गुमनामी में हैं 154 सरकारी देसी औषधालय
पटना: राज्य सरकार द्वारा स्थापित किये गये औषधालयों की स्थिति खानाबदोश से कम नहीं है. किराये के मकान पर चलनेवाले औषधालय की हालत घूमंतू बनी है. किसी भी औषधालय की पहचान नहीं है. 35 वर्षों से सेवा देनेवाले इन औषधालयों का स्थायी पता नहीं बन पाया है. राज्य में करीब 154 देसी औषधालय गुमनामी में […]
पटना: राज्य सरकार द्वारा स्थापित किये गये औषधालयों की स्थिति खानाबदोश से कम नहीं है. किराये के मकान पर चलनेवाले औषधालय की हालत घूमंतू बनी है. किसी भी औषधालय की पहचान नहीं है. 35 वर्षों से सेवा देनेवाले इन औषधालयों का स्थायी पता नहीं बन पाया है. राज्य में करीब 154 देसी औषधालय गुमनामी में हैं.शहर के किस छोर में कब शिफ्ट करना पड़े इसका अनुमान भी नहीं. 1982 में राज्य के 26 जिलों में जिला संयुक्त औषधालयों की स्थापना की गयी है. सभी देशी चिकित्सा निदेशालय से निर्देशित होते हैं.
राजधानी में बने ऐसे औषधालय की हालत भी ऐसी ही बनी हुई है. सरकार द्वारा देसी चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए जिला स्तर पर जिला संयुक्त औषधालयों की स्थापना की गयी है. राज्य के पुराने 26 जिलों में इसकी स्थापना की गयी. जिला स्तरीय संयुक्त औषधालयों में आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक व यूनानी चिकित्सकों द्वारा मरीजों की सेवा की जाती है. हर जिला स्तरीय संयुक्त औषधालयों 13 चिकित्सक व कर्मियों के पद सृजित हैं. पूरे राज्य में जिला संयुक्त औषधालयों के अलावा 69 राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय, 29 होमियोपैथी औषधालय और 30 यूनानी औषधालयों की स्थापना की गयी है.
पड़ताल पटना जिला संयुक्त औषधालय का: राजधानी पटना में स्थापित किये गये जिला संयुक्त औषधालय की पड़ताल पर जो तसवीर बनी वह यह है कि इसकी स्थापना 1982 में की गयी थी. यह औषधालय उस समय से वर्तमान में बेउर मोड़ के पास हरनीचक स्कूल रोड में किराये के मकान में फरवरी, 2014 से चल रहा है. इसके पहले यह 32 सालों तक अनिसाबाद मोड़ के पास मुख्य सड़क पर किराये के मकान में था. अपना जमीन मकान नहीं होने के कारण कोई पहचान ही नहीं है. औषधालय में जिला देसी चिकित्सा पदाधिकारी का पदस्थापन किया गया है. साथ ही आयुर्वेदिक, होमियोपैथी व यूनानी चिकित्सक पदस्थापित हैं. अस्पताल में औसतन 25-30 मरीज इलाज के लिए प्रतिदिन आते हैं. औषधालय में होमियोपैथ के चिकित्सक का पदस्थापन जिला के बिहटा प्रखंड के कंचनपुर औषधालय में की गयी है. रोस्टर ड्यूटी पर यहां सप्ताह में एक दिन आते हैं.
यूनानी चिकित्सक की प्रतिनियुक्ति तिब्बी कॉलेज में एक साल से की गयी थी. एक सप्ताह पहले वह अस्पताल में लौटे हैं. यहां हर माह 400 मरीजों का इलाज होता है. औषधालय पर सलाना 60-65 लाख खर्च होता है. इसके अधीन पांच ग्रामीण औषधालयों का संचालन होता है. इसमें राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय दरियापुर (नौबतपुर), राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय, पैनाल (बिहटा), राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय, देवरिया (मसौढ़ी), राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय, पालीगंज और राजकीय होमियोपैथिक औषधालय, कंचनपुर (बिहटा) में कार्यरत हैं. इन अस्पतालों को दवा देने के बाद जांच होता ही नहीं. जिला देसी चिकित्सा पदाधिकारी के पास वाहन की सुविधा नहीं है.
औषधालय में आते हैं गरीब मरीज
जिला देसी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रवींद्र कुमार और आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ सुनीता कुमारी ने बताया कि यहां बहुत ही गरीब और लाचार मरीज ही आते हैं. पहले कोटि में जिनके पास पैसा नहीं होते और मुफ्त में दवा मिलने की आस में यहां मरीज इलाज के लिए आते हैं. दूसरी कोटि में वैसे गरीब मरीज आते हैं जो एलोपैथ के इलाज से थक गये हैं. उनको लगता है कि यहां के इलाज से कुछ लाभ मिल जाये. औसतन 25-30 मरीज ही इलाज के लिए आते हैं.
पटना जिला के छह अस्पतालों में साल में करीब पांच लाख की दवाएं खरीदी जाती है. औषधालय में न तो पैथोलॉजी और नहीं रेडियोलॉजी जांच की सुविधाएं हैं. औषधालय में सिर्फ ओपीडी सेवा बहाल है. बारिश के कारण तो शुक्रवार को महज दो ही मरीज इलाज के लिए अौषधालय तक पहुंचे.