अगर इस्तीफा देना पड़ा तो लालू परिवार का ही कोई सदस्य लेगा बिहार सरकार में तेजस्वी की जगह
पटना: सीबीआइ की छापेमारी के बाद राजद ने साफ कर दिया है कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव अभी सरकार से किसी भी सूरत में इस्तीफा नहीं देंगे. कानूनी प्रावधानों के तहत यदि तेजस्वी यादव को इस्तीफा देना पड़ा तो लालू परिवार के ही किसी सदस्य को उनकी जगह मिल सकती है. पार्टी के दूसरे वरिष्ठ […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
July 9, 2017 8:09 AM
पटना: सीबीआइ की छापेमारी के बाद राजद ने साफ कर दिया है कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव अभी सरकार से किसी भी सूरत में इस्तीफा नहीं देंगे. कानूनी प्रावधानों के तहत यदि तेजस्वी यादव को इस्तीफा देना पड़ा तो लालू परिवार के ही किसी सदस्य को उनकी जगह मिल सकती है. पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं का भी आेहदा बढ़ाया जा सकता है. इसमें बड़े भाई तेजप्रताप यादव भी हो सकते हैं. पार्टी सूत्रों का मानना है कि सिर्फ केस में आरोपित बनाये जाने और कानूनी बाध्यता के बिना ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा तो इसके बाद राजद अपनी आगे की रणनीति तय करेगा. उनके खिलाफ कानूनी संकट की स्थिति में पूरी पार्टी साथ होगी. फिलहाल राजद की कोर टीम ने यह तय कर लिया है कि सिर्फ मुकदमे की स्थिति में तेजस्वी यादव के इस्तीफे का सवाल ही नहीं है.
परिवार पर कानूनी संकट की स्थिति में कुनबे का ही कोई सदस्य पार्टी का नेतृत्व करेगा. राजद ने यह भी साफ कर दिया है कि किसी भी हाल में महागठबंधन की सरकार पर कोई आंच नहीं आने दिया जायेगा. कोर टीम का तर्क है कि राजद किसी भी सूरत में भाजपा को राजनीतिक लाभ नहीं देना चाहता है. इसलिए उपमुख्यमंत्री पर कानूनी संकट आया तो भी इसका असर महागठबंधन की सेहत पर नहीं पड़ेगा. सरकार अपनी गति से चलती रहेगी. शुक्रवार की देर रात हुई बैठक का लब्बोलुआब यही रहा.
इसके बाद शनिवार की सुबह भी पार्टी के बड़े नेता 10, सर्कुलर रोड पर एकत्र हुए और ताजा राजनीतिक हालात पर चर्चा की. इस दौरान 27 अगस्त की रैली को लेकर भी मंत्रणा हुई. बाहर निकल प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि पूरी पार्टी एकजूट है और पटना में ऐतिहासिक रैली का आयोजन करेंगे. इसके पहले खुद उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने छापेमारी के बाद कहा था कि वह सरकार से इस्तीफा नहीं देने जा रहे हैं. बिहार विधानसभा के 243 सदस्यों में राजद के 81 विधायक हैं. जबकि, जदयू के 70 और कांग्रेस के 27 सदस्य हैं. तीनों दलों को मिला कर विधायकों की संख्या 178 हो जाती है. सरकार को बने रहने के लिए मात्र 122 विधायकों के समर्थन की जरूरत है.
तेजस्वी के इस्तीफे पर भी अलग-अलग राय
शनिवार को प्रभात खबर की टीम ने शहर के कुछ बड़े विधि विशेषज्ञों से बातचीत की. उनमें कुछ मामले को बेहद गंभीर बता रहे थे. वे तेजस्वी की ओर से इस्तीफा नहीं दिये जाने और सीबीआइ से सहयोग नहीं करने की स्थिति में संवैधानिक और कानूनी संकट खड़े होने की बात कह रहे थे. इसके विपरीत, कुछ की मान्यता थी कि केवल एफआइआर में नाम आने से कुछ नहीं हो जाता है. जब तक तेजस्वी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिलता और चार्जशीट दायर नहीं किया जाता, उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है. मामला 11 वर्ष पुराना होने और उस समय तेजस्वी की उम्र महज 16-17 साल होने पर भी विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी. कुछ ने जुबेनाइल एक्ट के अंतर्गत कम सजा की बात कहीं, जबकि कुछ ने कहा कि सब कुछ अनजाने में और बिना उनकी सहमति से हो रहा था, तो वे बालिग होने के बाद उस संपत्ति पर मालिकाना हक छोड़ सकते थे. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं, इसलिए दोषी साबित होने पर कम उम्र का उन्हें अधिक लाभ नहीं मिलेगा.
केवल एफआइआर के आधार पर इस्तीफा सही नहीं
जितना बढ़ा-चढ़ा कर कहा जा रहा है, उतना गंभीर मामला नहीं है. लालू जी के आवास से जब्त किये गये कागजात व अन्य वस्तुओं की सूची भी अभी तक सामने नहीं आयी है. यदि तथ्यात्मक रूप से इनमें कुछ मिलता है, तो भी रेल मंत्री रहते हुए लालू जी की ओर से किये गये घोटालों के लिये उनकी पत्नी या बेटे को आरोपित बनाना उचित नहीं. यदि उनकी सीधे तौर पर इसमें भूमिका नहीं हो तो खासकर मामला और भी कमजोर हो जाता है. क्योंकि, घटनाक्रम के समय तेजस्वी यादव की उम्र केवल 16-17 साल की थी. जहां तक तेजस्वी के इस्तीफा देने या नीतीश कुमार की ओर से उन्हें हटाने का प्रश्न है, केवल एफआइआर के आधार पर ऐसा करना सही नहीं. देश में और भी कई नेता हैं, जिन पर दर्जनों मामले चल रहेेे हैं. लेकिन, इसके बाद भी सार्वजनिक जीवन के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं. हमारा कानून भी कहता है कि कोई व्यक्ति तब तक निर्दोष है, जब तक उस पर दोष साबित नहीं हो जाता.
सात साल से अधिक उम्र में सजा से छूट नहीं मैं केस के मेरिट की बात नहीं कर रहा कि मामला कितना सही या गलत है. क्योंकि, यह प्रारंभिक स्थिति में हैं. लेकिन, एफआइआर बड़ी बात है. घटनाक्रम के समय तेजस्वी की उम्र सात साल या उससे कम होती, तो उन्हें अपराध के आरोप से छूट मिल जाती. लेकिन, उम्र अधिक होने के कारण ऐसी छूट भी संभव नहीं है. संपत्ति उनके नाम पर है और एफआइआर में भी नाम दर्ज हो चुका है. ऐसे में यदि गिरफ्तारी या समर्पण की बात उठेगी, तो कानूनी और संवैधानिक समस्या खड़ी हो जायेगी. सरकार से उपमुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने के लिये अनुमति भी लेनी होगी, जो अजीब सी स्थिति होगी. धारा जिनमें उन पर एफआइआर दर्ज
किया गया है, गंभीर धाराएं हैं जिनमें ऐसी स्थिति आ सकती है.