी, बेली रोड
हमारे स्कूल में आरटीइ वाले बच्चों की संख्या कम है. लेकिन जो भी नामांकित हैं. उनका रिजल्ट हर साल बेहतर होता है. इस बार रिजल्ट 95 फीसदी हुआ.
राजीव रंजन, प्रिसिंपल, बाल्डविन एकेडमी

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