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बिहार के लिए गागर में सागर है आइएएस मनीष रंजन की लिखी यह किताब, पढ़ें रवीश कुमार की समीक्षा

2002 बैच के आईएएस अधिकारी मनीष रंजन ने बिहार पर आधारित एककिताब लिखी है. वैसे है तो यह प्रतियोगिता परीक्षाआें के लिए उपयोगी पुस्तक, लेकिन इस किताब में शराबबंदी से लेकर बिहारकी लोकसंस्कृति तक से जुड़ी कई सारी बातों की भी बारीकी से चर्चा की गयी है. आईएएस की मेरिट लिस्ट में प्रथम रैंक पानेवाले […]

2002 बैच के आईएएस अधिकारी मनीष रंजन ने बिहार पर आधारित एककिताब लिखी है. वैसे है तो यह प्रतियोगिता परीक्षाआें के लिए उपयोगी पुस्तक, लेकिन इस किताब में शराबबंदी से लेकर बिहारकी लोकसंस्कृति तक से जुड़ी कई सारी बातों की भी बारीकी से चर्चा की गयी है. आईएएस की मेरिट लिस्ट में प्रथम रैंक पानेवाले मनीष, फिलहाल झारखंड के खूंटी जिले में डीसी के तौर पर कार्यरत हैं. उनकी इस किताब की समीक्षा जाने-माने टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने की है. इस किताब के बारे में रवीश ने क्या कुछ लिखा है, पढ़ें आप भी…

बिहार में शराबबंदी विधेयक 1938 ई में पारित हुआ था. नमक सत्याग्रही जगलाल चौधरी ने 1937 में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री बनते ही मद्य निषेध लागू करने का प्रयास किया था. 1946 के कांग्रेस मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बनाये गये थे. मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब बिहार में शराबबंदी लागू की तब उन्हें जगलाल चौधरी को भी याद करना चाहिए था ताकि नयी पीढ़ी इसी बहाने राज्य के पुरातन राजनेता के बारे में जान सकती.

दुखन राम के बारे में कितना कम डिटेल है. 1994 में ही चिकित्सा महाविद्यालय में नेत्र विभाग के प्रमुख बनाये गये थे. 1953 से 1956 के बीच पटना मेडिकल काॅलेज के प्रिंसिपल भी रहे. भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और पंचम राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के वे अवैतनिक नेत्र चिकित्क रहे. 1962 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुए और 1988 में बिहार रत्न की उपाधि से नवाजे गये. हम दुखन राम के बारे में कितना कम जानते हैं. उनके जीवन की संघर्ष यात्रा कितना कुछ बता सकती थी.

1933 में पटना से निकलने वाली मासिक पत्रिका नाम ‘भूखे’ था. मैं इसकी प्रति देखना चाहूंगा कि भूखे में क्या छप रहा था. इसका नाम ‘भूखे’ क्यों पड़ा.

मुझे हैरान करने वाली ये तीनों बातें 742 पन्नों की एक प्रतियोगी पुस्तक से मिली हैं, जिसमें लगता है कि पूरा बिहार समा गया है. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए यह किताब समग्र पुराण लगती है. शुरुआती भाषा के लालित्य और पांडित्य से घबरा गया, मगर भीतर बिहार को लेकर जो जानकारियां हैं, उनका प्रवाह शानदार है. प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए ये बेहद उपयोगी किताब मालूम पड़ती है. किताब देखकर लगता है कि काफी मेहनत से यह किताब लिखी गयी है. बिहार का प्राचीन इतिहास तो है ही, आज-कल के बिहार के सारे आंकड़े दिये गये हैं. बिहार की साक्षरता दर से लेकर कितने विश्वविद्यालय हैं और बिहार को सात नदी क्षेत्रों में बांटा जाता है. हमारे कार्टूनिस्ट मित्र पवन कुमार का नाम भी है इसमें. पर गणेश शंकर विद्यार्थी तो कानपुर के थे, इनका नाम इस किताब में कैसे आ गया!

लेखन ने इस किताब को लिखने में खूब हाड़ मांस गलाया है. बिहार की खेती को रबी, खरीफ और जायद में बांटा जाता है. जायद? मकई, ज्वार, हरा चना, मड़ुआ आदि को जायद कहा जाता है, जो नियमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में उगाये जाते हैं. धान के प्रमुख किस्म हैं – प्रभात साकेत, सीता, कनक. धान में लगने वाले प्रमुख कीट हैं तना छेदक, मधुआ कीट, सांढ़ा कीट, बमनी कीट आदि हैं. गेहूं की बीमारियों के नाम हैं कलिका रोग, झुलसा रोग और अकड़ी रोग. ऐसी-ऐसी जानकारी है कि पढ़ने के बाद खुद पर हंसी भी आती है और संपन्नता का एहसास भी करा देती है.

नाना प्रकार की जानकारियों से लैस इस किताब को पढ़ते-पढ़ते उत्सुकता बढ़ने लगी. कुछ जाना हुआ देखकर और बहुत कुछ पहली बार जानने का अपना ही सुख होता है. 1912 में बंगाल से अलग होने के बाद बिहार का एक विभाजन 1936 में हुआ जब उड़ीसा बना और 2000 में हुआ जब झारखंड में हुआ. बिहार सचिवालय में कुल 44 विभाग हैं. आजकल लोग भूल जाते हैं कि कितने जिले हैं. 38 जिले हैं. एक जिलाधिकारी के पास कितने विभाग होते हैं और उसके काम क्या होते हैं, इसका भी वर्णन है. लगता नहीं है कि जिलाधिकारी अपने एक कार्यकाल में सारे दायित्वों को निभा पाता होगा. कटिहार में घोघा झील है. पांच वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है. आजतक किसी को फेसबुक पर घोघा झील की तस्वीर साझा करते नहीं देखा. देखना चाहता हूं कि इतनी बड़ी झील दिखती कैसी है.

इस किताब के लेखक मनीष रंजन हैं. 2002 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और झारखंड सरकार में कार्यरत हैं. आईएएस की मेरिट लिस्ट में मनीष का रैंक प्रथम था. मनीष चाहते थे कि बिहार को लेकर हिंदी में एक सर्वमान्य प्रतियोगी पुस्तक लिखी जाये. यही क्या कम है कि आईएएस बन जाने के बाद भी मनीष ने लाखों बिहारी छात्रों की पीड़ा को याद रखा और इसका एक समाधान पेश किया है! वरना छात्र जीवन की मुश्किलों को कौन याद रखता है, रखता भी है तो कुछ करने की पहल बहुत कम लोग करते हैं. इसके लिए तो मनीष को बधाई.

आजकल बिहार या किसी भी राज्य को दो-चार नेताओं में समेट दिया जाता है. जबकि हर राज्य में कितना कुछ है जानने के लिए. मनीष ने मौजूदा आर्थिक आंकड़ों का भी अच्छा संग्रह किया है. जिससे राज्य की प्रगति और चुनौतियां का ठीक –ठाक अंदाजा हो जाता है. हिंदी में लिखे होने के कारण इस किताब को प्रतियोगी छात्रों के अलावा सामान्य नागरिक भी पढ़ सकते हैं. उन्हें भी पढ़ना चाहिए. बल्कि यह किताब बिहार के हर घर में मौजूद हो जाये तो हर्ज नहीं है. इसके सहारे कोई भी अपने जिले के बारे में काफी जानकारी तुरंत निकाल सकता है. ये सारी जानकारियां गूगल में भी नहीं मिलेंगी. इसे बिहार सिविल सेवा परीक्षा सहित कई परीक्षाओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है. इसका एक ध्येय यह भी लगता है कि छात्र तैयारी के स्तर पर ही समझ जाएं कि प्रशासन का काम क्या होता है. जो लोग बिहार के नहीं हैं, वो भी इस किताब के जरिये बिहार के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं.

मैं इस किताब को पढ़ने के बाद अंगिका क्षेत्र में खेले जाने वाले नृत्य इन्नी-बिन्नी देखना चाहता हूं. इन्नी-बिन्नी में पति-पत्नी प्रसंग पर महिलाएं नृत्य करती हैं. बगुलो भी कोई नृत्य है जिसमें ससुराल से रूठकर जानेवाली स्त्री के रास्ते में दूसरी स्त्री के साथ नोक-झोंक का चित्रण होता है. घाटो सुनना चाहता हूं जिसमें ससुराल में गरीब बहन के घर भाई के आने की सूचना मिलने पर विरह गीत गाया जाता है. जानना चाहता हूं कि गीत के भाव क्या होते हैं, बोल क्या होते हैं. बोलबै क्या है, मुझे नहीं पता. यह भागलपुर और उसके आस-पास के क्षेत्र का नृत्य है, जिसमें महिलाएं पति के परदेश जाते समय का चित्रण करती हैं. पढ़ने के बाद इन गीतों को जीने और जानने का मन करने लगा है.

गजब की किताब है ये. कहीं से भी बोझिल नहीं है. मैं झूठ नहीं बोलूंगा. उम्मीद थी कि कोई अकादमिक किताब आ रही है. जब देखा कि प्रतियोगी पुस्तक है जो कम अपेक्षा से पढ़ना शुरू किया लेकिन अंत अंत तक आनंद के स्तर पर पहुंच गया. लगा कि कितना कुछ जान गया. अपने बिहारीपन का लाइसेंस फिर से नया हो गया है. कम से ज्यादा मिलने की जो खुशी होती है वो इस किताब से मिलती है. मनीष ने लगता है कि ठान लिया था कि बिहार पर एक मुकम्मल प्रतियोगी पुस्तक लिखनी है. मेरी राय में यह किताब अच्छी बनी है. मेहनत रंग लायी है. प्रभात पेपरबैक्स ने यह किताब छापी है. कीमत है मात्र 545 रुपये.

(मैं संभवत: भारत का प्रथम कोचिंग साहित्य समीक्षक हूं!! अरे हंसिए नहीं. हाल ही में मेडिकल छात्रों के लिए हिंदी में लिखी केमिस्ट्री की एक किताब की समीक्षा की थी. नयी नयी चीजें पढ़ते रहिए और नये नये ज्ञान-शहरों की यात्रा करते रहिए.)

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