11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भाजपा कहीं बिखेर न दे लालू का वोट बैंक, आरजेडी के सामने ये हैं चुनौतियां

मिथिलेश पटना : लालू कुनबे पर कानूनी संकट के बादल छाने के बाद भाजपा प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक यादव वोटरों के रिझाने में लग गयी है. लालू प्रसाद के सामने सबसे बड़ा संकट अपने साथ यादव मतदाता को बनाये रखने का है. यादव मतदाताओं के छिटकने से माय (मुसलिम-यादव) समीकरण में भी दरार […]

मिथिलेश

पटना : लालू कुनबे पर कानूनी संकट के बादल छाने के बाद भाजपा प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक यादव वोटरों के रिझाने में लग गयी है. लालू प्रसाद के सामने सबसे बड़ा संकट अपने साथ यादव मतदाता को बनाये रखने का है. यादव मतदाताओं के छिटकने से माय (मुसलिम-यादव) समीकरण में भी दरार को रोक पाना पार्टी के लिए चुनौती हाेगी. साठ के दशक के कदावर नेता रामलखन सिंह यादव के राजनीतिक अवसान के बाद लालू प्रसाद ही नब्बे से यादवों के बिहार में एकछत्र नेता हैं. वर्तमान राजद के अस्सी विधायकों में से एक चौथाई से अधिक इसी बिरादरी के विधायक हैं.

भाजपा की नजर प्रदेश के 14 फीसदी यादव वोटरों पर
ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुटी भाजपा की नजर प्रदेश के 14 प्रतिशत यादव मतदाताओं पर टिकी है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे लालू प्रसाद के परिवार पर कानूनी संकट बढ़ता जायेगा, भाजपा यादव मतदाताओं की गोलबंदी अपने पक्ष में करना चाहेगी. वैसे तो पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही इसका ट्रेलर दिखाया था.

रामकृपाल यादव को राजद से खींच उन्हें लालू प्रसाद की पुत्री मीसा भारती के खिलाफ यादव बहुल सीट से ही चुनाव लड़वाया गया. चुनाव जीतने के बाद उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जाना और अब प्रदेश भाजपा की कमान यादव नेता नित्यानंद राय को सौंपना भाजपा की चुनावी रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है. जनसंघ के जमाने में भी खास-खास इलाकों में यादव मतदाताओं के बीच पैठ की पार्टी की कोशिश रही है.

भाजपाकादावा, यादवों का बड़ा तबका पार्टी की आेर कर सकता है रुख
भाजपा के रणनीतिकारों का दावा है कि जिस प्रकार सत्ता में आने के बाद लालू प्रसाद यादवों के एकमात्र नेता बन गये और शेरे बिहार कहे जाने वाले रामलखन सिंह यादव की बादशाहत छिन गयी, उसी प्रकार लालू प्रसाद के बाद तेजस्वी यादव और मीसा भारती पर कानूनी शिकंजा कसने के बाद यादवों का बड़ा तबका भाजपा की ओर रुख कर सकता है. हाल के दिनों में अच्छी तादाद में यादव युवा भाजपा में शामिल हुए हैं.

मजबूत होकर उबरेंगे लालू
हालांकि राजद नेताओं को भरोसा है कि हर बार की तरह इस बार भी लालू प्रसाद संकट से उबरेंगे. उनके साथ यादव और मुसलिम वोट पूरी तरह लामबंद हैं. अब यादव और मुसलिम के अलावा यूपी में मायावती का साथ मिल गया, तो इसी समीकरण में वोट के लिहाज से मजबूत समझे जाने वाले दलित मतदाताओं का भी साथ होगा. वैसे बिहार की राजनीति को देखें, तो कांग्रेस के जमाने से ही यादव मतदाताओं की पृष्ठभूमि समाजवादी रही है. कांग्रेस के खिलाफ यादव, कुरम और कोइरी का त्रिवेणी संघ भी यहां ताकतवर रहा है. राजद का यह तर्क है कि वर्तमान भाजपा और पूर्व की कांग्रेस की संस्कृति में कोई फर्क नहीं है. ऐसे में यादव मतदाताओं का झुकाव कभी भी भाजपा की ओर नहीं होगा.

नीतीश को उनके समर्थक जहां देखना चाहते हैं, वह रास्ता विपक्ष के गलियारे से ही गुजरता है
इधर, भाजपा के साथ नजदीकी रिश्ते की किसी भी संभावना को खुद जदयू अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खारिज कर चुके हैं. सीएम आनेवाले चुनाव में पीएम पद के उम्मीदवार होने की संभावना से भी इनकार कर चुके हैं. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि नीतीश कुमार के समर्थक उन्हें जहां जिस रूप में देखना चाहते हैं वह रास्ता विपक्ष के गलियारे से ही गुजरता है. देर सबेर कांग्रेस विपक्ष को गोलबंद कर लोकसभा चुनाव में उतरने को घोषणा करेगी. ऐसे में नीतीश कुमार की छवि और उनके समर्थन को दरकिनार कर पाना उसके लिए असंभव होगा.

जानकारों का कहना है कि राजनीतिक हालात ऐसे बनते जरहे हैं कि जिस प्रकार एनडीए के जमाने में नीतीश कुमार सरकार के अगुवा होते थे, मौजूदा परिस्थितियों में नीतीश विपक्ष में ही रह कर ऐसी भूमि का निभा सकते हैं. भाजपा के साथ संबंध बनने की स्थिति में उन्हें राजनीतिक तौर पर कोई लाभ होता नहीं दिख रहा.

ये भी पढ़ें… दिल्ली बुलाकर लालू, राबड़ी व तेजस्वी से सीबीआइ कर सकता है पूछताछ

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें