आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना
पटना : हाल के दिनों में जिस तरह बिहार की सियासत ने करवट ली और अचानक राजनीतिक समीकरण बदले हैं, उसके बाद से राजनीतिक पंडितों की निगाहें, राजद सुप्रीमो लालू यादव के अगले कदम पर टिकी हुई हैं. जानकार मानते हैं कि लालू चुप बैठने वालों में से नहीं हैं. उन्होंने अपनी रणनीति का भले खुलासा नहीं किया हो, लेकिन वह बहुत जल्द अपने पूरे फार्म में होंगे. महागठबंधन के टूटने के बाद से, जिस तरह लालू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ट्वीटर और सोशल मीडिया के जरिये राजनीति का खलनायक सिद्ध करने पर तुले हैं, वह एक बस बानगी भर है. लालू की निगाहें जदयू के उन असंतुष्टों पर टिकी हुई है, जो नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. शायद यही कारण है कि लालू ने शरद यादव को न्योता दिया है. लालू ने ट्वीट कर लिखा है कि गरीब, वंचित और किसान को संकट/ आपदा से निकालने के लिए हम नया आंदोलन खड़ा करेंगे. शरद भाई, आइए सभी मिलकर दक्षिणपंथी तानाशाही को नेस्तनाबूद करें.
ग़रीब,वंचित और किसान को संकट/आपदा से निकालने के लिये हम नया आंदोलन खड़ा करेंगे।शरद भाई,आइये सभी मिलकर दक्षिणपंथी तानाशाही को नेस्तनाबूद करे
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) July 29, 2017
नीतीश कुमार से शरद यादव की नाराजगी का पूरा फायदा लालू प्रसाद उठाना चाहते हैं. लालू प्रसाद ने शरद यादव को बीजेपी के खिलाफ आगे की लड़ाई की कमान संभालने का ऑफर दिया है. हालांकि, लालू ने यह ट्वीट 29 जुलाई को की है, जानकार मानते हैं कि इसके मायने बहुत स्पष्ट हैं. लालू 27 अगस्त की पार्टी की रैली से पहले नीतीश और एनडीए के खिलाफ एक माहौल बनाना चाहते हैं. लालू की मंशा है कि उसके अगुवा शरद यादव ही बने. शरद यादव ने खुलकर न सही, लेकिन बिहार के राजनीतिक समझौते पर अपनी नाराजगी मीडिया में जाहिर कर दी है. लालू को शरद की नाराजगी का फायदा भविष्य की राजनीति में दिखता नजर आ रहा है, उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार यह कह रहे हैं कि उन्होंने यह फैसला बिहार की जनता के हित में लिया है.
बिहार में आये राजनीतिक तूफान से कहीं न कहीं जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी प्रभावित दिखते हैं. उन्होंने नीतीश द्वारा नयी व्यवस्था के तहत कुर्सी संभालने को लेकर खुलकर कुछ नहीं बोला है. हाल में उन्होंने राहुल गांधी से मुलाकात और अरुण जेटली से बात जरूर की है. हां, उनका हालिया ट्वीट यह बताता है कि, वे मोदी सरकार पर सीधे हमला बोल रहे हैं. शरद ने लिखा की वो न तो काला धन वापस ला सकी और न ही पनामा पेपर्स में जिनके नाम हैं उन पर कार्रवाई कर सकी. लालू को शरद यादव का यह ट्वीट भा गया. उधर, राजनीतिक पंडितों ने कयास लगाना शुरू कर दिया कि शरद यादव लालू के साथ जा सकते हैं. शरद ने मीडिया से यह भी कहा था कि नीतीश कुमार ने सरकार बनाने का फैसला बहुत जल्दी बाजी में लिया. गठबंधन तोड़कर इतनी जल्दी भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के फैसले का मैं समर्थन नहीं करता हूं.
Neither black money slashed abroad returned, one of d main slogans of d ruling party nor anyone caught out of those named in Panama papers.
— SHARAD YADAV (@SharadYadavMP) July 30, 2017
चर्चा यह भी है कि शरद यादव के अरुण जेटली से मुलाकात के मायने केंद्र में मंत्री पद मिलने को लेकर है. शायद, यही कारण है कि शरद यादव खुलकर विरोध में नहीं उतर रहे हैं. हालांकि, लालू ने मीडिया से बातचीत में यह जरूर कहा कि मैंने शरद यादव से फोन पर बात की है. मैं उनसे अपील करता हूं कि आइए और देश के हर कोने में जाकर इस लड़ाई की कमान को अपने हाथों में लें. इसी बात से स्पष्ट होता है कि लालू काफी सोच समझकर अपने ‘प्लान बी’ पर काम कर रहे हैं. लालू की हालिया मुश्किल में शरद यादव का साथ काफी मायने रखता है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि शरद यादव की छवि क्लीन है और उन पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है, लालू की जाति से संबंध रखते हैं. वैसे में लालू का उनके प्रति झुकाव काफी मायने रखता है. अब कयास यह लगाये जा रहे हैं कि शरद यादव को लालू का साथ देने पर आखिर क्या मिलेगा. अंदर खाने की चर्चाओं पर विचार करें, तो लालू आगे चलकर चुनाव जीतने पर शरद यादव को मुख्यमंत्री और तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री का पद दे सकते हैं. फिलहाल, यह सब पूरी तरह सियासी कयास बाजी है, लालू का प्लान बी यही है कि जैसे भी हो जदयू के असंतुष्ट नेताओं को अपनी ओर किया जाये.
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