नयीदिल्ली : राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में क्रमश: सत्तारुढ और विपक्षी दल का समर्थन कर जदयू ने वहीं दोहराया है जो उसने 2012 के चुनावों में किया था जब वह आधिकारिक रूप से विपक्ष का हिस्सा था. नीतीश कुमार की पार्टी उस वक्त भाजपा नीत राजग का हिस्सा थी जिसने राष्ट्रपति पद के लिए संप्रग के पसंदीदा उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था और उपराष्ट्रपति पद के लिए राजग के जसवंत सिंह का समर्थन किया था.
बिहार के मुख्यमंत्री ने तब भी वहीं कारण बताए थे जो उन्होंने अभी बताए हैं. उन्होंने प्रणब को अच्छा उम्मीदवार बताया था जो उन्होंने इस बार राजग के रामनाथ कोविंद के लिए कहा है. राजनीतिक विश्लेषक इसे अलग नजरिये से देखते हैं. वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान नीतीश अपने बड़े सहयोगी भाजपा से दूर जाने लगे थे और 2014 के आम चुनावों के लिए भगवा दल द्वारा नरेन्द्र मोदी को नेता चुने जाने के बाद उन्होंने 2013 में गठबंधन तोड़ लिया था.
राजनीतिक परिदृश्य इस बार भी वैसा ही है क्योंकि कई लोग महसूस कर रहे हैं कि नीतीश अपने गठबंधन के सहयोगियों राजद और कांग्रेस से दूर होते जा रहे हैं. उनकी आलोचना अब भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की तरफ होती है और सजर्किल स्ट्राइक तथा नोटबंदी जैसे मुद्दों पर उन्होंने मोदी सरकार का अकसर समर्थन किया है जो उनके आगामी कदम की तरफ इशारा करते हैं.
बहरहाल, जदयू एकमात्र ऐसी पार्टी नहीं है जिसने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में अलग रास्ता अख्तियार किया है. भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भी 2012 में प्रणब और सिंह का समर्थन किया था.