टिकाऊ शासन के लिए संस्थागत सुधार जरूरी

पटना: बिहार में टिकाऊ शासन के लिए उसे नीतिगत सुधारों से संस्थागत सुधारों की दिशा में जाना होगा. इससे नागरिकों की मनोवृत्तियों, अभिलाषाओं व व्यवहार में दीर्घकालिक परिवर्तन को सहारा देगी. बिहार गवर्नेंस में भारी सुधारों वाले दशक का साक्षी रहा है, लेकिन गवर्नेंस में सुधार का टिकाऊपन अनिश्चित बना हुआ है.गरीबी मतदाताओं को राजनेताओं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 23, 2017 9:07 AM

पटना: बिहार में टिकाऊ शासन के लिए उसे नीतिगत सुधारों से संस्थागत सुधारों की दिशा में जाना होगा. इससे नागरिकों की मनोवृत्तियों, अभिलाषाओं व व्यवहार में दीर्घकालिक परिवर्तन को सहारा देगी. बिहार गवर्नेंस में भारी सुधारों वाले दशक का साक्षी रहा है, लेकिन गवर्नेंस में सुधार का टिकाऊपन अनिश्चित बना हुआ है.गरीबी मतदाताओं को राजनेताओं के वर्चस्व का शिकार बनने के लिहाज से असुरक्षित स्थिति में ला देती है. उन्हें ‘उपभोक्तावादी फंदे’ में धकेल देती है, जिससे उनका मत सरकार को जवाबदेह नहीं बना पाता है.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जोनाथन फिलिप्स के विचार पर आद्री में आइजीसी बिहार द्वारा कार्यशाला आयोजित हुआ. कार्यशाला में चर्चा हुई कि क्या मतदाता वर्तमान प्रशासन के राजकाज छोड़ने के बाद भविष्य में भी विकास, सुशासन, के लिए मतदान करते रहेंगे. नयी नीतियों के आर्थिक व सामाजिक प्रभावों का अध्ययन तो किया गया है, लेकिन राजनीतिक प्रभावों का नहीं. हैरत की बात है कि बिहार की राजनीति को झारखंड की अपेक्षा कम विश्वास व राजनीतिक भागीदारी के द्वारा पहचाना जाता है जो दर्शाता है कि गवर्नेंस में हुए सुधारों से मतदाताओं की राजनीतिक संलग्नता में कमी आ सकती है.
कार्यशाला में आइजीसी के कंट्री को-डायरेक्टर डॉ शैबाल गुप्ता ने विषय प्रवर्तन किया. राज्य निर्वाचन आयुक्त एके चौहान ने अध्यक्षता की. आइजी स्पेशल ब्रांच जेएस गंगवार,सत्यजीत सिंह, डाॅ प्रदीपकांत चौधरी, आइजी सीआइडी अनिल किशोर चौधरी, डॉ सुनीता लाल सहित प्रशासन व शिक्षा क्षेत्र के अन्य सदस्य उपस्थित थे. आद्री के निदेशक प्रोफेसर प्रभात पी घोष ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

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