सीबीआइ ने लालू पर नहीं किया था रहम, तब थे यूएन विश्वास और अब हैं राकेश अस्थाना

पटना: जिस समय राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद चारा घोटाले में अभियुक्त बनाये गये थे, उस समय सीबीआइ ने उन पर कोई रहम नहीं की थी. लालू प्रसाद की दलीलों को नामंंजूर किया गया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए सीबीआइ कोर्ट से लेकर उच्चतम न्यायालय तक उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज हुई. जमानत याचिका खारिज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2017 8:01 AM
पटना: जिस समय राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद चारा घोटाले में अभियुक्त बनाये गये थे, उस समय सीबीआइ ने उन पर कोई रहम नहीं की थी. लालू प्रसाद की दलीलों को नामंंजूर किया गया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए सीबीआइ कोर्ट से लेकर उच्चतम न्यायालय तक उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज हुई. जमानत याचिका खारिज होने के बाद सीबीआइ ने उनकी गिरफ्तारी के लिए सेना तक की मदद लेने की ठान ली थी. लेकिन, लालू प्रसाद ने आत्म समर्पण करने का फैसला लिया. सीबीआइ ने लालू प्रसाद के इस दावे को नामंजूर कर दिया था कि चारा घोटाले को खुद उसने ही उजागर किया और उनकी ही सरकार ने प्राथमिकी भी दर्ज करवायी.
इस बार वह एक बार फिर सीबीआइ के शिकंजे में हैं. परंतु इस बार वह अकेले नहीं, बल्कि परिवार के दो अन्य सदस्य पत्नी और बेटा भी साथ है. सीबीआइ ने उनके साथ ही उनकी पत्नी और बेटे को भी रेलवे के रेल रत्न होटल टेंडर के मामले में अभियुक्त बनाया है. चारा घोटाला मामले में पटना उच्च न्यायालय मॉनीटर कर रही थी. तत्कालीन कोर्ट का रुख भी सीबीआइ को ताकत दे रहा था.

जिस समय लालू प्रसाद के खिलाफ सीबीआइ में मामला चल रहा था, कुछ दिनों के लिए दिल्ली की केंद्रीय सत्ता पर लालू के ही समर्थन से पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा की सरकार चल रही थी. परंतु इस बार केंद्र की सत्ता पर लालू प्रसाद की धूर विरोधी सरकार काबिज है. इस वजह से सीबीआइ को किसी तरह से नियंत्रित करवाना या कोई सुविधा प्राप्त कर पाना बिलकुल भी आसान नहीं होगा.

इसके अलावा वर्तमान में सीबीआइ के अपर निदेशक राकेश अस्थाना इस मामले को देख रहे हैं. लालू के खिलाफ चारा घोटाला की जांच करने में राकेश अस्थाना की भूमिका बेहद अहम रही थी. फिर एक बार उनका पाला इस अधिकारी से पड़ गया है. चारा घोटाले की जांच के दौरान 1994 में वह धनबाद में सीबीआइ के एसपी थे और 1996 में उस समय के इस बहुचर्चित घोटाला में राकेश आस्थाना ने ही लालू प्रसाद को गिरफ्तार किया था. उन्होंने इस मामले को लेकर 1997 में लालू प्रसाद से छह घंटे पूछताछ की थी. इस बार फिर से लालू प्रसाद का पाला गुजरात कैडर के इस 1984 बैच के आइपीएस अधिकारी से पड़ा है. इस बार रेलवे के होटल टेंडर घोटाला मामले की जांच की देखरेख फिर से इनके पास ही है. लालू प्रसाद के खिलाफ दर्ज मामला भी नई दिल्ली में होने की वजह से यह सीधे उच्च अधिकारियों की मॉनीटरिंग में है. इससे इसमें किसी तरह की राहत मिलने की बात सोचना भी बेमानी है. अब तक की स्थिति को देखते हुए यह लगता है कि लालू प्रसाद को इस बार भी सीबीआइ से राहत मिलने की संभावना नहीं है.

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