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सियासी संकट पर अब फाइनल कॉल का इंतजार…जानिए नीतीश के समक्ष क्या-क्या है विकल्प?
राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दल उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद के इस्तीफे की लगातार मांग कर रहे हैं पटना : राष्ट्रपति चुनाव के बाद अब प्रदेश को सियासी संकट से उबरने के फाइनल कॉल का इंतजार है. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के खिलाफ सीबीआइ की प्राथमिकी के बाद से प्रदेश में राजनीतिक […]
राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दल उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद के इस्तीफे की लगातार मांग कर रहे हैं
पटना : राष्ट्रपति चुनाव के बाद अब प्रदेश को सियासी संकट से उबरने के फाइनल कॉल का इंतजार है. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के खिलाफ सीबीआइ की प्राथमिकी के बाद से प्रदेश में राजनीतिक अनश्चितिता की स्थिति बनी हुई है. मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा व उसके सहयोगी दल उपमुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. सरकार की सहयोगी पार्टी जदयू चाहती है कि जिन पर आरोप लगे हैं वह जनता की अदालत में जाकर सफाई दें.
वहीं, उपमुख्यमंत्री ने इस्तीफा नहीं देने का एलान कर रखा है. 28 जुलाई से बिहार विधानमंडल का मॉनसून सत्र आरंभ होने वाला है. ऐसे में आगे क्या होने वाला है, राजनीतिक गलियारों से राज्य की जनता की जुबां पर लाख टके का यह सवाल गूंज रहा है. जबकि, सीएम ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार के मामलों में अपने जीरो टालरेंस की नीति से पीछे नहीं हटेंगे.
चुनौती क्या
महागठबंधन के तीनों दल जदयू, राजद और कांग्रेस पार्टी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती 2015 में विधानसभा चुनाव में मिले जनादेश को बचाये रखने की है. गठबंधन सरकार को बचाने और जनादेश का सम्मान करने की तीनों दलों की अपने-अपने स्टैंड पर बने रहने के लिए अपनी मजबूरियां भी है. जदयू का मानना है कि नीतीश कुमार की छवि ही उसकी पूंजी है.
इससे समझौता करना संभव नहीं है. पिछले दिनों गठबंधन की सरकार में किसी भी मंत्री पर कोई मुकदमा आया तो उसे इस्तीफा देना पड़ा. इसके इतर गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी पार्टी राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा है कि वह सिर्फ मुकदमा हो जाने के कारण उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव को इस्तीफा देने को नहीं कह सकते हैं.
मुख्यमंत्री के सामने इस संकट से उबरने के विकल्प और उसका इंपैक्ट
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष जो विकल्प है उनमें एक अपनी छवि से कोई समझौता किये बिना सरकार को चलाये रखनी की है. इसके लिए उनके पास निम्न
विकल्प हैं
1. उपमुख्यमंत्री के इस्तीफे पर कानूनी बाध्यता होने तक फिलहाल कोई चर्चा नहीं हो और महागठबंधन की सरकार चलती रहे
इंपैक्ट : इससे सरकार पर कोई खतरा नहीं होगा. पर, भ्रष्टाचार पर मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस की नीति पर सवाल उठता रहेगा.
2. उपमुख्यमंत्री को पद से हटने को कहें.
इंपैक्ट : इससे राजद असहज हो सकता है. उसके सभी मंत्री सरकार से इस्तीफा दे सकते हैं और सरकार को पार्टी बाहर से समर्थन देने की घोषणा कर सियासी संकट बढ़ सकता है.
3. राजद के समर्थन वापसी या बाहर से समर्थन लेने से इनकार कर सरकार बचाने के लिए कांग्रेस के 27 विधायकों का साथ मिले और सदन में बहुमत के लिए 24 अतिरिक्त विधायकों का ग्रुप सरकार को साथ देने को आगे आये.
इंपैक्ट : इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं होगा और प्रदेश की राजनीति में एक नया समीकरण का उदय होगा.
4. राजद के समर्थन वापसी पर भाजपा बाहर या सरकार में शामिल होकर समर्थन देने को तैयार हो.
इंपैक्ट : इससे सरकार बनी रहेगी लेकिन, मुख्यमंत्री को विपक्ष की राजनीति में राष्ट्रीय चेहरा बनने का अवसर नहीं मिल पायेगा.
राजद के विकल्प और इसका इंपैक्ट
विधानसभा के 243 सदस्यों में राजद सबसे बड़ी पार्टी है. सदन में उसके अस्सी विधायक हैं. राजद के सामने जो विकल्प हैं :
1. उपमुख्यमंत्री का तत्काल इस्तीफा कराएं और अपने दल से किसी वरिष्ठ सदस्य को उपमुख्यमंत्री की हैसियत दिलायें. लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को भी यह ओहदा दिया जा सकता है.
इंपैक्ट : इससे महागठबंधन की सरकार बनी रहेगी. संकट की स्थिति में राज्य सरकार का कवच बना रह सकता है. पार्टी सरकार बचाने की हैसियत में रहेगी.
2. उपमुख्यमंत्री का इस्तीफा नहीं होकर सरकार के अगले कदम का इंतजार.
इंपैक्ट : फिलहाल राजद इसी नीति पर चल रहा है. पर, लंबे समय तक ऐसी स्थिति नहीं बनी रह सकती. राजद पर वोट बैंक बचाये रखने व भाजपा को सरकार से दूर किये रखने की चुनौती होगी.
3. उपमुख्यमंत्री की बरखास्तगी की स्थिति में सरकार से समर्थन वापसी कर अपनी सरकार की संभावना तलाशे
इंपैक्ट : ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस उसके साथ होती है इसके बाद भी बहुमत के लिए 15 अतिरिक्त विधायकों का समर्थन का जुगाड़ करना होगा.
इधर, भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू जैसी स्थिति है. महागठबंधन में टूट होती है तो इसका सीधा लाभ भाजपा को ही होगा. मिशन 2019 की उसकी राह आसान होगी. बिहार की सत्ता में भागीदारी का अवसर भी मिल सकता है.
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